पत्नी को अलग-अलग कानून के तहत खावटी पति पर अन्याय
हाई कोर्ट का फैसला

नागपुर/दि.20- पत्नी को अलग-अलग कानून अंतर्गत अलग-अलग खावटी नहीं दी जा सकती, ऐसा करना पती पर अन्याय होगा. इसलिए खावटी के मामलों में पत्नी के अधिकार कायम रहे व पति पर भी अन्याय नहीं हो, इसी पद्धति से खावटी दी जानी चाहिए, ऐसा हाई कोर्ट का कहना है. हाई कोर्ट के नागपुर खंडपीठ में एक मामले में निर्णय देते हुए संबंधित फैसला सुनाया.
पीडित पत्नी को पति से कौटूंबिक हिंसाचार कानून की धारा 125 व हिंदू विवाह कानून अंतर्गत खावटी मांगने का अधिकार है. जिसके तहत अकोला जिला निवासी एक पत्नी ने भादवि की धारा 125 अंतर्गत प्रथम श्रेणी न्यायदंडाधिकारी के कोर्ट में व हिंदी विवाह कानून की धारा 24 अंतर्गत वरिष्ठ स्तर दिवाणी कोर्ट में खावटी का दावा दाखिल किया था. 24 जून 2016 को प्रथम श्रेणी न्यायदंडाधिकारी के कोर्ट ने पत्नी व उसके अल्पवयीन बच्चे को 1 हजार 500 रुपए के हिसाब से 3 हजार रुपए व वरिष्ठ स्तर दिवाणी कोर्ट ने पत्नी को 2 हजार 500 रुपए खावटी मंजूर की है. जिसमें पति ने दिवाणी न्यायालय में आवेदन कर खावटी पर पुनर्विचार की मांग की थी. लेकिन यह याचिका 7 मार्च 2018 को खारिज होने से पति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक मामले पर आये फैसले को ध्यान में रखकर पत्नी को अलग-अलग कानून अंतर्गत अलग-अलग खावटी नहीं दी जा सकती. ऐसा स्पष्ट किया. कोर्ट ने विभिन्न मुद्दों को ध्यान में रखकर पत्नी को 2 हजार 500 रुपए खावटी के लिए प्रात्र बताया है. उसके अल्पवयीन बेटे के लिए मंजूर 1 हजार 500 रुपए खावटी कायम रखी गई है. जिससे अब उसे 4 हजार रुपए खावटी देनी पडेगी. इससे पहले दोनों कोर्ट ने केवल पत्नी को ही 4 हजार रुपए खावटी मंजूर की थी.