तीन महीने तक मौत से जूझे बच्चे को एम्स नागपुर ने दिया नया जीवन

खांसी की जहरीली दवा ही बन गई थी जानलेवा

नागपुर/दि23 – मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में खांसी की जहरीली दवा पी लेने से गंभीर हालत में पहुंचे पांच वर्षीय मासूम को नागपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने कड़ी मेहनत और सतत इलाज के बाद नया जीवन दिया है. करीब तीन महीने तक मौत से संघर्ष करने वाले इस बच्चे की जान बचाना डॉक्टरों के लिए बड़ी चुनौती थी.
एम्स नागपुर में 11 सितंबर 2025 को यह बच्चा बेहोशी की हालत में भर्ती हुआ था. उसका रक्तचाप अत्यंत कम था, कई अंग काम करना बंद कर चुके थे और मस्तिष्क की गतिविधियां भी लगभग ठप थीं. स्थिति को देखते हुए तुरंत बच्चे को वेंटिलेटर पर रखा गया और आपातकालीन रक्त शुद्धिकरण (डायलिसिस) प्रक्रिया शुरू की गई. बाल रोग विभाग की डॉ. मीनाक्षी गिरीश, अतिदक्षता विभाग के समन्वयक डॉ. अभिजीत चौधरी, डॉ. अभिषेक मधुरा सहित पूरी मेडिकल टीम लगातार बच्चे की हालत पर नजर बनाए हुए थी. शुरुआती दिनों में इलाज का कोई खास असर दिखाई नहीं दिया, लेकिन लंबे और निरंतर उपचार के बाद बच्चे की न्यूरोलॉजिकल स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होने लगा. इलाज के दौरान बच्चे को गंभीर एनीमिया और हृदय संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ा. श्वासनली पर सर्जरी भी करनी पड़ी. करीब तीन महीने बाद वेंटिलेटर हटाया गया, जिसके बाद उसकी हालत में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला. बच्चा दोबारा बोलने लगा, प्रतिक्रिया देने लगा और माता-पिता व डॉक्टरों से संवाद करने लगा. हालांकि जांच में दृष्टि तंत्रिका को नुकसान होने के कारण गंभीर दृष्टिदोष सामने आया, लेकिन इसके लिए भी आवश्यक उपचार शुरू कर दिया गया है. फिलहाल बच्चे की हालत स्थिर है और तीन महीने से अधिक समय तक अस्पताल में इलाज के बाद उसे जल्द ही घर भेजने की योजना बनाई जा रही है.
इस पूरे उपचार काल में एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. प्रशांत जोशी, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. नीलेश नागदेवे और संयुक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉ. नितिन मराठे ने हर संभव सहयोग उपलब्ध कराया. उल्लेखनीय है कि एम्स प्रशासन ने बच्चे के संपूर्ण इलाज का खर्च माफ कर दिया. एम्स नागपुर के कार्यकारी निदेशक डॉ. प्रशांत जोशी ने बताया कि, खांसी की दवा से बच्चे की हालत अत्यंत गंभीर थी, उसकी सांसें लगभग बंद हो चुकी थीं. इलाज के दौरान कई बार रक्त संक्रमण और हृदय संबंधी परेशानियां सामने आईं, लेकिन डॉक्टरों की सामूहिक मेहनत और निरंतर प्रयासों से बच्चे की जान बचाई जा सकी. इस बच्चे के इलाज का पूरा खर्च अस्पताल प्रशासन ने उठाया है.

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