अमरावतीमहाराष्ट्र

महाभारत व गीता से सिखी जा सकती है जीवन जीने की कला

स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज का कथन

* रोटरी क्लब के कार्यक्रम में की ‘अमृतवर्षा’
अमरावती /दि.9- अमुमन लोगबाग यह सोचते है कि, महाभारत के ग्रंथ को घर में नहीं रखना चाहिए. क्योंकि इससे कलह होती है. जबकि हकिकत इससे बिलकुल उलट है. क्योंकि महाभारत विश्व का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है. जिसमें जीवन के हर सुख-दुख का सार छिपा हुआ है और महाभारत सहित श्रीमद् भगवत गीता के जरिए हम सभी लोग जीवन जीने की कला को सिख सकते है, इस आशय का प्रतिपादन श्रीराम मंदिर ट्रस्ट (अयोध्या) के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष व श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट (मथुरा) के उपाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज (आचार्य किशोरजी व्यास) द्वारा किया गया. रोटरी क्लब ऑफ अमरावती की ओर से आयोजित दो दिवसीय ‘अमृतवर्षा’ कार्यक्रम के पहले दिन स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज ने महाभारत एवं प्रबंधन कौशल्य विषय पर अपने विचार व्यक्त किए और बताया कि, प्रबंधन कौशल्य को सही तरीके समझने हेतु महाभारत का अध्ययन करना बेहद जरुरी है.
इस अवसर पर अपने संबोधन में स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज ने कहा कि, जीवन में आगे बढने हेतु प्रत्येक व्यक्ति ने कोई न कोई लक्ष्य जरुर बनाना चाहिए, क्योंकि कोई लक्ष्य बनाए बिना हम जीवन में किसी भी तरह की सफलता हासिल नहीं की जा सकती. इस समय स्वामीजी ने छत्रपति शिवाजी महाराज की संकल्प शक्ति का उदाहरण देते हुए कहा कि, छत्रपति शिवाजी महाराज ने महज 13-14 वर्ष की आयु में अपना लक्ष्य बना लिया था कि, उन्हें हिंदवी स्वराज्य स्थापित करना है. उस समय उनके कई साथियों को यह लगा था कि, इतनी बडी मुगल सत्ता के समक्ष इस लक्ष्य को पूरा करना लगभग असंभव है. लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज कभी भी अपने लक्ष्य से डिगे नहीं और उन्होंने अपनी संकल्पशक्ति के दम पर हिंदवी स्वराज्य स्थापित करके ही दम लिया.
इस समय स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज ने यह भी कहा कि, लक्ष्य तय करने के साथ ही उसकी प्राप्ती के लिए उसे कई चरणों व हिस्सों में विभक्त किया जाना चाहिए और फिर रणनीति बनाते हुए अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास किया जाना चाहिए. क्योंकि कोई भी संकल्प आज लिया जाए और कल पूरा हो जाए, ऐसा कभी नहीं होता. अत: लक्ष्य को पूरा करने के लिए सही रणनीति बनाते हुए उस पर अमल करना भी जरुरी होता है. इन सब बातों का ज्ञान हमें महाभारत सहित श्रीमद भगवत गीता से प्राप्त होते है. इसके साथ ही स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज ने सुख की परिकल्पना की विवेचना करते हुए कहा कि, हर किसी के लिए सुख के मायने अलग-अलग हो सकते है. कोई सत्ता, धन व मानसम्मान को प्राप्त कर लेने में ही सुख मानता है. वहीं देश में हनुमानप्रसाद पोदार जैसे व्यक्ति भी रहे, जिन्होंने यह सब छोड देने में ही सुख माना.
अमृतवर्षा के पहले दिन अपने प्रवचन में स्वामी गोविंददेव गिरी ने विदुर नीति पर चर्चा करते हुए कहा कि, विदुर नीति में चार पुरुषार्थो में से धर्म, अर्थ व काम इन तीन पुरुषार्थों की ही चर्चा की गई है और चौथे पुरुषार्थ मोक्ष के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया, यानि विदुर नीति में भी जीवन जीने के बारे में ही मार्गदर्शन किया गया है. जिसे समझने के लिए महाभारत का अध्ययन करना बेहद जरुरी है. क्योंकि महाभारत ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमें जीवन के प्रत्येक पहलु की चर्चा की गई है. यदि उसे सही तरीके से पढा व समझा जाए तो जीवन की सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है. जो कहीं भी अन्य मिलना संभव नहीं है. यही वजह है कि, महाभारत को प्रबंधन शास्त्र का शिखर कहा जा सकता है.
रोटरी क्लब ऑफ अमरावती की और से आयोजित इस दो दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र राठी, सीए आशीष हरकुट, सुशील लड्ढा, नीलेश परतानी, प्रशांत करवा, सारंग राऊत, नंदकिशोर राठी, राजेश मित्तल, नितिन गुप्ता, ब्रजेश सादानी, सुमीत खंडेलवाल, राम राठी, प्रशांत मोंढे, डॉ. ऋषिकेश नागलकर, उदय कालमेघ, आशीष वाकोडे, डॉ. मुरली बूब, डॉ. मंजूश्री बूब, अनिल अग्रवाल, उर्मिला कलंत्री, सुदर्शन चोरडिया, भगवान वैद्य ‘प्रखर’, गोकुलेश दम्मानी, पूजा दम्मानी, नीलेश दम्मानी, राजेश डागा, किशोर गट्टाणी, अनुपमा लड्ढा, ऋषि अग्रवाल, वसंत मालपाणी, आशीष हरकुट, नरेंद्र राठी, सुशील लड्ढा आदि सहित अनेकों गणमान्य उपस्थित थे.

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