सत्ता के शिखर पर बावनकुले, अब अगली मंज़िल पर नज़र

नागपुर/दि.23 – राजनीति में किसी नेता की सबसे बड़ी चाह क्या होती है? सत्ता का सुख, संगठन में वर्चस्व और शीर्ष नेतृत्व की सराहना. इन तीनों का एक साथ मिलना आसान नहीं होता. इसके लिए वर्षों की राजनीतिक साधना करनी पड़ती है. लेकिन कुछ नेता अपवाद साबित होते हैं-नागपुर के पालकमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर बावनकुले ऐसे ही नेताओं में गिने जा रहे हैं.
राज्य मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण मंत्रालय, नागपुर जिले में भाजपा को मिली निर्णायक सफलता और स्वयं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा खुले मंच से की गई प्रशंसा-इन सबने यह संकेत दे दिया है कि वर्तमान समय में सत्ता के केंद्र में बावनकुले की स्थिति बेहद मजबूत है. राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि आज उन्हें राजनीति में वह सब कुछ हासिल हो चुका है, जिसकी आकांक्षा एक सक्रिय नेता करता है.
राजनीति में सफलता कभी अंतिम पड़ाव नहीं होती, बल्कि वह अगली परीक्षा की सूचना होती है. बावनकुले का वर्तमान सफर इस बात का उदाहरण है कि सत्ता, संगठनात्मक पकड़ और नेतृत्व का विश्वास-तीनों सूत्र एक साथ उनके हाथ में हैं. वर्ष 2019 में टिकट न मिलने से जिनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठने लगे थे, वही नेता 2024 में न केवल मंत्री बने, बल्कि नागपुर जिले में भाजपा की जीत के प्रमुख शिल्पकार के रूप में उभरे. यह राजनीति की अनिश्चितता और अवसर दोनों को दर्शाता है.
नागपुर जिले की स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनाव में भाजपा को मिली सफलता केवल आंकड़ों की जीत नहीं है. 27 में से 22 संस्थाओं पर सत्ता हासिल करना मजबूत संगठनात्मक नियंत्रण का स्पष्ट संकेत है. कामठी नगर परिषद की जीत का मुख्यमंत्री द्वारा विशेष उल्लेख और रामगिरी जैसे सरकारी आवास पर आयोजित अभिनंदन कार्यक्रम, बावनकुले के नेतृत्व पर लगी आधिकारिक मुहर के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि, राजनीति में मौजूदा सफलता भविष्य की सुरक्षा की गारंटी नहीं होती. भाजपा के आंतरिक इतिहास पर नजर डालें तो कई प्रभावशाली नेता समय के साथ हाशिये पर जाते भी दिखे हैं. कभी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के कट्टर समर्थक माने जाने वाले बावनकुले आज मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के भरोसेमंद नेता माने जाते हैं. यह बदलाव केवल व्यक्तिगत निष्ठा का नहीं, बल्कि राजनीतिक हवा को समय रहते पहचानने की उनकी क्षमता को दर्शाता है. इसके बावजूद, मतदाता क्षेत्र से जुड़े विवाद, पारिवारिक मुद्दे और विपक्ष के आरोप जैसे प्रश्न पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं. सत्ता जितनी ऊंची होती है, अपेक्षाएं और जांच भी उतनी ही कठोर हो जाती हैं.
आज बावनकुले के पास लगभग वह सब कुछ है, जो राजनीति में हासिल किया जा सकता है. लेकिन असली कसौटी अब इस बात की है कि वह इस उपलब्ध सत्ता को कितनी कुशलता से संभाल पाते हैं. क्या जिले में स्थापित वर्चस्व राज्य स्तर पर प्रभाव में बदलेगा, और क्या सत्ता के शिखर पर रहते हुए संभावित राजनीतिक झटकों से बचा जा सकेगा-इन्हीं सवालों पर उनके आगे के राजनीतिक सफर की दिशा तय होगी.





