…तो नाबालिग बच्चे का डीएनए परीक्षण नहीं कराया जा सकता
हाईकोर्ट का अहम फैसला

* पारिवारिक न्यायालय का विवादास्पद आदेश किया रद्द
* याचिका पर सुनवाई के दौरान पितृत्व को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय
नागपुर/दि.11-बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ के न्यायमूर्ति आर.एम. जोशी ने एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि यदि पति ने पितृत्व से इनकार नहीं किया है, तो सिर्फ पत्नी के व्यभिचार को साबित करने के लिए नाबालिग बच्चे का डीएनए परीक्षण नहीं कराया जा सकता. इस मामले में, पति ने पत्नी के व्यभिचार, क्रूरता और अवैध अलगांव के आधार पर तलाक लेने के लिए पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर की थी. इस बीच, उसने अपनी पत्नी के व्यभिचार को साबित करने के लिए बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने की मांग की थी.
पारिवारिक न्यायालय ने 17 फरवरी, 2020 को यह मांग स्वीकार कर ली. पत्नी और बच्चे ने इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. इस पर सुनवाई के बाद, उच्च न्यायालय ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को अमान्य घोषित कर रद्द कर दिया. इस मामले में पति ने कहीं भी यह नहीं कहा कि वह संबंधित बच्चे का पिता नहीं है और किसी भी निश्चित अवधि के दौरान उसका अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संपर्क नहीं रहा. ऐसे में बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने का सवाल ही नहीं उठता. पति अन्य साक्ष्यों के आधार पर अपनी पत्नी के व्यभिचार को साबित कर सकता है. इसके लिए बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने की कोई आवश्यकता नहीं होने की बात उच्च न्यायालय ने स्पष्ट की.
* परिणामों के बारे में भी सोचना जरूरी
किसी को भी डीएनए परीक्षण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. खासकर यदि बच्चे नाबालिग हैं, तो वे इस संबंध में स्वयं निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं. ऐसे में न्यायालय की जिम्मेदारी बढ जाती है. वह केवल मामले पर निर्णय देने के बारे में नहीं सोच सकता है. बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना और निर्णय के अच्छे-बुरे परिणामों पर विचार करना आवश्यक होने की राय भी उच्च न्यायालय ने व्यक्त की.
* पत्नी नागपुर की पति भंडारा का
मामले में पत्नी नागपुर की है और पति भंडारा जिले का निवासी है. उनकी शादी 18 दिसंबर 2011 को हुई थी. उसके बाद, पारिवारिक विवादों के चलते, पत्नी 19 जनवरी 2013 को अपने पति से अलग हो गई. उस समय वह तीन महीने की गर्भवती थी. उसने 27 जुलाई 2013 को एक बच्चे को जन्म दिया. ज्ञात हो कि पति-पत्नी के अनेक विवाद पारिवारिक न्यायालय में पहुंच रहे हैं. कई ऐसे दांपत्य जीवन हैं, जहां पति और पत्नी में आए दिन थोडी-बहुत खटपट होती है. ऐसे मामले पारिवारिक अदालत में पहुंच रहे हैं.





