‘उन’ आरोपियों में शहर के कई ख्यातनाम डॉक्टर व पूर्व पार्षद भी शामिल

पुलिस कर्मचारियों व समाज के कई प्रतिष्ठितों के नामों का भी है समावेश

* रोजाना दिखनेवाले चेहरे मनपा के अधिकारियों को नहीं दिखे, पडताल पर उठ रहे सवाल
* एफआईआर दर्ज कराने की हडबडी भी सवालों और संदेहों के घेरे में, लोगों में गुस्से की लहर
अमरावती /दि.3 – हाल ही में अमरावती महानगर पालिका के स्वास्थ्य व चिकित्सा अधिकारी डॉ. विशाल काले ने फर्जी जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र मामले को लेकर 504 लोगों के खिलाफ सिटी कोतवाली पुलिस थाने में शिकायत दी थी. जिसके आधार पर उन 504 लोगों के खिलाफ कोतवाली थाने में बाकायदा एफआईआर भी दर्ज की गई. मनपा की ओर से शिकायत दर्ज कराते हुए कहा गया कि, आरोपी बनाए गए लोगों द्वारा जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए जो दस्तावेज दिए गए थे, उनमें दर्ज रिहायशी पतों पर वे लोग रहते नहीं पाए गए या फिर उन लोगों द्वारा दिए गए पते ही पूरी तरह से गलत पाए गए है. परंतु हैरतवाली बात यह है कि, आरोपियों के नामों की सूची में कई ऐसे लोगों के भी नामों का समावेश है, जिनकी पहचान शहर के नामांकित डॉक्टर, पूर्व पार्षद, समाजसेवी व पुलिस कर्मी के तौर पर है. जिनके नाम व पते के बारे में पूरे शहर को जानकारी है. साथ ही साथ वे लोग विगत कई वर्षों से अमरावती के रहवासी रहने के साथ-साथ शहर के सभी लोगों को शहर में अक्सर ही दिखाई भी देते है और उनका अन्य लोगों के साथ मिलना-जुलना व उठना-बैठना भी है. लेकिन इसके बावजूद वे लोग मनपा के अधिकारियों व कर्मचारियों को नहीं मिले. इसे लेकर या तो हैरत जताई जा सकती है, या फिर माथा ही पीटा जा सकता है. चर्चा यहां तक चल रही है कि, संभवत: फर्जी जन्म प्रमाणपत्र के मुद्दे को लेकर समूचे राज्य में आसमान को सिर पर उठाए घुम रहे लोगों को खुश करने या फिर अपनी रैंक में बढोतरी करवाने के लिए मनपा प्रशासन का हिस्सा रहनेवाले कुछ अधिकारियों द्वारा कहीं जानबुझकर तो यह सबकुछ नहीं किया जा रहा.
बता दें कि, विगत गुरुवार 30 अक्तूबर को भाजपा नेता व पूर्व सांसद किरीट सोमैया फर्जी जन्म प्रमाणपत्र मामले में अमरावती की मनपा आयुक्त सौम्या शर्मा से चर्चा करने हेतु अमरावती के दौरे पर आनेवाले थे. जिससे ठीक एक दिन पहले बुधवार 29 अक्तूबर की रात मनपा प्रशासन की ओर से आनन-फानन में सिटी कोतवाली पुलिस थाने पहुंचकर 504 लोगों के खिलाफ फर्जी दस्तावेजों के आधार पर गलत तरीके से जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल करने और सरकार व प्रशासन के साथ जालसाजी करने को लेकर शिकायत दर्ज कराई गई. जिसके आधार पर कोतवाली पुलिस ने भी फौरन से पेश्तर कार्रवाई करते हुए सभी 504 लोगों को आरोपी बनाकर उनके खिलाफ अपराधिक मामला भी दर्ज कर डाला. परंतु ऐसा करते समय इस बात की ओर पूरी तरह से अनदेखी की गई कि, इस सूची में कई नाम दो-दो और तीन-तीन बार लिखे हुए है, यानि एक ही व्यक्ति का नाम एक से अधिक बार इस सूची में शामिल है. साथ ही साथ खास बात यह भी है कि, इस सूची में शहर के ख्यातनाम डॉक्टर, पूर्व पार्षद, पुलिस कर्मी व समाजसेवी जैसे उन लोगों के नामों का भी समावेश है, जो अमरावती शहर सहित शहरवासियों के लिए किसी नाम, पते व परिचय के लिए मोहताज नहीं है. इसमें से कई लोग तो ऐसे है कि, अगर उनके पते के बारे में सडक चलते किसी बच्चे से भी पूछा जाए, तो कोई नादान बच्चा भी उनका सही पता बता सकता है. लेकिन इसके बावजूद हैरतवाली बात यह रही कि, मनपा के जन्म व मृत्यु विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को इन लोगों के पते नहीं मिले. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि, मनपा के जन्म व मृत्यु पंजीयन विभाग द्वारा इस मामले में कितनी संजीदगी के साथ काम किया गया होगा और मामले को लेकर कितनी गंभीरता दिखाई गई होगी.
बता दें कि, अमरावती मनपा क्षेत्र में 1709 विलंबित जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्रों को केवल इस वजह से खारिज कर दिया गया था कि, वे प्रमाणपत्र तहसीलदार अथवा तहसील दंडाधिकारी स्तर के अधिकारी की बजाए उससे निचले दर्जे पर रहनेवाले नायब तहसीलदार स्तर के अधिकारी द्वारा जारी किए गए थे. हकीकत यह है कि, हर आवेदक ने अपना आवेदन अमरावती तहसील कार्यालय में पेश किया था, ताकि उसे सक्षम अधिकारी के हस्ताक्षर व सरकारी मुहर के साथ उसके लिए आवश्यक जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र प्राप्त हो सके. आम नागरिकों का इस बात से कोई लेना-देना नहीं था कि, उसके प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करनेवाले अधिकारी का ओहदा और दर्जा क्या है. बल्कि उन्हें तहसील कार्यालय एवं मनपा की ओर से जो प्रमाणपत्र मिले थे, उन्होंने उन प्रमाणपत्रों पर आंख बंद करते हुए भरोसा किया था. परंतु आगे चलकर जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्रों को लेकर मचे हंगामे के बाद नायब तहसीलदार के हस्ताक्षर से जारी सभी जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्रों को रद्द घोषित करते हुए उन प्रमाणपत्रों को मनपा कार्यालय में वापिस लाकर जमा कराने का आदेश जारी हुआ था. जिसके चलते अधिकांश लोगों ने अपने प्रमाणपत्र वापिस जमा भी करा दिए थे. यहां तक फिर भी सारा मामला कुछ हद तक ठीक था, लेकिन गडबडी वहां से शुरु हुई, जब मनपा प्रशासन द्वारा आवेदकों की ओर से दिए गए दस्तावेजों की दुबारा पडताल करनी शुरु की गई और दावा किया गया कि, कई लोग अपने द्वारा दिए गए पते पर रहते नहीं पाए गए और कई लोगों की ओर से दिया गया पता ही अस्तित्व में नहीं है. जिसके बाद ऐसे लोगों पर सरकार और प्रशासन के साथ जालसाजी का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई गई. साथ ही कई लोगों के नाम नोटिस भी जारी की गई. ऐसे में सवाल यह उठता है कि, यदि नायब तहसीलदार स्तर के अधिकारी द्वारा जारी सभी प्रमाणपत्र फर्जी व बनावटी है, तो फिर ऐसे फर्जी व बनावटी प्रमाणपत्र जारी करनेवाले नायब तहसीलदार स्तर के अधिकारी के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई. साथ ही सरकार की ओर से अनुमति नहीं रहने के बावजूद अपने अधिनस्थ को मनमाने तरीके से देते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाडनेवाले तहसीलदार स्तर के अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई अब तक क्यों नहीं की गई.
कुल मिलाकर यह मामला कुछ ऐसा है कि, गलती हकीकत में राजस्व महकमे के तहसील कार्यालय से हुई है और इसका खामियाजा अमरावती शहर व तहसील क्षेत्र में रहनेवाले हजारों आम बाशिंदों को भुगतना पड रहा है. जिन्होंने इस दौरान विलंबित जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र मनपा व तहसील कार्यालयों में कई बार चक्कर काटने के बाद हासिल किए थे और उन्हें इस बात से कोई लेना-देना भी नहीं था कि, उनके प्रमाणपत्र पर तहसीलदार अथवा नायब तहसीलदार में से किस अधिकारी के हस्ताक्षर है. क्योंकि शायद ही किसी को इस बात का अंदाज रहा होगा कि, विलंबित जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र पर तहसीलदार के ही हस्ताक्षर रहना अनिवार्य है. लेकिन इस बात से खुद राजस्व विभाग के अधिकारी, विशेषकर तहसीलदार तो अंजान नहीं थे. लेकिन इसके बावजूद तहसीलदार ने अपने सिर से काम का बोझ हटाने हेतु अपने इस काम का जिम्मा अपने अधिनस्थ रहनेवाले नायब तहसीलदार को दे दिया था. जिसका खामियाजा अब वे लोग भुगत रहे है, जिनके पास नायब तहसीलदार के दस्तखत और मुहर वाले प्रमाणपत्र है. ऐसे में देखा जाए तो यह सीधे-सीधे प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई चूक का मामला है. लेकिन इसकी सजा आम नागरिकों को दी जा रही है. वहीं विगत फरवरी माह के आसपास सामने आए इस मामले को लेकर इतने दिनों तक पूरी तरह से शांत बैठे अमरावती मनपा प्रशासन को अचानक ही बिते बुधवार 29 अक्तूबर को यह ज्ञात हुआ कि, 1709 लोगों में से 504 लोगों के पते गलत और झूठे है, वह भी तब, जब गुरुवार 30 अक्तूबर को भाजपा नेता व पूर्व सांसद किरीट सोमैया चर्चा व बैठक हेतु अमरावती महानगर पालिका में आनेवाले थे. ऐसे में एफआईआर दर्ज कराए जाने की ‘टाइमिंग’ पर सवाल उठना लाजमी है.
ज्ञात रहे कि, मनपा प्रशासन द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत में साफ तौर पर कहा गया है कि, इन 504 लोगों में से कई लोग उनके द्वारा दिए गए रिहायशी पतो पर रहते नहीं पाए गए, या फिर उनके द्वारा दिए गए पते अस्तित्व में ही नहीं है, यानि संबंधितों द्वारा पूरी तरह से गलत व फर्जी पते दिए गए है. जिसके चलते ऐसे लोगों को खोजा जाना बेहद जरुरी है. किसी एफआईआर को आधार बनाते हुए अगले दिन सुबह यानि गुरुवार 30 अक्तूबर को अमरावती पहुंचे भाजपा नेता व पूर्व सांसद किरीट सोमैया ने मीडिया के समक्ष और अपने ट्विटर अकाउंट के जरिए आरोप लगाया कि, अमरावती शहर में बडे पैमाने पर बांग्लादेशी व रोहिंग्या घुसपैठिएं रहते है. जिन्होंने फर्जी तरीके से विलंबित जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल किए है. ताकि वे खुद को भारतीय नागरिक दिखा सके और जिन लोगों के खिलाफ अमरावती मनपा द्वारा अपराधिक मामला दर्ज कराया गया है, उसमें से अधिकांश लोग अवैध घुसपैठिए हो सकते है. लेकिन हैरतवाली बात यह है कि, उस एफआईआर में जिन लोगों के नामों का समावेश है, उनमें कई ऐसे नाम भी है, जो शहर के नामांकित डॉक्टर, पूर्व पार्षद, सामाजिक कार्यकर्ता व पुलिस कर्मी के तौर पर विगत अनेक वर्षों से पहचाने जाते है तथा उनका विगत कई पीढियों से अमरावती शहर में ही रहना है. साथ ही साथ उनके घर परिवार के बारे में पूरे शहर को जानकारी है. लेकिन इसके बावजूद मनपा के जांच पथक को उनका रिहायशी पता गलत मिला या वे अपने द्वारा दिए गए पते पर नहीं रहते पाए गए, ऐसा कहना हैरत के साथ-साथ अविश्वास भी पैदा करता है. जिसकी वजह से मनपा द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत ही सवालों के घेरे में खडी नजर आ रही है और लोगबाग अब इसे लेकर कई तरह के सवाल पूछने लगे है.

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