नागपुर जिले में माता मृत्यु के मामले बढे

गर्भस्थ शिशुओं की मौत के आंकड़े भी चिंताजनक

नागपुर/दि.26- केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित करने के लिए हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, इसके बावजूद नागपुर जिले से एक चिंताजनक तस्वीर सामने आई है. सूचना के अधिकार (ठढख) के तहत प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जिले में मातृ मृत्यु के साथ-साथ गर्भ में शिशु मृत्यु (स्टिल बर्थ) के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है.
नागपुर जिला परिषद के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार वर्ष 2023 और 2024 में जिले में प्रत्येक वर्ष 2-2, यानी कुल 4 मातृ मौतें दर्ज हुई थीं. लेकिन 1 जनवरी 2025 से अक्टूबर 2025 के मात्र दस महीनों में ही 7 मातृ मौतें दर्ज हो चुकी हैं. गर्भ में शिशु मृत्यु (स्टिल बर्थ) के मामलों में भी उतार-चढ़ाव के साथ फिर से बढ़ोतरी देखी गई है. 2023 में 12 शिशुओं की गर्भ में ही मौत हुई थी, 2024 में यह संख्या घटकर 7 रह गई थी. लेकिन 2025 के पहले दस महीनों में ही 8 मामलों की पुष्टि हो चुकी है. यह जानकारी सामाजिक कार्यकर्ता अभय कोलारकर द्वारा आरटीआई के माध्यम से प्राप्त की गई है.
* गर्भ में शिशु मृत्यु के संभावित कारण
चिकित्सकों के अनुसार, गर्भस्थ शिशु की मृत्यु के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें मां को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, एनीमिया जैसी बीमारियां, गर्भनाल से जुड़ी समस्याएं, प्लेसेंटा संबंधी जटिलताएं, जन्मजात विकार, संक्रमण (मलेरिया, सिफलिस आदि), प्रसव-पूर्व जांच की कमी, मां का कुपोषण या तंबाकू-शराब जैसी लत प्रमुख हैं.
* मातृ मृत्यु के प्रमुख कारण
विशेषज्ञों के मुताबिक प्रसव के दौरान या उसके बाद अत्यधिक रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप व दौरे, संक्रमण (सेप्सिस), असुरक्षित गर्भपात, प्रसव में जटिलताएं, पहले से मौजूद बीमारियां (हृदय रोग, एनीमिया) और समय पर उपचार न मिलना मातृ मृत्यु के मुख्य कारण बनते हैं.
* नियंत्रण के लिए क्या जरूरी
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मातृ मृत्यु और स्टिल बर्थ को रोकने के लिए गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था के दौरान समुचित देखभाल, परिवार नियोजन और दो गर्भधारण के बीच अंतर, किशोरियों का पोषण और एनीमिया नियंत्रण, नियमित प्रसव-पूर्व जांच, आयरन-फोलिक एसिड व कैल्शियम का सेवन, टीकाकरण और आवश्यक जांच, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की उपस्थिति में संस्थागत प्रसव, प्रसव के बाद मां की निगरानी और पोषण पर विशेष ध्यान बेहद आवश्यक है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाए और समय पर इलाज सुनिश्चित हो, तो जिले में मातृ मृत्यु और गर्भ में शिशु मृत्यु के मामलों को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

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