संत सीतारामदास बाबा ने 16 वर्षो तक बनाया भोग
रंगारी गली का प्राचीन राधाकृष्ण मंदिर

* 25 मई को हो रहे सवा सौ वर्ष पूर्ण
* 75 वर्षो से नित्य ब्राम्हण भोज सेवा
* रोचक इतिहास भाग 1
अमरावती/ दि. 20 – रंगारी गली स्थित राधाकृष्ण मंदिर के आगामी शनिवार 25 मई को जेठ बदी ग्यारस पर सवा सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं. मंदिर का पूजा और सेवा भाव रोचक इतिहास रहा है.् पंडितों और वरिष्ठ जनों नेे बताया कि विदर्भ की प्रसिध्द संत विभूति सीताराम दास बाबा ने मंदिर में भगवान राधाकृष्ण के लिए 16 वर्षो तक भोग की नित्य सेवा दी. वे 1950 से पहले इस मंदिर में सेवारत थे. उन्होंने ही यहां नित्य ब्राम्हण भोज की सेवा प्रारंभ की थी. जो 7-8 दशकों से अनवरत रहने की जानकारी राधाकृष्ण सेवा समिति के गोविंद सोमाणी ने आज दोपहर अमरावती मंडल से बातचीत में दी.
समिति द्बारा पाटोत्सव
सोमाणी ने आगामी शनिवार 25 मई को भव्य पाटोत्सव के आयोजन की जानकारी दी. उन्होने बताया कि शनिवार तडके 5 बजे दुग्धाभिषेक और अन्य अभिषेक होंगे. सबेरे 7 बजे मंगल दर्शन होंगे. 8 बजे पालखी यात्रा उत्साहपूर्ण निकाली जायेगी. जवाहर गेट परिसर से भ्रमण कर पालखी राधाकृष्ण मंदिर में लौटेगी. वहां रामाश्रयी जी अर्थात माई एकादशी का महात्म्य बतलायेगी. उपरांत महाआरती होगी. प्रसादी होगी.
एक साथ लाए गये थे विग्रह
सोमाणी ने बताया कि राधाकृष्ण मंदिर की स्थापना 1901 में हुई थी. माहेश्वरी समाज ने देश में पहला माहेश्वरी भवन भी यहांं अमरावती में स्थापित किया था. जेठ बदी ग्यारस को विधि विधान से और बडे विप्र वृंद के मंत्रोच्चार के साथ स्थापना हुई थी. राधाकृष्ण मंदिर और तिवसा जीन के विग्रह एक साथ राजस्थान से लाए गये थे. तब से विग्रह विराजमान है और नित्य पूजन दर्शन होते हैं. नित्य दर्शनार्थियों को राधाकृष्ण मंदिर में अपनी- अपनी मन्नत भी पूर्ण होने के अनुभव आए हैं.
सीतारामदास बाबा बनाते रसोई
मंदिर प्रतिस्थापना पश्चात इसका स्वरूप बदला. भगवान के नित्य भेाग हेतु तत्कालीन भक्त, राठी, लक्ष्मीनारायण मंत्री, सोनी आदि ने गर्भगृह के पास ही रसोई घर बनवाया. जहां सीतारामदास बाबा ने 16 वर्षो तक भगवान के लिए भोग बनाया. वरिष्ठ जन बताते हैं कि उस समय भी वैरागी समान रहनेवाले सीतारामदासजी मानधन एकत्र करते थे. इसी मानधन की राशि से उन्होंने मंदिर में विप्र भोज स्वयं प्रारंभ किया था. अनेक दशकों तक यह भोज नित्य रूप से चलता रहा.
आज भी अनवरत है भोज
विप्र जनों के लिए सीतारामदास जी की प्रेरणा से प्रारंभ भोजन प्रसादी राधाकृष्ण मंदिर में लगभग 80 वर्षो अनवरत है. किसी भी प्रकार की स्थिति में भी यहां नित्य रसोई तैयार होती और भगवान को अर्पण करने पश्चात कम से कम पांच ब्राम्हणों को भोजन करवाया जाता है. उसी प्रकार जन्माष्टमी, शरद पूर्णिमा, कार्तिक मास, पुरूषोत्तम मास, श्रावण महीने के आयोजन, उत्सव नित्य रहे हैं. (क्रमश: )