राज्य सरकार से किसानों को कोई राहत नहीं, उपहास ही मिला
मेलघाट में किसानों का बढा आक्रोश

धारणी/दि.11 – मेलघाट के आदिवासी बहुल चिखलदरा और धारणी तहसील के किसान इस समय भारी बारिश की मार से जूझ रहे हैं. बंजर खेती, बढते कर्ज और बढती भूखमरी जैसी तमाम मुसीबतों की चपेट में आए इन किसानों को अब राज्य सरकार से कोई राहत नहीं, बल्कि उपहास ही मिला है. राज्य की महायुति-भाजपा सरकार ने प्रति हेक्टेयर केवल 18,500 रुपये का हास्यास्पद मुआवजा घोषित किया है, जिसने 50,000 रुपये की उम्मीद पर पानी फेर दिया है. इससे न केवल मेलघाट, बल्कि पूरे विदर्भ में रोष और आक्रोश फैल गया है. यह मुआवजा नहीं, बल्कि आत्महत्या को न्योता है, जिस पर किसानों द्वारा तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है.
भारी बारिश से प्रभावित इलाकों के किसान पहले से ही भारी कर्ज में डूबे हुए हैं. सरकार के इस फैसले पर किसानों को बचाने के बजाय उनके जख्मों पर नमक छिडकने का आरोप लगाया जा रहा है. यह आत्महत्या की ओर धकेल रहा है, गांवों में राजनीतिक साजिशों की चर्चा है. इसी पृष्ठभूमि में, मेलघाट में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक राजकुमार पटेल के नेतृत्व में एक बडा जनांदोलन शुरू करने का संकल्प शुरू हो गया है.
राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ और पूर्व विधायक राजकुमार पटेल ने किसानों के न्याय के लिए विरोध, सत्याग्रह और अंतिम लडाई का रुख अपनाया है. हालांकि कुपोषण, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता के चक्रव्यूह में फंसे मेलघाट के आदिवासियों के लिए एक स्वतंत्र आदिवासी विकास महामंडल और एक एकात्मिक प्रकल्प कार्यालय है, वास्तव में आदिवासियों का जीवन स्तर अब तक सुधरा नहीं है. खुलेआम चर्चा हो रही है कि राज्य के राजस्व मंत्री और अमरावती जिले के पालक मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले सिर्फ नाम के पालक बनकर रह गए हैं. अमरावती शहर तक ही अपना कार्यक्षेत्र सीमित रखने वाले बावनकुले पिछले आठ महीनों में एक बार भी मेलघाट नहीं गए हैं.
अतिवृष्टिग्रस्त किसान, कुपोषण ग्रस्त आदिवासी माता-बालक और विकास से वंचित ग्रामवासी तक वे पहुंचे नहीं. बैठक और सरकारी योजनाओं के समन्वय में व्यस्त हैं, वास्तव में मेलघाट की वास्तविकताओं से दूर हैं.
उदासीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी
मेलघाट के किसानों के आंखों में अश्रू नहीं, तीव्र रोष है. सरकार द्वारा घोषित 18,500 रुपये का नुकसान मदद नहीं, बल्कि मजाक है. हम 50 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर की मांग रहे है, तो दया के रूप में नही, बल्कि अधिकार के रूप में. अगर बेरोजगारी, गरीबी और फसल बर्बादी की जंजीर तोडनी है, तो सरकार ने केवल विज्ञापनबाजी रोकर मैदान में उतरना चाहिए. अन्यथा हम सत्याग्रह, मोर्चे और जन आंदोलन के जरिए मेलघाट से लेकर तो मंत्रालय को हिला देंगे. सरकारी प्रशासन की उदासीनता अब और बर्दाश्त नहीं की जाएगी. यह लडाई तब तक खत्म नहीं होगी जब तक मेलघाट के आखिरी किसान ने चेहरे पर मुस्कान नहीं आती.
– राजकुमार पटेल, पूर्व विधायक, (वरिष्ठ नेता, राकांपा)





