न्यायपालिका को भी सरकारी सहयोग की जरूरत
सीजेआई भूषण गवई का महत्वपूर्ण प्रतिपादन

नागपुर/दि.14- भारतीय संविधान की रचना में न्यायपालिका और कार्यपालिका को अलग रखने के पीछे गहरा लोकतांत्रिक विचार निहित है. संविधान निर्माताओं ने सत्ता-विभाजन के सिद्धांत को स्वीकार कर प्रत्येक संस्था की सीमाएं और अधिकार स्पष्ट रूप से तय किए हैं, ताकि किसी एक संस्था में असीमित सत्ता का केंद्रीकरण न हो सके. इसी सिद्धांत के तहत न्यायपालिका का कार्य यह देखना है कि सरकार या संसद द्वारा किए गए कार्य और बनाए गए कानून संविधान की मर्यादा में हैं या नहीं. इस स्वतंत्रता के कारण ही न्यायपालिका शासन पर नियंत्रण रख सकती है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सकती है. इसी संदर्भ में भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने एक कार्यक्रम में कहा कि न्यायव्यवस्था की बुनियादी सुविधाओं के विकास और न्याय तक आम जनता की पहुँच बढ़ाने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच सहयोग आवश्यक है.
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि सत्ताओं के विभाजन के सिद्धांत के अनुसार न्यायपालिका और कार्यपालिका को स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए, लेकिन जनता तक प्रभावी न्याय पहुँचाने के लिए न्यायपालिका को आर्थिक साधन-सुविधाओं के मामले में कार्यपालिका के सहयोग की आवश्यकता होती है. उन्होंने बताया कि अपने 22 वर्षों के न्यायिक कार्यकाल में उन्होंने न्याय का विकेंद्रीकरण करने और न्यायालय भवनों का निर्माण समय पर पूरा करने का प्रयत्न हमेशा किया है. इस समय सीजेआई गवई ने दो वर्ष के भीतर कोल्हापुर सर्किट बेंच और मंडणगड न्यायालय भवन के काम पूरे होने को अत्यंत संतोषजनक बताने के साथ ही महाराष्ट्र सरकार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए बताया कि शासन के सहयोग से ही यह परियोजना समय पर पूरी हो सकी. नाशिक, नागपुर, कोल्हापुर और दर्यापुर में भी हाल ही में कई नए न्यायालय भवन बनकर तैयार हुए हैं. गवई ने कहा कि कोकण क्षेत्र में न्याय की पहुँच बढ़ाने के लिए मंडणगड न्यायालय भवन एक लंबे समय से प्रतीक्षित सपना साकार कर रहा है.
इस अवसर पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर, न्यायमूर्ति मकरंद कारनिक और न्यायमूर्ति माधव जामदार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.





