चांदूर रेल्वे में अति आत्मविश्वास ने भाजपा को दिलाई हार

तहसील की जनता नकारे भाजपा के उम्मीदवार

* क्या होगा आत्मचिंतन?
चांदूर रेल्वे/दि.23 – जिले में हाल ही में हुए 12 नगर परिषद नगरपंचायत चुनाव के नतीजे घोषित हुए. वैसे तो 12 में से 6 स्थानों पर भाजपा ने जीत हासिल की है. लेकिन प्रत्यक्ष में अगर देखा जाए तो जिस प्रकार जिले में भाजपा का वातावरण है उसे अनुमान में भाजपा को 6 सीटों का नुकसान हुआ है. संभवत: 6 में से कुछ सीटों पर भाजपा की अति विश्वास वाली नीति पतन का कारण बनी.
जहां भाजपा ने धामणगांव में कांग्रेस को शिकस्त देकर कमल खिलाया. वहीं चांदूर रेलवे में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. पार्टी के पास सक्षम उम्मीदवार होने के बावजूद मित्र पक्ष के उम्मीदवार को तोड़कर जोड़-तोड़ की नीति भाजपा के लिए महंगी पड़ी. कुछ ऐसा ही बाकी नगर परिषदों में भी हुआ है. वैसे तो हर नगर परिषद में भाजपा ने अपने पार्षदों की अच्छी जीत हासिल की है. लेकिन कुछ स्थानों पर भाजपा का तोड़फोड़ कर आत्मविश्वास वाली नीति उसे भारी पड़ी. पूरे राज्य में भाजपा के प्रति लहर को देखते हुए अन्य दलों के उम्मीदवार भाजपा के संपर्क में है भाजपा की टिकट जीत की दावेदारी को मजबूत करता है. इस भ्रम के चलते वह अपने पार्टी को छोड़कर भाजपा का दामन थाम रहे हैं.
इस हिसाब ने भाजपा ने अपने ही साथियों को चुनाव मैदान में उतारना चाहिए. जोड़ तोड़ की राजनीति की बजाय अपने ही सच्चे कार्यकर्ताओं को चुनाव मैदान में उतरने की पहला की जाती थी तो संभवत: जिले में यह आंकड़ा कुछ और होता. नगर परिषद नगर पंचायत के इलेक्शन के पहले अन्य दलों का झेंडा लेकर कार्य कर रहे. कई इच्छुक उमेदवार ने भाजपा का दमन थामा था ऐसे कार्यकर्ता को नेता ने अपनी कीमत बढाने के लिए लोगो को उमेदवारी का आश्वासन देकर टिकट दिलाये. जो कार्यकर्ता पिछले कई वर्षों से भाजपा के साथ जुडा है ऐसे कार्यकर्ता की उम्मीदवारी काटकर दूसरी पार्टी के कार्यकर्ता को उम्मीदवारी देना भाजपा को महंगा पडा. ऐसे में सच्चे कार्यकर्ता का खच्चीकरण हो रहा है.
अगर भाजपा अपनी नीती नहीं सुधारी तो आने वाले महानगरपालिका चुनाव व जिला परिषद चुनाव मे इसका असर दिखाई देगा. क्योंकि मित्रपक्ष को तोडने की नीति तथा सच्चे कार्यकर्ताओं से दूरी भाजपा के लिए सिर दर्द साबित हो सकती है. भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को इस संदर्भ में विचार करना होगा की धामणगांव विधानसभा क्षेत्र में अपने पक्ष के आमदार रहने के बावजूद नगरपरिषद व नगरपंचायत पर हार का सामना करना पडा. धामणगांव विधानसभा का यह नतीजा भाजपा को सीख देता नजर आ रहा है.

 

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