‘आपणा मलकना मायालू मानवी….’

इनके सुरों पर गरबा रास में थिरक रही अंबा नगरी

* सराफा से लेकर बडनेरा रोड तक हो रही अनुगूंज
* युवाओं में जबर्दस्त क्रेज हुआ है इन गायकों का
अमरावती / दि. 30 -अंबा नगरी वैसे भी देवी की पूजा और आराधना के लिए प्रसिध्द है. इसे पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भी प्राप्त है, ऐसे में गत 100 वर्षो से अधिक काल से गरबा रास में यह नगरी उत्साह से भाग लेती आयी है. बेशक पहले केवल गुजराती समाज तक यह उत्सव सीमित था. आज गरबा रास एक लोकोत्सव बन गया है. रासप्रेमियों को शारदीय नवरात्रि की पूरे वर्ष प्रतीक्षा रहती है. गरबा रास को अधिक प्रभावी और आनंदमय बनाने में अमरावती के बेजोड नगारा वादकों के साथ ही गीत गायन करनेवाले एमेच्युअर जस गायकों का भी योगदान बेमिसाल कहा जा सकता है. तकनीक के प्रगत दौर में भी हाथ में माइक लेकर अलग- अलग चाल पर गरबा गीत एक के बाद एक सतत घंटों प्रस्तुत करना बडी उर्जा और उमंग का कार्य है. इसके पश्चात भी अंबा नगरी में डॉक्टर्स से लेकर उद्योगपति, वकील और प्रोफेशनल्स, व्यापारी चाव से एवं श्रध्दा से गरबा गीत गाते हैं. बेशक अधिकांश ने औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली है. किंतु उनके सधे हुए सुर उनकी सरगम की जानकारी से लब्ध होने के परिचायक हैं. इनमें किरीट भाई गढिया, डॉ. प्रीतिबेन रावल, चंद्रकांत भाई पोपट, अमित लखतरिया, अध्यापिका रोशनी दर्जी, इवेंट प्रबंधक चेतन लोटिया, कन्हैया उर्फ कान्हा बगडाई, गिरीशभाई गगलानी, योगिता मालवीया, अनुष्का बेन चावडा, एड. सूर्यकांत पारेख आदि अनेक नामों के साथ कुछ व्यवसायिक गायक भी अमरावती में गरबा गीत प्रस्तुत करते हैं. बल्कि कहा जाए कि संपूर्ण नवराते इन्हीं के सुरों पर अंबानगरी थिरकती है, झूमकर , गरबा रास के माध्यम से आदि शक्ति को अपनी उपासना, साधना, भक्ति समर्पित करती है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. कुछ गरबा गायकों से अमरावती मंडल ने बात की. उनके जोश और जुनून के साथ भक्तिभाव को जानने का प्रयत्न किया. अमूमन सभी ने अपने प्रोफेशन सहेजते हुए गरबा गीत गाना जीवन का आनंदमय क्षण रहने की बात स्वीकार की. सभी ने कहा कि गीतों की प्रस्तुति, वाद्यों का तालमेल और सामने आस्था से सराबोर भाविक से जीवन में और क्या रस हो सकता है ? उन्होंने विनम्रता से यह भी कहा कि जन-जन के भक्तिभाव को अभिव्यक्त करने और उनके जीवन में आनंद के क्षण देने की अनुभूति बडी बात हैं.

* युवावस्था के शानदार गायक
गजब के विनम्र 27 वर्षीय कन्हैया उर्फ कान्हा बगडाई ने हाल के वर्षों में गायन शुरू किया और अल्पावधि में वे अपनी प्रतिभा के बलबूते पापुलर हो गए. उनकी यहां वहां गरबा गीतों के लिए पूछपरख होने लगी और डीमांड होने लगी. कान्हा बगडाई ने अपने माता-पिता के प्रोत्साहन से अपनी गायन प्रतिभा को निखारा आज जब वे हाथों में माईक लेकर जय अंबे जगदंबे मां… अथवा आमे मैयारा रे गोकुल गामना…. , हेलो म्हारो सामडो…., रे कान्हा हु तने चाहूं…. गाते हैं तो गरबा रास करनेवाले झूम झूम जाते है. विशेषकर युवा वर्ग तेजी से उनका चाहक बना हैं. फिर वह भक्तिधाम हो या परकोटे के भीतर कालाराम मंदिर का गरबा रास हो. कान्हा बगडाई ने औपचारिक संगीत शिक्षा भले ही न ली हो किंतु सतत अभ्यास और अपने सहयोगी सिध्दहस्त गायनवादक के कलाकारों के मार्गदर्शन में वे सधे हुए जसगायक बनने की दिशा में आगे बढे हैं. उनसे इस क्षेत्र में अमरावती के नाम करने की उम्मीद बंधी है. कन्हैया बगडाई अपना कामकाज संभालते, सहेजते हुए नवरात्री के नौं दिन और शरद पूर्णिमा के आयोजनों में गायन के माध्यम से सेवा साधना समर्पित कर रहे हैं. पास पडोस के नगरो, शहरों से भी उन्हें गरबा गीतों के लिए सहर्ष एवं सादर आमंत्रित किया जाता है. विनयशील कन्हैया बगडाई कम ही निमंत्रण स्वीकार कर पाते हैं. किंतु उनके सहयोगी लगभग सभी गायन और वादन कलाकार यह आशा करते हैं कि कान्हा बगडाई का इस क्षेत्र में नाम काम और दाम होगा. अभी तो चाव से माता रानी के गरबे गीत उत्साह से प्रस्तुत कर अंबा नगरी के एक से अधिक भव्य आयोजनों में युवा पीढी को थिरकने, झूमने के लिए प्रेरित करते हैं. कान्हा बगडाई के मुख से उनके अपने अंदाज में हर घर में अब एक ही नाम गूंजेगा, भारत का बच्चा बच्चा…. सभी को लुभा रहा है, नचा रहा है. आनंदित कर रहा है. कान्हा के चाहक मानते हैं कि वे और आगे नेम और फेम कमाएं. बेशक उनमें प्रतिभा तो है ही उससे भी बढकर विनम्रता और सादगी, सहजता अपने माता पिता समान कूट कूट कर भरी है. जीवन में उन्नती के लिए यह तत्व आवश्यक माने जाते हैं.

17 वर्षों से गायन, सिध्दहस्त रोशनी
रमेशभाई दर्जी की होनहार सुपुत्री रोशनी दर्जी न केवल पिता की समृध्द विरासत आगे बढा रही है. अपितु पोदार शाला का अपना इवेंट प्रबंधन और संगीत विभाग प्रमुख का दायित्व निभाते हुए गायन शैली में सिध्दहस्त हो चुकी है. 17 वर्षों से गरबा गीतों को सुर और लय में प्रस्तुत करनेवाली रोशनी दर्जी ने अमरावती मंडल को बताया कि उनके पास पिता द्बारा रचित और संकलित दुर्लभ एवं यूनिक गरबा गीत है. जो परंपरा के अनुरूप तो है ही हमारी धरोहर है. उन्होंने उदाहरण के तौर पर मणियारो तो हालू हालू… गुजराती लोकगीत का उदाहरण दिया. उसी प्रकार आपना मलकना मायालू मानवी तथा कोई राजपरा जयनी रिझावो जगजननी… का उल्लेख कर बताया कि संगीत की औपचारिक शिक्षा उन्होंने मुंबई के प्रसिध्द एसएनडीटी संस्थान से प्राप्त की है. रोशन दर्जी हिंदी, संगीत, वोकल में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त है. उनके परिवार में मां हर्षाबेन, पुत्री झील, बहनें किरण और प्रज्ञा है. किरण योग प्रशिक्षक है. तो प्रज्ञा पोदार शाला में सहायक के रूप में कार्यरत हैं. रोशनी दर्जी कालाराम मंदिर गरबा आयोजन से प्रारंभ कर आज भारतभर में अनेकानेक आयोजनों में उपस्थिति दर्ज कराचुकी है. भक्तिधाम के गरबा में उनकी प्रस्तुति पर सैंकडो थिरक उठते हैं. रोशनी दर्जी कहती है कि अपनी लोक कलाओं को जीवित रखने में अपने योगदान से वे प्रसन्न हैं. स्वाभाविक रूप से चाहती है कि गरबा गीतों की परंपरा अनवरत रहे. देर रात्रि तक चलनेवाले गरबा रास के आयोजनों में अपनी गायन कला से साधना करनेवाली रोशनी दर्जी उतनी ही बेहतर अध्यापिका भी है. उनका कहना है कि वे आनंद लेती है. माता की भक्ति का उनका यह स्वरूप है. रोशनी ने यह भी कहा कि देवी मां की स्तुती करनेवाले सभी गरबा गीत उनके पसंदीदा है. खुद उनके पास कालजयी यूनिक गरबा गीतों का कलेक्शन है.

* अनुष्का ने अल्पावधि में किया प्रभावित
केवल तीन वर्षों में अनुष्का शैलेश चावडा ने अंबानगरी में रासगरबा के चाहनेवालों को अपने सुंदर गरबा गीतो से प्रभावित किया है. वे भक्तिधाम और कालाराम मंदिर के गरबा आयोजनों में गीत प्रस्तुत करती है. उनके पसंदीदा गरबा में ‘आसमाना रंगनी चूनडी रे…., एक वार बोलु, बे वार बोलू, त्रण वार बोलू म्हारी मां….’ का उल्लेख किया जा सकता है. यह गरबा गीत वे अत्यंत चाव से प्रस्तुत करती है. अनुष्का चावडा की डॉ. प्रीतिबेन रावल के साथ जोरदार जुगलबंदी उपस्थितों को थिरकने पर प्रेरित करती है. इन दोनों का एकसाथ एक स्वर में ऐगिरि नंदिनी विश्वविनोदिनी… देखने और सुननेवालों को मुग्ध कर देता है. दत्तचित्त कर देता है. उसी प्रकार पेशे से अध्यापिका अनुष्का चावडा वादकों के ताल मेल को भी श्रेय देती है. बता दें कि अनुष्का मधुरम स्कूल की अध्यापिका है. उनके परिवार में यजमान शैलेश बूटीक चलाते हैं. जबकि ससुर वल्लभ वेलजी चावडा, सास दीना वल्लभ चावडा, देवर चेतन चावडा, दो पुत्रियां इशा और कृष्णा है. अनुष्का ने संगीत विशारद की पदवी प्राप्त की है.

* तीन दशकों से गायन सेवा, योगिता मालवीय बेहद लोकप्रिय
उजंबावाडी, भक्तिधाम सहित अनेक स्थानों पर गरबा गीतों की प्रमुख गायिका के रूप में सर्वपरिचित योगिता गोविंद मालवीय तोमय शाला में कक्षा 9 वीं और 10 वीं की सुघड अध्यापिका भी है. उनका दृढ मत है कि गरबा गीत गाना अथवा रासगरबा में सहभागी होना मातारानी के प्रति श्रध्दा और आस्था को व्यक्त करना है. इसलिए यह साधना, उपासना सहज कही जा सकती है. अत्यंत विनम्र और जमीन से जुडी गायिका ने बताया कि उन्हें देवी की स्तुति के सभी गीत और राग, मुखडे पसंद है. वे मानती है कि इन नौं दिनों में देवी चाचर चौक में अपनी 64 सखियों के साथ विराजमान होती है. योगिता मालवीय ने बताया कि इसी कारण हर कोई गरबा रसिक एनर्जी से भरपूर होता है. एक डिवाइन फीलिंग देता है. उनका परिवार बडा है. परिवार में जेठ, जेठानी, पुत्र विदित, पुत्री मालविका है. 30 वर्षों से गरबा गीतों की सहकलाकारों के साथ प्रस्तुति देते हुए उन्होंने बताया कि कोई अद्भुत शक्ति होती है जो स्मरणशक्ति भी बढा देती है. समय पर कई गीत, मुखडे सूझ जाते हैं. अपनी गायन कला को वे विनम्रता पूर्वक ईश्वरीय देन बताती है. उन्होंने कहा कि जो स्तुति या गान हमें माता रानी से जोडे, कनेक्ट करें वह स्वयमेव बेहतर, बेस्ट होता है. उजंबावाडी में सेवा देते हुए अनेक वर्ष हो चुके हैं. सभी से प्राप्त आदर और स्नेह के लिए वे आभार भी व्यक्त करना चाहती है. यह भी कहती है कि देवी की इस प्रकार की आराधना जारी रखने की आकांक्षी है.

Back to top button