23 दिन के बच्चे का ’दामा’ से इलाज

मेलघाट में अंधविश्वास का अघोरी रूप

* दिए अगरबत्ति के चटके, मां के खिलाफ मामला दर्ज
* मेलघाट के लाखेवाडा की घटना
चिखलदरा /दि.19 – मेलघाट के चिखलदरा तहसील में अंधविश्वास का काला साया एक बार फिर देखने को मिला है. लाखेवाड़ा गांव में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जहां मात्र 23 दिन के एक मासूम बच्चे को ’दामा’ के नाम पर अगरबत्ती के चटके दिए गए. इस अमानवीय कृत्य के बाद बच्चे की हालत बिगड़ गई और उसे अचलपुर के उपजिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. फिलहाल बच्चे की हालत स्थिर है और इस घटना से इलाके में गुस्से और अफसोस का माहौल है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार संबंधित महिला उस समय डर गई जब उसके नवजात बच्चे को पेट फूलने और दस्त होने लगे. हालांकि उसने चिकित्सा उपचार लेने के बजाय, ’दामा’ नामक अघोरी उपचार का सहारा लिया, जो गांव में प्रचलित एक पारंपरिक उपचार है. इस उपचार में शरीर पर अगरबत्ती जलाने से रोग ठीक होने का अंधविश्वास आज भी कुछ आदिवासी इलाकों में प्रचलित है. इसी अंधविश्वास के चलते, मां ने बच्चे के पेट और छाती पर अगरबत्ती जला दी. इस क्रूर कृत्य के बाद बच्चे की हालत तेज़ी से बिगड़ने लगी, तो वह अंततः बच्चे को अचलपुर के उपज़िला अस्पताल ले गई. डॉक्टर ने बच्चे की जांच की, तो उसके शरीर पर जलने के घाव पाए गए. उपचार के बाद बच्चा फिलहाल खतरे से बाहर है और चिकित्सा दल उसकी निगरानी कर रहा है.
इस घटना की सूचना मिलने पर, चिखलदरा पुलिस ने तुरंत संज्ञान लिया और मां के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है और आगे की जांच जारी है. यह एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य और जागरूकता की कमी के कारण कुछ लोग अभी भी ऐसे अंधविश्वासों और अवैज्ञानिक उपचार विधियों में विश्वास करते हैं. इस क्षेत्र में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जन जागरूकता अभियान का अभाव नागरिकों के बीच चर्चा का विषय बन गया है. अक्सर, चूंकि स्वास्थ्य कार्यकर्ता ऐसे दूरदराज के गांवों तक नहीं पहुंचते, नागरिक पारंपरिक उपचारों का सहारा लेते हैं और मासूम जानें इसका शिकार बन जाती हैं. मेलघाट में ऐसी घटनाओं का ज़िक्र बार-बार हो रहा है. कुछ साल पहले भी अंधविश्वास की ऐसी ही घटनाएं हुई थीं. हालांकि, उससे सबक लेने के बावजूद, इस इलाके में कोई ठोस जनजागरूकता नहीं आई है, जो बेहद चिंता का विषय है. स्थानीय लोगों का मानना है कि सामाजिक संगठनों और स्वास्थ्य विभाग को मिलकर अंधविश्वास को जड़ से मिटाने के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए.
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि मेलघाट में स्वास्थ्य सेवा और जनजागरूकता, दोनों ही मोर्चों पर कमी क्यों है. हालांकि चिकित्सा अधिकारी और स्वास्थ्य कार्यकर्ता नियमित रूप से गांवों में अभियान चलाते हैं, लेकिन हकीकत में लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंच पाती, यह बात सामने आई है. इस मामले ने सरकार, स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन को एक नया सबक सीखने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है.

* इस वर्ष की चौथी घटना
इस तरह की घटना मेलघाट में बार-बार घटित हो रही है. शासकीय स्तर पर जनजागृति की जाति रही तो भी उसमें ज्यादा अंतर महसूस नहीं होता. छोटे बालक के पेट पर अगरबत्ती अथवा सलाख से उपचार करने के नाम पर चटके दिए जाने की इस वर्ष की यह चौथी घटना है. इस घटना बाबत स्वास्थ्य अधिकारी समेत स्थानीय वैद्यकिय अधिकारी से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उन्हें इस घटना की जानकारी नहीं थी. इस प्रकरण में आशा वर्कर जीजी भोगेलाल सावलकर (40) की शिकायत पर संदिग्ध महिला के खिलाफ चिखलदरा पुलिस ने मामला दर्ज किया है.

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