रहाटगांव के गोविंदप्रभू मंदिर को लेकर फैलाई जा रही गलतफहमी

स्मशानभूमि के नाम पर गांववासियों की धार्मिक भावनाओं को भडकाया जा रहा

* महानुभाव पंथिय गोविंदप्रभू मंदिर के सेवकों ने दी जानकारी
* 800 वर्षों से उसी स्थान पर मंदिर रहने का किया दावा
अमरावती/दि.6 – रहाटगांव परिसर स्थित महानुभाव पंथियों के गोविंदप्रभू मंदिर को लेकर विगत कुछ दिनों से गांव में रहनेवाले लोगों द्वारा बेसिर-पैर की बाते फैलाने के साथ ही यह मंदिर अतिक्रमण कर बनाया गया रहने की गलतफहमी भी पैदा की जा रही है. साथ ही विगत 4 अगस्त को कुछ लोगों ने पत्रवार्ता लेते हुए यह आरोप भी लगाया कि, 7/12 दस्तावेज पर मंदिर की जानकारी को गलत तरीके से दर्ज किया गया है. जबकि इन तमाम बातों व आरोपों में कोई तथ्य नहीं है, बल्कि मंदिर की जमीन पर नजर रखनेवाले लोगों द्वारा स्मशानभूमि के मुद्दे की आड लेकर जनभावनाओं को भडकाने का काम किया जा रहा है, इस आशय का पक्ष गोविंदप्रभू मंदिर के सेवकों की ओर से रखा गया है.
यहां जारी प्रेस विज्ञप्ति में गोविंदप्रभू मंदिर के सेवक रहनेवाले प्रदीप चर्जन, विनोद ठेलकर, डॉ. सचिन चर्जन, संदीप पांडव, सुशांत चर्जन, दामोधर गोंगे, रुपराव चर्जन, धीरज मोंढे, प्रमोद मडघे, राजेंद्र अलसडे व अमोल पांडव द्वारा कहा गया कि, रहाटगांव के मौजूदा सर्वे नं. 9 में श्री गोविंदप्रभू मंदिर विगत करीब 800 वर्षों से अस्तित्व में है. ब्रिटीशकाल के दौरान खेत-जमिनों की सरकारी नापजोख करते हुए व पंजीयन की प्रक्रिया का काम शुरु हुआ. साथ ही हक पंजीयन का प्रकार भी शुरु किया गया. इस हक पंजीयन में उक्त जगह को सर्वे क्रमांक 9 व एफ क्लास के रुप में पंजीकृत किया गया. जिसका उल्लेख नदी किनारे व गांव के पास स्थित दलदली व बंजर जमीन के तौर पर होता है. आगे चलकर सन 1975 से 7/12 का प्रकार अस्तित्व में आया और उस समय यहां पर अस्तित्व में रहनेवाले सभी मंदिरों को अवैध ठहराकर कुछ लोगों ने स्थानीय राजस्व अधिकारियों के साथ मिलिभगत कर 7/12 के अन्य अधिकारों में इस जमीन को हिंदू व अन्य जाति के लोगों हेतु स्मशानभूमि के लिए आरक्षित दर्शाया. जिसके बारे में खोजबीन करने पर तहसील कार्यालय व जिलाधीश कार्यालय में इससे संबंधित कोई फेरफार प्राप्त नहीं हुआ. साथ ही मौजूदा 7/12 व फेरफार क्रमांक 20025 फर्जी व नकली रहने की बात भी सामने आई. 7/12 के फेरफार की जांच करने पर पता चला कि, उक्त फेरफार क्रमांक की कोई अधिकृत नोंद ही अस्तित्व में नहीं है. जिसके चलते उक्त 7/12 पर दर्ज जानकारी भी गैरकानूनी है. उक्त 7/12 के दस्तावेज पर कुछ लोगों ने गोविंदप्रभू मंदिर का नाम सरकारी कर्मचारियों पर दबाव डालकर दर्ज नहीं होने दिया, परंतु 21 अगस्त 2023 को महाराष्ट्र सरकार ने पूरे महाराष्ट्र राज्य में महानुभाव पंथ के स्थानों की सरकारी दस्तावेजों में जानकारी दर्ज करने हेतु परिपत्रक जारी किया है. जिसे ध्यान में रखते हुए 800 वर्षों से अस्तित्व में रहनेवाले गोविंदप्रभू मंदिर की जानकारी को सरकारी दस्तावेज में दर्ज करने हेतु मंदिर के सेवकों ने आवेदन किया था. पश्चात सरकारी आदेश का पालन करने के साथ ही विविध सबूतो व साक्ष्यों की पडताल कर उक्त 7/12 के अन्य अधिकारों में गोविंदप्रभू मंदिर की जानकारी को दर्ज किया गया और लंबे समय से चल रहा संघर्ष सफल रहा.
इस प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि, इस परिसर में विगत 100 वर्षों से अस्तित्व में रहनेवाले शिव मंदिर के भक्तगण तथा श्री गोविंदप्रभू मंदिर के भक्तगण हमेशा ही मिल-जुलकर रहते आए है और दोनों ही समुदायों के भक्तगणों के बीच आपसी सौहार्द भी कायम है. इस परिसर में गोविंदप्रभू मंदिर के साथ ही श्री महादेव मंदिर, मातामाय मंदिर पन्हालेश्वर मंदिर सहित मनपा की शाला व रिहायशी बस्ती भी है. ऐसे परिसर में कुछ लोग जानबुझकर स्मशानभूमि बनाने का जबरन प्रयास करते हुए सभी मंदिरों व देवस्थानों की अवमानना कर रहे है. साथ ही श्रद्धास्थान रहनेवाले मंदिर को अतिक्रमण का नाम देकर लोगों की धार्मिक भावनाओं ठेस भी पहुंचा रहे है. इस पत्रवार्ता के मुताबिक मनपा के सन 1992 में शुरु हुए डीपी प्लान में भी एक अन्य स्थान पर स्मशानभूमि उपलब्ध रहने के चलते इस सर्वे नंबर में स्मशानभूमि का कहीं कोई उल्लेख नहीं है. जबकि 800 वर्षों से इस स्थान पर अस्तित्व में रहनेवाले श्री गोविंदप्रभू मंदिर की जानकारी इस जोन के दाखिले में दर्ज है. वहीं शेष जगह पर मनपा ने डीपी रोड, मनपा शाला की जानकारी दर्ज करते हुए यहां पर पोस्ट ऑफीस का आरक्षण प्रस्तावित किया था. परंतु कुछ विघ्नसंतोषी लोगों ने इस सर्वे नंबर के डीपी रोड को ही बंद करवा दिया और इस पूरे मामले को एक अलग स्वरुप देते हुए जनसामान्यों के साथ दिशाभूल करने का प्रयास किया जा रहा है.

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