अब आसमान में उडते हुए देख सकेंगे चिखलदरा का सौंदर्य
वन विभाग ने शुरु की पैरामोटरिंग की सेवा

* चिखलदरा में तीन हजार फीट तक उड सकेंगे पर्यटक
अमरावती/दि.8– चारों ओर हरेभरे जंगल, गहरी घाटियां और उंचे पहाड जैसे चिखलदरा के बेहद सुंदर दृश्यों को अब पर्यटकों द्वारा पक्षियों की तरह हवा में उडते हुए बेहद नजदिक से देखा जा सकेगा. जिसके लिए वन विभाग द्वारा चिखलदरा में पैरामोटरिंग की सेवा शुरु की गई है और इस जरिए अब चिखलदरा में पर्यटक हवा में करीब तीन हजार फीट की उंचाई तक उडान भर सकेंगे. जिसके चलते अब चिखलदरा में घुमने-फिरने हेतु जाना एक अलग तरह का अनुभव साबित होनेवाला है.
उल्लेखनीय है कि, चिखलदरा के विहंगम दृष्य हमेशा ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते है. साथ ही साथ गहरी खाईयों में उतरने और उंचे पहाडों पर चढने जैसे रोमांचक अनुभवों के लिए भी साहसी पर्यटक अक्सर ही चिखलदरा सहित मेलघाट में आते है. वहीं अब पैरामोटरिंग के चलते साहसी पर्यटकों के लिए भीमकुंड की गहरी खाई, गाविलगड किला, स्कायवॉक पाइंट तथा चिखलदरा शहर सहित आसपास के जंगल को आसमान में उडते हुए देखने का अवसर भी उपलब्ध रहेगा. जिसके चलते चिखलदरा के पर्यटन क्षेत्र में एक नई क्रांति आनेवाली है.
* पायलट ने लिया है दो साल का प्रशिक्षण
वन विभाग ने चिखलदरा में पैरामोटरिंग की सुविधा आशीष तोमर नामक पैरामोटरिंग पायलट की सहायता से शुरु की है. चिखलदरा में पर्यटकों के लिए पैरामोटरिंग की सुविधा शुरु करने से पहले आशीष तोमर ने दो साल तक पैरामोटरिंग पायलट के तौर पर प्रशिक्षण हासिल किया. साथ ही उन्हें पाँडीचेरी, जैसलमेर, हरिद्वार, अलिबाग व गोवा जैसे स्थानों पर पैरामोटरिंग पायलट के तौर पर चार वर्ष तक काम करने का अनुभव भी है. जिनके साथ चिखलदरा में पैरामोटरिंग करना बेहद सुरक्षित है.
* मेलघाट में वन विभाग के लिए पहली बार उडाया ड्रोन
ग्रीष्मकाल के दौरान मेलघाट के जंगलो में हमेशा लगनेवाली आग पर नियंत्रण हासिल करने हेतु सन 2013 में मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के विभागीय वन अधिकारी विशाल माली ने आशीष तोमर के जरिए ही पहली बार मेलघाट में ड्रोन कैमरे से पूरे जंगल परिसर का निरीक्षण किया. इसके बाद जंगल में आग लगानेवाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई होने लगी. साथ ही साथ जंगल में कहां पर आग लगी है, इसकी भी जानकारी मिलने लगी. साथ ही साथ पूरे मेलघाट क्षेत्र में जंगलों की निगरानी व निरीक्षण करने हेतु ड्रोन का प्रयोग होने के चलते जंगल में लगनेवाली आग का प्रमाण भी घट गया.





