फिल्मों की दीवानगी हो रही गायब, धडल्ले से बंद हो रहे सिंगल स्क्रिन थिएटर
शहर 9 टॉकीजे बंद, केवल 2 ही शुरु

* 9 टॉकीजों में नहीं होता फिल्मों का प्रदर्शन
* 3 टॉकीजों की जगह पर बन चुके है मार्केट
* 6 टॉकीजे अरसा पहले ही हो गई थी बंद
* प्रभात व प्रिया टॉकीज में ही चल रहे शो
अमरावती/दि.30 – किसी वक्त फिल्मों को सेल्युलाइड यानि सुनहरे परदे पर देखने की हद दर्जे तक दिवानगी का आलम हुआ करता था और उस दौर में फिल्मे भी सिल्वर ज्युबिली व गोल्डन ज्युबिली मनाया करती थी. साथ ही साथ फिल्मो के प्रति दिवानगी का यह आलम हुआ करता था कि, ‘फर्स्ट डे, फस्ट शो’ देखने के लिए टॉकिजों के बाहर तौबा भीड होने के साथ ही बुकिंग विंडो के सामने टिकटों के लिए दर्शकों की लंबी-लंबी कतारे लगा करती थी. साथ ही साथ उस दौर में टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग भी अपने-आप में एकतरह का समांतर बिझनेस हुआ करता था. फिल्मों के प्रति लोगों के आकर्षण और उनकी दिवानगी को देखते हुए मांग के अनुरुप आपूर्ति वाले बाजारी सूत्र के मुताबिक उस समय अमरावती शहर में 11 आलिशान व शानदार टाकिजे हुआ करती थी. जिनके लोअर (थर्ड क्लास), सर्कल (सेकंड क्लास), अप्पर (फर्स्ट क्लास) सहित बाल्कनी व बॉक्स अक्सर ही हाऊसफुल हुआ करते थे. लेकिन धीरे-धीरे यह दौर बीते वक्त की बात में जमा हो गया और फिल्मों के प्रति दिवानगी कम होने के साथ-साथ फिल्मे देखने हेतु अन्य साधनों की उपलब्धता के चलते टॉकिजों पर उमडनेवाली दर्शकों की भीड कम होने लगी. साथ ही साथ अब इक्का-दुक्का फिल्मे ही शुक्रवार को रिलीज के बाद अगले दो दिनों में विकेंड के दौरान दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर पाती है. जिसके चलते धीरे-धीरे शहर में टॉकिजों के बंद होने का सिलसिला शुरु हुआ और इस समय आलम यह है कि, शहर की 11 में से प्रभात और प्रिया नामक केवल 2 टॉकिजे ही चल रही है. जहां पर इस समय फिल्मों का प्रदर्शन हो रहा है. वहीं सरोज व राजकमल नामक टॉकिजे फिलहाल अस्थाई तौर पर बंद है. जबकि चित्रा, वसंत, श्याम, पंचशील, अलंकार, गोपाल व महावीर हमेशा के लिए बंद होकर इतिहासजमा हो चुकी है.
बता दें कि, जब परकोट से बाहर अमरावती शहर का विकास हो रहा था तब नए सिरे से विस्तारित हो रहे अमरावती शहर में मुख्य बाजारपेठों एवं रिहायशी वस्तीयों के आकार लेते वक्त मुख्य बाजारपेठों में टॉकिजों का भी निर्माण हुआ. जिनमें चित्रा, वसंत, श्याम, प्रिया, पंचशील, अलंकार, राजलक्ष्मी, प्रभात, महावीर, सरोज टॉकीज का समावेश था. वहीं गोपाल टॉकीज ही एकमात्र ऐसी टॉकीज थी, जो मुख्य बाजारपेठ से अलग राजापेठ परिसर में रेलवे पटरी के उस ओर स्थापित हुई थी. वहीं शेष 10 टॉकिजे शहर के बिलकुल बीचोबीच प्रमुख व्यवसायिक क्षेत्रों में स्थित थी. जिनमें राजलक्ष्मी व श्याम टॉकीज तो शहर के बिलकुल बीचोंबीच स्थित थी. उस समय यह सभी टॉकिजे अमरावती शहर के लिहाज से एकतरह का माईलस्टोन भी बन गई थी. क्योंकि जिन स्थानों पर यह टॉकिजे स्थित थी, उन इलाकों का नाम इन्हीं टॉकिजों के नाम पर पड गया था. मसलन चित्रा चौक, वसंत चौक, श्याम चौक, राजकमल चौक, प्रभात चौक, गोपाल टॉकीज रोड व सरोज चौक जैसे नाम चलन में आ गए थे. खास बात यह भी है कि, भले हीी आज चित्रा टॉकीज, वसंत टॉकीज, श्याम टॉकीज, राजलक्ष्मी टॉकीज व गोपाल टॉकीज हमेशा के लिए बंद हो गए है. परंतु उन टॉकिजों के नाम पर रहनेवाले चौक-चौराहों के नाम अब भी चलन में है.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, जहां एक ओर मनोरंजन के अन्य साधन उपलब्ध होने के चलते दर्शकों में फिल्मों के प्रति दिवानगी कम हुई और फिल्म देखने हेतु टॉकिजों में आनेवाले दर्शकों की संख्या घटनी शुरु हो गई. वहीं दूसरी ओर टॉकीज मालिकों के लिए टॉकिजों को चलाना काफी महंगा सौदा साबित होने लगा. क्योंकि टॉकिजों के लिए उपयोग में लाई जानेवाली काफी बडी जमीन की ऐवज में अच्छे-खासे संपत्ति कर का भुगतान अदा करना पडता है. साथ ही साथ अपने-आप में काफी बडी इमारत रहनेवाली टॉकीज के रखरखाव, देखभाल व दुरुस्ती पर अच्छा-खासा पैसा भी खर्च करना होता है. इसके अलावा प्रत्येक शो के लिए खर्च होनेवाली बिजली और आवश्यक मनुष्यबल पर भी अच्छा-खासा पैसा खर्च होता है. जबकि कई शो ऐसे भी होते, जिनमें दर्शकों की संख्या उंगलियों पर गिने जाने लायक होती है. ऐसे में कुल मिलाकर आमदनी अठ्ठनी व खर्चा रुपय्या वाली स्थिति बनी हुई है और टॉकिजों को चलाना घाटे का सौदा साबित होने लगा है. इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि, शहर के प्रमुख व्यापारिक क्षेत्रों में गुजरते वक्त के साथ ही जमिनों के दाम आसमान छूने लगे है और जिन जमिनों पर टाकिजें चल रही है, उन जमिनों की कीमते अब करोडों रुपयों में है. ऐसे में करोडों-अरबों रुपयों की जमीन का टॉकीज जैसे व्यवसाय के लिए उपयोग करना भी एकतरह से घाटे का सौदा साबित होने लगा है. जिसके चलते कई टॉकीज मालिकों ने अपनी टॉकिजों को बंद कर उस जगह का व्यवसायिक इस्तेमाल करने के पर्याय को चुना और एक-एक कर शहर में कई टॉकिजे बंद भी हो गई.
ध्यान दिला दे कि, अमरावती शहर में सबसे पहले जयस्तंभ चौक के पास स्थित महावीर टॉकीज बंद हुई थी. जहां पर अब होलसेल दवा बाजार स्थित है. इसके बाद वसंत टॉकीज को बंद करते हुए वहां पर राकां मॉल का निर्माण किया गया. हालांकि इस मॉल की उपरी मंजिल पर बेस्ट टॉकीज का निर्माण करते हुए एकतरह से वसंत टॉकीज को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया था. परंतु कुछ समय बाद यह प्रयास असफल साबित हुआ और बेस्ट सिनेमा भी बंद हो गया. इसके अलावा शहर के बीचोबीच स्थित श्याम टॉकीज भी अरसा पहले बंद होकर बिक गई. जिसे ‘रघुवीर’ के संचालक पोपट परिवार ने खरीद लिया था और आज श्याम टॉकीज में रघुवीर मिठाईयां व रिफ्रेशमेंट नामक प्रतिष्ठान का संचालन हो रहा है.
इसके अलावा राजापेठ परिसर स्थित गोपाल टॉकीज का संचालन भी काफी अरसा पहले बंद हो गया था और गोपाल टॉकीज की इमारत को तोड दिया गया था. जहां पर इस समय खाली जमीन पडी हुई है. इसी तरह पुरानी पंचशील व अलंकार टॉकीज के स्थान पर आगे चलकर बिग सिनेमा (राजेश) की स्थापना की गई थी और नए व हाईटेक कलेवर के साथ इन दोनों टॉकिजों को शुरु किया गया था. परंतु दर्शकों के अल्प प्रतिसाद एवं भीड खींचने में नाकाम रहनेवाली फिल्मो के साथ-साथ लगातार बढते खर्चों के चलते बिग सिनेमा (राजेश) को भी टॉकीज मालिक परिवार द्वारा बंद करने का निर्णय लिया गया. साथ ही आगे चलकर इस टॉकीज की इमारत को गिराकर उसे जमीनदोज कर दिया गया. जिसके चलते आज पंचशील व अलंकार टॉकीज वाली जगह पर खुली जमीन पडी हुई है. वहीं शहर के भीडभाड से भरे रहनेवाले इतवारा बाजार के पास स्थित चित्रा टॉकीज को भी अरसा पहले बंद कर दिया गया. इस समय चित्रा टॉकीज की विशालकाय इमारत अपने स्थान पर खडी है और एक से बढकर एक हिट फिल्मों के प्रदर्शन तथा फिल्मों की दिवानगी वाले गुजरे दौर की यादों को ताजा करती है.
इसके साथ ही हाल-फिलहाल तक शुरु रहनेवाली राजलक्ष्मी व सरोज टॉकीज भी विगत कुछ समय से बंद पडी हुई है. जिसमें से राजलक्ष्मी टॉकीज के फिल्म प्रदर्शन का लाईसेंस खत्म हो जाने की जानकारी है. जिसका टॉकीज मालिक द्वारा नूतनीकरण भी नहीं कराया गया है. वहीं सरोज टॉकीज को कुछ समय पहले रिनोवेशन यानि नूतनीकरण का काम करने हेतु बंद किए जाने की जानकारी है. ऐसे में इस समय शहर में केवल प्रभात टॉकीज व प्रिया टॉकीज नामक केवल दो सिंगल स्क्रिन थिएटर चल रहे है और इन दोनों टॉकिजों ने अपने अस्तित्व को बचाए रखने के साथ-साथ गुजरे दौर की यादों को संभालकर रखा है. ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि, आखिर शहर में सिंगल स्क्रिन थिएटर कब तक अपना अस्तित्व बचाए रखने में कामयाब हो पाते है.





