बहीखाते, रोजमेल की डिमांड कायम

तारीख का डट्टा और पुट्ठा खरीदी पर जोर

* शहर के जवाहरमल गणेशराम और शाहीन स्टेशनर्स पर उमडे लोग
* व्यापारियों में हाथ से हिसाब लिखने का क्रेझ
अमरावती/दि.17 –दिवाली पर रोजमेल, बहीखाते खरीदने की प्रथा अंबानगरी में कायम है. सराफा, सक्करसाथ से लेकर अमूमन सभी व्यापारी, ट्रेडर्स कंप्यूटर बिलो, हिसाब के अलावा रोज मेल में रोज का आवक- जावक हाथ से लिखने के आज भी हिमायती है. अत: दिवाली से पहले आए पुष्य नक्षत्र के मुहूर्त पर बहीखाते का ऑर्डर देने सक्करसाथ के जवाहरमल गणेशराम शर्मा तथा प्रभात चौक के शाहीन स्टेशनर्स पर ग्राहक उमडे हैं. अब लक्ष्मीपूजन के दिन यह व्यापारी वर्ग अपनी अपनी ऑर्डर की डिलेवरी लेगा.
महाजनी बहीखाते
लेजर बुक समान पन्नों को कपडे से सीए गए पुठ्ठे लगाकर महाजनी बहीखाते तैयार किए जाते हैें. उसी प्रकार रोजमेल और डायरियां भी तैयार की जाती है. यह जानकारी लगातार चौथी पीढी में चल रहे जवाहरमल गणेशराम शर्मा प्रतिष्ठान से सत्यनारायण जी शर्मा ने दी. उनके परिवार की चौथी पीढी यह व्यापार कर रही है. परंपरागत बहीखाते का आज भी दूकानों, प्रतिष्ठानों में चलन है.
रोजमेल हर कोई ले जाता
उन्होंने बताया कि रोजमेल बुक हर कोई चाव से ले जाता है. दिवाली से दिवाली और अप्रैल से मार्च दोनों ही रूप में रोजमेल उपलब्ध है. कैनवास बुक भी कई लोग प्रिफर करते हैं. उसी प्रकार बासना, बोरू ले जाया जाता है. बोरू लेखन होती है. कलम का काम करती है. स्याही की दवात में बोरू डूबोकर बहीखाते लिखने की महाजनी परंपरा सराफा और सक्करसाथ में कायम है. पूरे वर्ष का हिसाब किताब इसमें दर्ज किया जाता है. वर्षों तक यह बहीखाते आसानी से सहेजकर रखे जा सकते हैं.
तारीख का डट्टा और पुठ्ठा
सत्यनारायण जी और उनके पुत्र श्याम शर्मा बताते हैं कि मोबाइल हैंडसेट के युग में भी तारीख का डट्टा चाव से खरीदा जा रहा है. लगता है कि यह चलन अभी और कुछ पीढियों तक चलेगा. श्याम शर्मा ने बताया कि तारीख के कागज पर उस दिन का लगभग सारा पंचांग संक्षिप्त रूप में अंकित होता है. वार- त्यौहार के साथ दिन विशेष की जानकारी प्रमुखता से होती है. मारवाडी, गुजराती, उर्दु, मराठी सभी लिपी में तारीखे दर्ज होना इन डट्टा की विशेषता होती है. आज भी लाखों घरों मेंं लोग इन तारीख डट्टा की जानकारी के आधार पर अपना नियोजन करते हैं. मुहूर्त तय करते हैं. उन्होंने बताया कि डट्टा लगानेवाला पुट्ठा बिल्कुल नए स्वरूप में अत्यंत आकर्षक चित्र के साथ रहने से सभी पसंद करते हैं. युवा पीढी, बालक, बालिकाएं चाव से इसे घर ले जाते हैं.
बता दे कि शाहीन स्टेशनर्स भी शहर में बहीवाला के नाम से जाना जाता है. तीसरे शतक में इस प्रतिष्ठान का कार्य, व्यवसाय जारी है. बहीवाला परिवार की 5 वीं- 6वीं पीढी इसे संचालित कर रही है. ताहेर भाई बहीवाला ने बताया कि बहीखातो को लिखकर सहेजने का दौर कायम है. वे अपने 200 वर्ष पुराने प्रतिष्ठान की परंपरा आगे बढा रहे हैं.

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