विद्यार्थियों को बच्चे जैसा रखनेवाला शिक्षक कभी सेवानिवृत्त नहीं होता

प्रा. डॉ. रवींद्र मुंद्रे का प्रतिपादन

अमरावती /दि.8 – घर में अत्यधिक गरीबी से पीड़ित होने के बावजूद, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के आदेशानुसार, धम्म दीक्षा समारोह के लिए अपने गांव से नागपुर तक पैदल आए रामजी बापा के घर जन्मे गणेश उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं और एक अच्छे स्कूल में शिक्षक के रूप में शामिल होते हैं. वे विद्यार्थियों को अपने बच्चों की तरह प्यार करते हैं. वे एक आदर्श शिक्षक के रूप में ख्याति अर्जित करते हैं. वही पिता जो शिक्षक हैं, अपने बच्चों को उच्च शिक्षा से भी सुशोभित करते हैं. वे समाज के गरीब और महत्वाकांक्षी विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने में मदद करते हैं. वे आंबेडकर आंदोलन में विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आर्थिक, राजनीतिक और धम्म गतिविधियों में हमेशा सबसे आगे रहते हैं और समाज की समस्याओं का समाधान करते हैं. इसके लिए वे अपनी तेज कलम, कविता और नाटक को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं. वे लोकतांत्रिक संविधान को जागृत करते हैं. ऐसा शिक्षक जो धम्म सेवक और सच्चा कार्यकर्ता होता है, कभी सेवानिवृत्त नहीं होता, ऐसा प्रतिपादन प्रसिद्ध आंबेडकरवादी विचारक प्रा. डॉ. रवींद्र मुंद्रे ने किया. वे प्रा. गणेश लांडगे के सेवा सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.
इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ. बी.आर. वाघमारे मुख्य अतिथि थे. जबकि डॉ. वसंत शेंडे, साप्ताहिक वज्जी संदेश की प्रधान संपादक मायाताई वासनिक, प्राचार्य राजेंद्र रामटेके, पूर्व नगरसेवक प्रकाश बंसोड़, साप्ताहिक वज्जी संदेश के सह-संपादक और सामाजिक कार्यकर्ता आर.एस. तायडे, राजू डोंगरे उपस्थित थे. सभी गणमान्यों ने आयोग के प्रो. गणेश पंचफुला रामजी लांडगे और आयोग की शोभा गणेश लांडगे को शॉल, पुष्पगुच्छ और प्रमाण पत्र भेंट किए और अपने भाषणों के माध्यम से उनके कार्यों की प्रशंसा की. उल्लेखनीय है कि साप्ताहिक वज्जि संदेश की प्रधान संपादक मायाताई गेडाम ने अपने भाषण में प्रो. गणेश लांडगे के कार्यों का पूरा ग्राफ श्रोताओं के सामने प्रस्तुत किया. इस अवसर पर आर.एस. तायडे ने प्रो. गणेश लांडगे के कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि एक व्यक्ति कैसे रहता है, यह उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि वह कितने समय तक जीवित रहा. इस संबंध में, प्रो. लांडगे सर शांति के दूत भगवान बुद्ध के विचारों के वाहक हैं और उनका शांतिपूर्ण स्वभाव और तदनुसार उनके समाजोपयोगी कार्य उनकी सफलता का प्रमाण हैं, आर.एस. तायडे ने इस अवसर पर कहा. इसके साथ ही प्रो. गणेश लांडगे ने कलाकार के काम के अनुरूप एक भावपूर्ण कविता ‘जीवनाचे सोने जले या नोकरीत माझ्या’ प्रस्तुत की. इस अवसर पर साप्ताहिक वज्जी संदेश द्वारा दिए गए सम्मान पत्र का वाचन कवि संजय मोखड़े ने किया. कार्यक्रम का संचालन अनुजा खोबरागड़े और विलास थोरात ने किया. सायली गणेश लांडगे ने धन्यवाद ज्ञापन किया. अजिंक्य लांडगे, सौरभ लांडगे, सुश्री सायली लांडगे, शोभा लांडगे ने कार्यक्रम की सफलता के लिए कड़ी मेहनत की. कार्यक्रम में साप्ताहिक वज्जी संदेश के कार्यकारी संपादक धर्मशील गेडाम, गजल कलाकार डॉ. नंदकिशोर दामोदरे, जयंतराव डोंगरे, देवानंद डोंगरे, देवेश ब्राह्मणे, आकाश लांडगे, नरेश कांबले, भीमराव गजभिये, दर्पण टोकसे, सुमेध पाटिल, श्रीमती शालिनी गेडाम, शरद कांबले, श्रीमती दुर्गा कांबले, श्रीमती किरण कांबले, श्रीमती कोकिला पाटिल आदि सहित बड़ी संख्या में मित्र, सहकर्मी उपस्थित थे. और प्रोफेसर गणेश लांडगे को चाहने वाले रिश्तेदार उपस्थित थे.

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