वो जब भी मिले, ऐसे मिले, जैसे पराए हों…
शानदार रही सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था की काव्यगोष्ठी

* संत तुलसीदास व मुंशी प्रेमचंद जयंती पर हुआ आयोजन
अमरावती /दि.11 – विगत चार दशकों से हिंदी साहित्य का प्रचार-प्रसार करने तथा स्थापित व नवोदित हस्ताक्षरों को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराने का कार्य कर रही सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था द्वारा हाल ही में रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी संत तुलसीदास व साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती उपलक्ष्य में काव्यगोष्ठी का शानदार आयोजन किया गया. जिसमें शामिल रचनाकारों ने अपनी एक से बढकर एक रचनाएं प्रस्तुत करते हुए साहित्य जगत की दोनों महान विभुतियों को अपनी आदरांजलि दी.
विगत रविवार 3 अगस्त को स्थानीय वॉलकट कंपाउंड परिसर स्थित जिला मराठी पत्रकार भवन में ख्यातनाम हिंदी-वर्हाडी कवि राजा धर्माधिकारी की अध्यक्षता के तहत आयोजित इस काव्यगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रुप में राष्ट्रीय कवि उज्वल अग्रवाल (परतवाडा) तथा सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के अध्यक्ष नरेंद्र देवरणकर ‘निर्दोष’ व सचिव बरखा शर्मा ‘क्रांति’ मंचासीन थे. इस काव्यगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए राजेश सोजरानी ‘कसब’ ने अपनी रचनाओं के जरिए अखिल भारतीय मंचों के कवियों की भूमिका पर जबरदस्त कटाक्ष किए. वहीं मोतीराम हरजीकर ने ‘वो मुझसे प्यार करती है, क्योंकि मैं उससे प्यार करता हूं’ यह प्रेमगीत सुनाकर सभी को भावविभोर कर दिया.
इसके साथ ही प्रीति यावलीकर ने जीवन के मायने बतलाते हुए सुनाया कि, ‘शायद जिंदगी बडे इम्तेहान के साथ वाकीफ हो रही है.’ वहीं अली सुबहान जैदी ने ‘तेरे बगैर ही अबके बहार गुजरी है, हर एक रात मेरी अश्क बार गुजरी है’ गझल सुनाकर सबकी वाहवाही लूटी. वहीं हनुमान गुजर ने भी ‘खुद का घर लगता है सांपों को, हमारी आस्तीन में पलते हुए’ गझल सुनाकर सभी को गदगद कर दिया. इसके साथ ही अनु साहू ‘अनु’ ने अपनी कविताओं व गीतों को सुनाकर सभी को भावविभोर किया. इसके अलावा वरिष्ठ कवि शंकर भूतडा ने आशिकाना अंदाज में रचना सुनाई कि, ‘वो जब भी मिले, ऐसे मिले, जैसे पराए हों, उन्हें देखकर ऐसा लगा, जैसे गम के सताए हों.’ इसके साथ ही दीपक दुबे ‘अकेला’ ने मन की दुविधा से निकलने का रास्ता सुझाते हुए कहा कि, ‘दुविधा छोडो सबसे पहले, लिखते जाओ, लिख मारो नहले पर दहले.’
इस समय भगवान वैद्य ‘प्रखर’ ने आदमी के आदमी होने पर सवालिया निशान उपस्थित करते हुए सुनाया कि, ‘आदमी अब केवल खालीस आदमी नहीं रहा, वह कभी गरीबी रेखा के नीचे या उपर वाला आदमी है.’ वहीं विष्णु सोलंके ने हिंदी कविताओं के साथ-साथ मराठी कविता भी सुनाई. साथ ही गौरी देशमुख ने भी अपनी शानदार रचना सुनाते हुए उपस्थितों की वाहवाही लूटी. इस समय दीपक सूर्यवंशी ‘दीपक’ ने ‘इन्सानियत से कोसों दूर भागता है आदमी, दूसरों की बस अमानत ताकता है आदमी’ रचना सुनाकर उपस्थितों को दाद देने पर मजबूर कर दिया. वहीं सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था की सचिव बरखा शर्मा ‘क्रांति’ ने अपनी रचना सुनाते हुए चिंतन प्रस्तुत किया कि, ‘कहीं सुटकेस, कहीं फ्रीज, कहीं 32 टुकडे लाशों के दिखे, क्या सोचें, क्या देखें, इन दिनों हमने कुछ नहीं लिखे.’
इस काव्यगोष्ठी में विगत पांच दशकों से साहित्य साधना कर रहे वरिष्ठ कवि रामसजीवन दुबे ‘साजन’ ने श्रृंगाररस की कविताएं सुनाने के साथ ही युद्ध के दौरान मरणासन्न सैनिक के मनोभावों को उकेरते हुए ‘साथी मुख से मत कहना तुम, संकेतों से बतला देना’ कविता सुनाकर उपस्थितों की आंखों को नम कर दिया. वहीं राष्ट्रीय हास्य कवि मनोज मद्रासी ने अपनी चुटीली रचनाएं सुनाते हुए सभी की वाहवाही लुटी. साथ ही कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रीतम जौनपुरी ने भी अपनी हास्य व्यंग्य से भरपूर रचनाएं सुनाते हुए सभी को जमकर हसाया.
इसके अलावा संतोष हांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए श्रोताओं में स्फूर्ती जगाई और निलिमा भोजने ‘नीलम’ ने भी अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई. वहीं चंद्रभूषण किल्लेदार ने ‘हार के डर से खेल छोडे नहीं जाते, जब तक है जिंदगी खेल खेले जाते है’ कविता सुनाते हुए हर हाल में आगे बढने की बात कही. वहीं आयोजन में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित राष्ट्रीय कवि उज्वल अग्रवाल ने अपनी रचनाओं के जरिए सभी को जमकर हसाया और कार्यक्रम के अध्यक्ष राजा धर्माधिकारी ने अपनी हिंदी व वर्हाडी रचनाओं के जरिए मौजूदा परिदृष्य पर जमकर चुटीले व्यंग्य कसे.
इस काव्यगोष्ठी में संचालन प्रीतम जौनपुरी व आभार प्रदर्शन दीपक सूर्यवंशी ने किया. इस अवसर पर चंद्रप्रकाश दुबे ‘असीम’, लक्ष्मीकांत खंडेलवाल, सत्यप्रकाश गुप्ता, अलका देवरणकर, राजेश शर्मा, डॉ. भस्मे, अशोक जोशी व श्रीमती किल्लेदार सहित अनेकों साहित्यप्रेमी उपस्थित थे.





