जिले में केवल 4519 हेक्टेयर में ज्वार की बुवाई

इस वर्ष लगातार घट रहा बुवाई क्षेत्र

* किसानों का रुझान नकदी फसलों की ओर
अमरावती/दि.24 – लगातार नुकसान, उत्पादन में गिरावट, बढती कीमतों और जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान के कारण, ज्वार का रकबा हाल ही में लगातार घट रहा है. इस साल खरीफ सीजन में जिले में केवल 4519 हेक्टेयर में ज्वार की बुवाई हुई है. इसकी तुलना में कपास, अरहर, सोयाबीन और मक्का का रकबा बढ रहा है. हालांकि, किसानों का रुझान खरीफ फसलों की ओर है, लेकिन फसल पद्धति में बदलाव आने लगा है. इस साल ज्वार का रकबा कम हुआ है और मक्का 50,000 हेक्टेयर में बोया गया है. कटाई के मौसम में बारिश के कारण ज्वार को भारी नुकसान होने के कारण किसान अब विकल्प तलाश रहे हैं.
ऐसे में मक्के का उत्पादन बढ रहा है. मवेशियों के लिए चारा भी उपलब्ध है और चूंकि मक्के की मांग है, इसलिए बाजार भी उपलब्ध है. ज्वार का रकबा घट रहा है, जबकि मक्का और अन्य फसलों का रकबा बढ रहा है. यह एक तथ्य है कि रबी के मौसम में जिले में ज्वार का रकबा बढ रहा है. इसका असर खरीफ में ज्वार पर पड रहा है.
* ज्वार की बुवाई कम, मक्का की बढी
इस वर्ष ज्वार की फसल के लिए 12 हजार हेक्टेयर क्षेत्र प्रस्तावित था, जबकि इसकी तुलना में 5 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई हो चुकी है, जबकि मक्का के लिए 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र प्रस्तावित था, लेकिन 51 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई हो चुकी है.
* सरकारी खरीद पर निर्भरता
ज्वार को तभी उचित दाम मिलता है जब उसे नाफेड के माध्यम से समर्थन मूल्य पर खरीदा जाए. अन्यथा, किसानों को बाजार समिति और निजी बाजारों में 2 हजार रुपये प्रति क्विंटल के भाव से ज्वार बेचना पडता है.
* पांच तहसीलों में ज्वार की बुवाई शून्य
किसानों की कम रुचि के कारण, पांच-छह तहसीलों में ज्वार की बुवाई का रकबा नगण्य है. केवल मेलघाट, चिखलदरा और धारणी तालुकाओं में ही 3200 हेक्टेयर में ज्वार की बुवाई हुई है. इसके अलावा, वरुड, अचलपुर और मोर्शी तहसील में भी थोडा-बहुत रकबा है.

बारिश के कारण ज्वार खराब हो रहा है, वहीं दाम भी नहीं मिल रहे हैं. इसके लिए सरकारी खरीद का इंतजार करना पड रहा है. इस वजह से ज्वार की बुआई का रकबा कम हो गया है.
-मोहन वानखडेे, किसान

ज्वार के एक सक्षम विकल्प के रूप में मक्के की बढती मांग और कम समय में अच्छी उपज के कारण इसकी कीमत बढ रही है. इसके अलावा, मक्के का रकबा भी बढ रहा है क्योंकि यह पशुओं के लिए चारा उपलब्ध कराता है.
-सदाशिव टापरे, किसान

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