वरूड बगाजी में ‘महालक्ष्मी’ की 118 वर्ष की परंपरा

कर्मयोगी स्व. बापूराव देशमुख ने की थी शुरूआत

देशमुख परिवार कर रहा है परंपरा का पालन
धामणगांव रेलवे/दि.28 -ग्रामवासियों का श्रद्धास्थान वरूड बगाजी में महालक्ष्मी की परंपरा 118 वर्ष की है. स्थानीय प्रगतीशिल किसान कर्मयोगी स्व. बापूराव देशमुख उर्फ काकासाहेब देशमुख ने महालक्ष्मी उत्सव की शुरूआत की थी उस समय गरिब पिछडावर्गीय, आदिवासी खेतीहर मजदुरो को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता था. ऐसे लोगो को वेे अपने वाडे में आमंत्रित कर भोजन करवाते थे. आज भी यह परंपरा देशमुख परिवार ने कायम रखी है.
स्व. बापूराव उर्फ काकासाहेब देशमुख के सुपुत्र एड प्रदिपराव देशमुख नाागपुर हायकोर्ट मेे वकिल है. जो अपने पिता द्वारा शुरू की गई. परंपरा का निर्वहन कर रहे है. देशमुख परिवार महालक्ष्मी पर्व के दौरान नागपुर से वरूड बगाजी आता है. और यह पुरे पाच दिन रहकर महालक्ष्मी का पुजन कर ग्रामवासियों को भोजन करवाता है. सभी ग्रामवासियों को बाकायदा निमत्रण दिया जाता है और उन्हें अपने वाडे में भोजन करवाया जाता है. इस दिन गांव के किसी भी घर में चुला नहीं जलता. सभी देशमुख के वाडे में भोजन करते है यह परंपरा पिछले118 अविरत शुरू है.
इस साल महालक्ष्मी उत्सव 31 अगस्त से 2 सितंबर तक मनाया जाएगा. पहले दिन से 5 दिन तक मानकरी घरो को भोजन का निमंत्रण रहता है. पहले दिन महालक्ष्मी की आरती कर आगमन होता है. दुसरे दिन 16 सब्जीयो, मिठाई व आंबील का नवैद्द अर्पित किया जाता है. और सुगंधीत फुल और दूर्वा अर्पण किया जाता है. तिसरे दिन सुहागन महिलाओं द्वारा महालक्ष्मी की गोद भरी जाती है. और पुजा कर महालक्ष्मी को रवाना करने की प्रथा है. चौथे दिन आंबील व फलो का प्रसाद वितरण कर कार्यक्रमका समापन किया जाता है.
देशमुख परिवार केे सदस्य पुरे 5 दिन तक कार्यक्रम में उपस्थित रहते है. नवदम्पती के हस्ते महालक्ष्मी की आरती किए जाने की प्रथा यहा है. देशमुख परिवार में यह उत्सव पिछले 311 वर्षो से शुरू होने की बात ग्रामवासी कहते है. और यह भी कहां गया है. की यह परंपरा एतिहासीक राजा भोसले कालीन है. इस दिन ग्रामवासी अपने बेटी और दामाद को घर बुलाते है और देशमुख के वाडे मे महालक्ष्मी के दर्शन के लिए भिजवाते है. पहले यह उत्सव देशमुख परिवार की ऐतिहासीक गढी में आयोजित किया जाता था. कितु अब यह गढी संत बगाजी सागर में चली गई है .इस गढी को 100 फुट उचे 4 बुरूज थे. पहले बुरूज के चौक में महालक्ष्मी की स्थापना की जाती थी. 5 वर्ष में एक बार वर्धा नदी देशमुख वाडे में महलाक्ष्मी का दर्शन करने आती थी. ऐसा ग्रामवासियों का कहना है.

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