नेरपिंगलाई की पिंगलादेवी है भाविक श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र
विदर्भ का ऐतिहासिक तीर्थक्षेत्र है पिंगलादेवी गड

अमरावती /दि.25 – अमरावती से मोर्शी की ओर जानेवाले रास्ते पर गोराला स्टॉप के पूर्व की ओर स्थित टेकडी पर माता पिंगलादेवी का ऐतिहासिक एवं भव्य मंदिर है. किसी भी व्यक्ति के सभी दुखों का हरण कर उसे अनंत में उडान भरने हेतु प्रेरित करनेवाला यह एक निसर्गरम्य स्थान है. जिसे पिंगलादेवी गड कहा जाता है. यह स्थान एकतरह से नेरपिंगलाई, नांदुरा पिंगलाई व सावरखेड पिंगलाई ऐसे तीन गांवों की सीमारेखा है. जो वस्तुत: नांदुरा गांव की सीमा में शामिल है.
पिंगलादेवी की मूर्ति का धड भूमि के नीचे तथा सिर भूमि के उपर है. पूर्वाभिमुख माता का मोहक चेहरा, तेजस्वी आंखे, उंचा माथा, बीचोबीच चंद्रकोर व कुकुम तिलक, सिर पर वस्त्र परिधान वाला स्वरुप एक कर प्रत्येक श्रद्धालु के मन को असीम शांति प्राप्त होती है. धार्मिक आख्यायिका के मुताबिक पिंगलादेवी माता का रोजाना दिनभर के दौरान तीन बार रुप बदलता है. जिसके तहत माता सुबह के समय बाल रुप, दोपहर के समय तरुण रुप व संध्याकाल के समय बुजूर्ग रुप में दिखाई देती है. यह दृष्य बेहद विलोभनीय होता है. देवी के मंदिर एवं आसपास के परिसर का निर्माण हेमांडपंथी शैली से हुआ है. जिसके चलते माना जाता है कि, इस मंदिर की स्थापना करीब 500 वर्ष पहले हुई होगी.
धार्मिक आख्यायिका के मुताबिक किसी समय इस क्षेत्र के राजा को तेज पेटदर्द होना शुरु हुआ तथा हर तरह के इलाज के बावजूद उसे कोई राहत नहीं मिली. लेकिन जब वह पिंगलादेवी की शरण में पहुंचा और मंदिर के पुजारी ने देवी का अंगारा राजा के पेट पर लगाया, तो राजा को तुरंत ही पेटदर्द से छुटकारा मिल गया. जिसके चलते उसकी देवी पर श्रद्धा हुई और उसने यहां पर सभा मंडप का निर्माण करवाया. इसके अलावा करीब 40 वर्ष पहले नवरात्रौत्सव के दौरान इस मंदिर में एक बेहद चमत्कारिक घटना घटित हुई थी, जब मंदिर में भजन-कीर्तन शुरु रहते समय अचानक ही बिजली की तेज गडगडाहट के साथ बारिश शुरु हुई और मंदिर के कलश से आसमानी गाज आकर टकराई. उस समय मंदिर में सैकडों-हजारों भाविक श्रद्धालु मौजूद थे. लेकिन उनमें से किसी को भी कोई चोट या नुकसान नहीं पहुंचा, बल्कि देवी की ओढनी वाला पितांबर वस्त्र जलकर खाक हो गया. साथ ही मंदिर तट में हलकी सी दरार पडी.
इस मंदिर के भव्य प्रवेशद्वार से लगकर एक विशालकाय दीपस्तंभ है. जिसे देवी के आरती के समय प्रज्वलित किया जाता है. चैत्र पुर्णिमा व शारदीय नवरात्र में यहां पर देवी की यात्रा का आयोजन होता है. साथ ही श्रावण माह में भी भाविक श्रद्धालु एवं निसर्गप्रेमी यहां पर पहुंचते है. पिंगलादेवी गड पर पहुंचने के बाद आसमान से बरसनेवाली पानी की बुंदों, बादलों की लुकाछिपी, चराई हेतु निकली गाय-भैंस, गुराखीयों के मधूर गीत, खेतों में काम करनेवाले किसान तथा धूप-छांव के खेल को देखनेवाले गांव जैसे दृष्य बेहद विलोभनीय दिखाई देते है.
* भोसले राजा ने बनवाया था तालाब
इस मंदिर के करीब 100 मीटर की दूरी पर एक तालाब है. जिसका निर्माण भोसले राजा द्वारा करवाया गया था और इसे कपूर तालाब के तौर पर जाना जाता है. इसी तालाब के पास संत नागेश्वर महाराज की समाधि है. जिनके शरीर पर हमेशा ही सांप खेला करते थे. इसके पास ही शिरखेड के वामन महाराज की भी समाधि स्थित है.
* पिंगलादेवी गड को पर्यटन स्थल घोषित किया जाए, ऐसी मांग विगत कई वर्षों से की जा रही है. नवरात्रौत्सव के दौरान श्रद्धालुओं को अनुशासित पद्धति से देवी के दर्शन कराने हेतु तहसील सहित जिले के अलग-अलग गांवों से सेवाभावी युवा एवं उत्साही भाविक अपनी सेवा देने के लिए यहां पहुंचते है.
– विनित आकोडे
अध्यक्ष, पिंगलादेवी मंदिर संस्थान.





