कबूतरों से फैलती हैं 60 तरह की बीमारियां
खुद अपने लिए घातक हो सकता है कबूतरों को पालना

अमरावती /दि.14 – कबूतरों की वजह से लोगों को तकलिफ होने के साथ ही स्वास्थ के लिए खतरा पैदा हो सकता है, इस आशय का निरीक्षण दर्ज करते हुए मुंबई उच्च न्यायालय ने किसी भी सार्वजनिक स्थान पर कबूतरों के लिए दाना डालने पर पाबंदी लगा दी. जिसके बाद मुंबई में धारा 223, 270 व 271 के अंतर्गत पहला अपराधिक मामला भी दर्ज हुआ. यानि अब कबूतरों को खुले में दाना डालने वाले लोगों को पिंजरे यानि सलाखों के पीछे जाने की नौबत का सामना करना पडेगा.
विशेष उल्लेखनीय है कि, अमरावती जिले में भी कबूतरों का प्रमाण काफी अधिक बढ गया है. विशेषज्ञों के मुताबिक लोगों के घरों की बाल्कनी और सज्जे पर कबूतर आकर रहते है. ऐसी जगहों पर रहनेवाले नागरिकों को कबूतरों की वजह से 60 तरह की बीमारियां हो सकती है. जिसमें सबसे प्रमुख खतरा अस्थमा जैसी बीमारी होने को लेकर होता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए लोगों ने खुद अपना स्वास्थ संभालने के लिए कबूतरों को पालना और कबूतरों को सार्वजनिक स्थानों पर दाना डालना बंद करना चाहिए.
बता दें कि, मुंबई हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में जारी किए गए आदेश में कबूतरों की लगातार बढती संख्या के चलते मानवीय स्वास्थ के लिए पैदा होनेवाले खतरों के मद्देनजर तत्काल ही प्रभावी उपाय करने के निर्देश प्रशासन को जारी किए है. क्योंकि कबूतरों की वजह से इंसानों में अस्थमा सहित 60 तरह की गंभीर बीमारियां होने की बात विशेषज्ञों की रिपोर्ट के जरिए सामने आई है. साथ ही इस रिपोर्ट में कबूतरों की तेजी से बढती संख्या को सार्वजनिक स्वास्थ के लिए गंभीर समस्या बताया गया है.
उल्लेखनीय है कि, अमरावती शहर में यद्यपि किसी भी सार्वजनिक स्थान पर कोई कबूतरखाना नहीं है. लेकिन शहर के कई इलाको में रहनेवाले लोगों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर कबूतर पाले जाते है. जिससे शहर में कबूतरों की संख्या में अच्छा-खासा इजाफा होता जा रहा है. इसके अलावा कई लोगों के घरों की बाल्कनी या छज्जे पर कबूतर अपने रहने का ठिकाना बना लेते है. साथ ही वहां पर अंडे देकर अपनी जनसंख्या भी बढाते है. जिसकी वजह से शहर में कबूतरों की संख्या तेजी से बढ रही है और यह बात अब सार्वजनिक स्वास्थ के लिए गंभीर समस्या बनी हुई है.
* इन बीमारियों का होता है खतरा
अस्थमा व ब्रॉन्कायटीस – कबूतरों के पंखों में रहनेवाली धूल और कबूतर की विष्ठा पर पनपनेवाली फफूंद की वजह से श्वसन संस्था में संक्रमण होकर अस्थमा व ब्रान्कायटीस जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है.
हिस्टोप्लाइमोसिस – कबूतरों की वजह से संक्रमण होने के साथ ही फेंफडों पर परिणाम पडता है. जिससे हिस्टोप्लाइमोसिस नामक बीमारी होने का खतरा रहता है.
सायटोकोकोसीस व एनीथोसिस – यह बैक्टेरिया की वजह से फैलनेवाली बीमारियां है. जिनकी वजह से सर्दी, खांसी व निमोनिया जैसी तकलिफे हो सकती है.
सॅल्मोनेलोसिस – कबूतर की विष्ठा की वजह से अनाज व पानी में होनेवाले बैक्टेरियल संकमण के चलते सॅल्मोनेलोसिस नामक बीमारी होने खतरा रहता है.
हायपरसेंसिटिव्हटी व प्लुमोनायटिस – इस बीमारी में रोगप्रतिकारक क्षमता घट जाती है और श्वसन संबंधी दिक्कते बढ जाती है.
त्वचारोग व एलर्जी – कबूतर के शरीर पर पिस्सू, गोचिड व जुएं जैसे परजीवी होते है. जो त्वचारोग व एलर्जी का निर्माण करते है. कबूतरों के सतत संपर्क में रहने के चलते दीर्घकालिन श्वसन संबंधी बीमारियां भी होती है तथा बुजूर्ग व छोटे बच्चों में इसके गंभीर परिणाम दिखाई देते है.
* कबूतरों की विष्ठा एवं पंखों में रहनेवाले सुक्ष्म जंतूओं के साथ सतत संपर्क श्वसन संस्था के लिए घातक साबित हो सकता है. जिसकी वजह से अस्थमा, क्रॉनिक, ब्रॉन्कायटिस, न्युमोनिया व हायपर सेंसीव्हीटी जैसी बीमारियां होने का खतरा बढ जाता है. ऐसे में छोटे बच्चों व बुजूर्गो सहित पहले से फेफडों की बीमारियां रहनेवाले व्यक्तियों के स्वास्थ की ओर विशेष ध्यान दिए जाने की सख्त आवश्यकता होती है.
– डॉ. दिलीप सौंदले
जिला शल्य चिकित्सक, अमरावती.





