विस्थापित मांग्या गांव में केसरिया आम का बाग

कमर धुर्वे ने दृढ इच्छा शक्ति से किया कमाल, कुछ अलग ही है आम का स्वाद

धारणी/ दि. 24– जहां चाह, वहां राह, इस कहावत की तर्ज पर ही धारणी तहसील से विस्थापित किए गये गांव मांग्या में वापस लौटकर कमल धुर्वे ने अपने खेत में केसर्‍या (केसर)प्रजाति के आम के बाग को सफल कर दिखाया. ऐसे में लोग अब कमल धुर्वे के खेेत के आमों का ‘ मांग्या केसर्‍या ’ के तौर पर संबोधित करते है.
मेलघाट में गावरानी आम बहुत बडे प्रमाण में है. जंगल की पहाडियों पर जंगली आम भी है. परंतु आमझरी और माखला को छोडकर आम के बागान नहीं है. अथवा व्यावसायिक आम की खेती बहुत कम किसान करते हैं. धारणी तहसील का मांग्या गांव प्रकल्प में रहने से 8 वर्ष पहले पुनर्वसन किया गया था. परंतु खेत, जंगल और नैसर्गिक माहौल के अनेक शौकीन पुन: गांव में रहते हैं. कमल धुर्वे ने 5 वर्ष पहले तहसील कृषि अधिकारी कार्यालय, धारणी से फल उद्यान योजना लेकर 600 केसर आमों की बुआई की थी. उसके बाग में इस वर्ष पहली बहार आयी है और वह अन्य किसानों के लिए प्रेरणा साबित हो रहा है.
परंपरागत केसर आम की तुलना में साइज में थोडा सा छोटा परंतु पक्के केसरी रंग का आम देखकर ही स्थानीय लोगों ने इस आम का ‘मांग्या केसर्‍या ’ नामकरण किया हुआ है. इस आम की बुआई करने के लिए और उसे समय पर पानी देने के लिए कमल धुर्वे ने भारी मशक्कत और प्रयास किए है. जबकि हिंसक वन्य पशुओं की भय से सुरक्षा के लिए धुर्वे परिवार के सभी सदस्यों ने इकट्ठा प्रयास किए. कमल धुर्वे के बाग में आम की बहार बहुत बडी संख्या में पक्षियोें की तकलीफ बढ गई है. ऐसे में सुरक्षा के लिए मेलघाट की गुलेल (गोफण) का उपयोग धुर्वे परिवार कर रहा है. इसी दौरान कमल ने भुट्टे की भी फसल लगाई है. ऐसी जानकारी है. कमल धुर्वे के बागान के ‘मांग्या केसर्‍या’ आम का स्वाद अलग ही है. अभी से इस आम की मांग की जा रही है. फिलहाल लकडी के मचान पर बैठकर आम के पेड की सुरक्षा की जा रही है.

 

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