विश्व हिंदू परिषद का 61 वा स्थापना दिवस संपन्न
विदर्भ प्रांत के डॉ. किशोर चिटके ने किया मार्गदर्शन

अमरावती/दि. 23 – स्थानीय श्री बालाजी मंदिर संस्थान, इतवारा बाजार, अमरावती के सभागृह में विश्व हिंदू परिषद के 61 वे स्थापना दिवस के कार्यक्रम में भगवान श्रीकृष्ण एवं भारत माता का पुजन किया गया. इस अवसर पर विश्व हिन्दु परिषद के विदर्भ प्रांत के डॉ. सुरेशजी चिटके ने अपने संबोधन में कहां कि देश की राजनैतिक स्वंतत्रता के पश्चात कथित सेक्युलर वाद के नाम पर हिंदू समाज पर बढते अन्याय तथा ईसाईयों व मुसलमानों के तुष्टिकरण के बीच 1957 में नियोगी कमीशन रिपोर्ट आई. इसमें ईसाई मिशनरियों द्बारा छल, कपट, लोभ, लालच व धोखे से पूरे देश में हिंदुओं के धर्मांतरण की सच्चाई सामने आने के बावजूद तत्कालीन केंद्र सरकार द्बारा धर्मांतरण के विरूध्द केंद्रीय कानून बनाने से स्पष्ट मना कर दिया गया. उधर विदेशों में रहनेवाला हिंदू समाज भी अपनी विविध समस्याओं के समाधान हेतु भारत की ओर ताक तो रहा था किंतु उसके प्रति भी केंद्र सरकार के उदासीन रवैएने निराश ही किया. ऐसे में हिंदू समाज को संगठितकर धर्मरक्षा करने तथ हिंदू धार्मिक सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन मूल्यों की रक्षा हेतु साठ वर्ष पूर्व जन्माष्टमी (अंग्रेजी दिनांक अनुसार 29 अगस्त 1964) को विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हुई.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और हिंदुस्तान समाचार के संस्थापक श्री दादासाहेब आप्टे जी के साथ जन्माष्टमी के पावन अवसर पर, पवई, मुंबई स्थित पूज्य स्वामी चिन्मयानंदजी के आश्रम सांदीपनि साधनालय में पूज्य स्वामी चिन्मयानंद, राष्ट्रसंत श्री तुकडोजी महाराज, सिख संप्रदाय से माननीय मास्टर तारासिंह जैन संप्रदाय से पूज्य शील मुनि, गीता प्रेस गोरखपुर से हनुमान प्रसाद पोद्दार, के. एम मुंशी तथा पुज्य श्री एम.एस गोलवलकर गुरूजी सहित 40-45 अन्य महानुभाव भी उपस्थित थे. इसी बैठक में हिंदूसमाज को संगठित और जागृत करने, उसके स्वत्वों, मानबिंदुओें तथा जीवन मूल्यों की रक्षा और संवर्धन करने तथा विदेशस्थ हिंदुओं से संपर्क स्थापित कर उन्हें सुद़ृढ बनाने व उनकी सहाय्यता करने संबंधी विश्व हिंदू परिषद के तीन मुख्य उद्देश्य तय किए गए. हिंदु की परिभाषा करते हुए कहा गया, ‘जो व्यक्ति भारत में विकसित हुए जीवन मूल्यों में आस्था रखता है या जो व्यक्ति स्वयं को हिंदू कहता है वह हिंदू है. ’ मैसूर के महाराज मा. चामराजजी वडियार को प्रथम अध्यक्ष व दादासाहब आप्टे को पहले महामंत्री के रूप में घोषित कर विहिप की प्रबंध समिति की घोषणा भी हुई. इस सम्मेलन में जहां परावर्तन को मान्यता देने का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित हुआ वहीं विहिप के बोध वाक्य ‘धर्मो रक्षति रक्षित और बोध चिन्ह अक्षय वटवृक्ष’ भी तय हुआ. इस कार्यक्रम में विश्व हिंदु परिषद के जिला अध्यक्ष अनिल साहू, प्रचारक विशाल राउत राजीवजी देशमुख, बंटी पारवानी, विजय खडसे, योगिता कलंबे, लीना शर्मा, संजीवनी गुप्ता, मिना ठाकुर, वैशाली शेलके, शुध्दमती आसरे, मुक्ता वानखडे, शरद अग्रवाल, आकाश पाली, दीपक महाराज पाठक, त्रिदेवजी ढेंडवाल, अनिल शर्मा शंतनु भंडारजकर, धनंजय महाराज पांडे, चेतन वाटनकर, सचिन बानपुरे, प्रकाशजी लुगीकर, धर्मेंद्र गुप्ता, अमोल मोकलकर, पंकज गायकवाड, साहित सोननकर व कार्यकर्ता गण उपस्थित थे.





