7 महीनों में 598 किसान आत्महत्या
यवतमाल व अमरावती सर्वाधिक प्रभावित

अमरावती /दि.16 – पश्चिम विदर्भ के किसानों की आत्महत्या की समस्या अब भी गंभीर बनी हुई है. बारिश की अनिश्चितता, कर्ज का बढता बोझ, फसल में लगातार हो रही कमी और सरकारी मदद का अभाव इन समस्याओं के चलते किसानों की आत्महत्या थमने का नाम नहीं ले रही है. जुलाई में आत्महत्याओं की संख्या में थोडी कमी जरुर देखी गई. लेकिन सिर्फ इसी एक महीने में 67 किसानों ने जान गंवाई. पश्चिम विदर्भ के पांच जिलो में 2001 से अब तक 21,745 किसान आत्महत्याएं दर्ज की गई है. इनमें केवल 10,186 मामले सहायता के लिए पात्र माने गए. जबकि 11,274 मामलों को अपात्र करार दिया गया. शेष 285 मामलों की जांच अभी चल रही है. अब तक 10,166 मामलों में सरकार द्वारा मदद प्रदान की गई है. पहले प्रतिदिन औसतन 3 किसान आत्महत्या करते थे, जबकि जुलाई 2025 में यह आंकडा घटकर 2 के ऊपर रहा जो मामूली राहत है, लेकिन समस्या की गंभीरता को कम नहीं करता. वर्ष 2025 के पहले सात महीनों में कुल 598 किसानों ने आत्महत्या होने की जानकारी सामने आ रही है. वहीं दूसरी ओर महाडीबीटी जैसी योजनाओं में तकनीकी खामियों के कारण कई जरुरतमंद किसानों तक समय पर सहायता नहीं पहुंच पा रही है. कर्ज का बोझ हर साल बढता जा रहा है और इससे लडने की ताकत अब किसानों में कम होती जा रही है. जहां सरकार ने 10,166 मामलों में मदद दी है, वहीं हजारों किसान परिवार आज भी अपने हक की मदद के लिए दर-दर भटक रहे हैं. आत्महत्या करने वालों में कई ऐसे भी हैं, जिनके परिवारों को आज तक कोई सहायता नहीं मिल सकी. देखा जाए तो महीनेवारी के अनुसार जनवरी माह में 81, फरवरी में 71, मार्च में 105, अप्रैल में 74, मई में 100, जून में 100, जुलाई में 67 कुल मिलाकर 598 किसानों की आत्महत्या की संख्या का आंकडा सामने आ रहा है. पश्चिम विदर्भ के किसानों की समस्याएं वर्षों से एक जैसी बनी हुई हैं, जिसमें अनिश्चित मानसून, फसल बर्बादी, साहूकारों का दबाव, बेटियों की शादी का खर्च, गंभीर बीमारियां और सरकारी योजनाओं की जटिलताएं की समस्याएं सामने आती है.
* जिलावार मृतक किसानों के आंकडे
यवतमाल – 196
अमरावती – 118
अकोला – 110
बुलढाना – 102
वाशिम – 72





