कृषि उपज खरीदी कंपनियों की वजह से वैदर्भिय किसानों का बडा नुकसान

विधायक सुलभा खोडके ने पावस सत्र में उठाया मुद्दा, किसानों को आर्थिक मुआवजा दिए जाने की मांग भी की

मुंबई/दि.2 – कृषि उपज खरीदी कंपनियों द्वारा सरकार के नाम पर सोयाबीन खरीदी में की गई गडबडियों की गूंज आज राज्य विधान मंडल के पावसकालिन सत्र में भी सुनाई दी. अमरावती की विधायक सुलभा खोडके ने यह प्रश्न उपस्थित करते हुए बताया कि, किसानों से माल खरीदी करने के बाद वखार महामंडल के गोदामों में माल कम जमा हुआ है. जिसका सीधा मतलब है कि, खरीदी में बडे पैमाने पर गडबडी हुई है. उसी तरह विदर्भ के 60 से 70 किसानों को 63.64 लाख रुपयों की नुकसान भरपाई देय रहने के बावजूद केवल 38 लाख रुपए ही दिए जा रहे है. चूंकि कंपनी ने आर्थिक गडबडी की है और कंपनी पर कार्रवाई प्रस्तावित है. साथ ही इसमें किसानों का कोई दोष नहीं है. अत: किसानों को उन्हें हुए नुकसान की ऐवज में भरपाई दी जाए, ऐसी मांग भी विधायक सुलभा खोडके द्वारा विधानसभा में उठाई गई.
इस विषय को लेकर विधायक सुलभा खोडके का कहना रहा कि, किसानों द्वारा उत्पादित माल को नाफेड के जरिए महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन अंतर्गत विदर्भ को-ऑपरेटिव मार्केटिंग के जरिए खरीदा जाता है. इस हेतु कुछ किसान उत्पादक कंपनियों के ग्रेडर की नियुक्ति की जाती है और उनके माध्यम से किसानों का माल खरीदने की प्रक्रिया की जाती है. सन 2024-25 के सीजन में सोयाबीन खरीदी के दौरान बडे पैमाने पर गडबडियां होने के चलते विदर्भ के 60 से 70 किसानों का लगभग 63.64 लाख रुपयों का नुकसान हुआ है. एक ओर तो पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन रहने की बात कही गई. वहीं दूसरी ओर किसानों को किसान उत्पादक कंपनियों के ग्रेडर द्वारा माल खरीदी की पावती दी गई. जबकि हकीकत में फेडरेशन कंपनियों पर किसानों का माल खरीदने के बाद उसे वखार महामंडल के पास जमा कराने की जिम्मेदारी है. जिसके बाद ही उनके देयक अदा करना अपेक्षित था और पावतीयां जमा करने के बाद ही सभी देयक अदा होने चाहिए थे. परंतु ऐसा नहीं होने की वजह से किसानों का बडे पैमाने पर नुकसान हुआ है, ऐसा भी विधायक सुलभा खोडके का सदन में कहना रहा. विधायक खोडके ने यह भी कहा कि, सोयाबीन खरीदी के बाद उसे तुरंत वखार महामंडल के पास जमा करने और वेयर हाऊस की रसीदें व अन्य जानकारी जिला पणन कार्यालय में जमा कराने का काम अपेक्षित रहने के बावजूद किसान उत्पादक कंपनी ने उसमें से किसी भी काम की पूर्तता नहीं की. जिसके चलते नाफेड के मार्फत किसानों को उनकी रकम का मुआवजा नहीं मिल पाया. जिससे किसानों का काफी बडा नुकसान हुआ है. वहीं दूसरी ओर पणन कार्यालय द्वारा संबंधित कंपनी से वसूली करने की बात कही जा रही है. परंतु अकेले विदर्भ में ही 60 से 70 किसानों को 63.64 लाख रुपए का भुगतान देना है और सरकार खुद स्वीकार कर रही है कि, केवल 36 लाख रुपए की रकम जमा है. ऐसे में सरकार ने स्पष्ट करना चाहिए कि, इसमें किसानों की क्या गलती है और सरकार द्वारा संबंधित किसान उत्पादक कंपनी पर क्या कार्रवाई की गई है, साथ ही किसानों को उनकी उपज का भुगतान कब तक मिलेगा.
विधायक सुलभा खोडके द्वारा उपस्थित किए गए मुद्दे पर जवाब देते हुए राज्य के पणन मंत्री जयकुमार रावल ने कहा कि, केंद्र सरकार द्वारा तय की गई आधारभूत दरो के अनुसार नाफेड के जरिए खरीदी कालावधि के दौरान 19 हजार क्विंटल सोयाबीन की ऑनलाइन खरीदी की गई, तथा गोदाम की रसीदे नाफेड कार्यालय को प्रस्तुत की गई. परंतु इसमें करीब 1200 क्विंटल माल कम है. चूंकि खरीदी की जानकारी को पोर्टल पर दर्ज करते हुए सोयाबीन को वखार महामंडल के गोदाम में जमा नहीं कराया गया. जिसकी वजह से किसानों को नाफेड की ओर से भुगतान नहीं हो पाया है. ऐसे में संबंधित कंपनी से वसूली करने हेतु सरकार द्वारा आवश्यक प्रयास किए जा रहे है. इस समय विधायक खोडके द्वारा उपस्थित किए गए मुद्दे की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए विधानसभा अध्यक्ष एड. राहुल नार्वेकर ने भी जानना चाहा कि, जब माल कम आया था तो कंपनी के देयक कैसे अदा किए गए. इस पर मंत्री जयकुमार रावल द्वारा स्पष्ट किया गया कि, अब तक कोई भी देयक अदा नहीं किया गया है और संबंधित कंपनी को काली सूची में भी डाल दिया गया है तथा उस कंपनी को केंद्र व राज्य सरकार की किसी भी खरीदी प्रक्रिया में शामिल होने के लिए प्रतिबंधित किया गया है. इसके अलावा किसानों के देयक अदा करने के संदर्भ में कंपनी को देय रहनेवाली पूरी रकम रोककर रखा गया है और कंपनी से वसूली करते हुए किसानों को जल्द ही नुकसान भरपाई देने हेतु सरकार द्वारा आवश्यक प्रयास किए जा रहे है.

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