
अकोला/दि.20-चैत्र महीने में सप्तमी और अष्टमी तिथि को शीतला सप्तमी और अष्टमी के नाम से जाना जाता है. सामाजिक मान्यताओं के आधार पर शनिवार और मंगलवार के दिन शीतला सप्तमी नहीं मनाई जाती है. इसमें मुख्यत: ठंडे भोजन का महत्व और शीतला माता का पूजन महत्वपूर्ण है, जो कि इस बार 21 मार्च को सप्तमी, 22 मार्च अष्टमी के रूप में आ रही है. सनातन संस्कृति में हमारा खान-पान, साफ सफाई, उपवास, धर्म पालन के तौर तरीके वैज्ञानिक कर्म से परिपूर्ण हैं. इसी क्रम में शीतला माता पूजन पूरी दुनिया के सबसे बडे रोग खसरा, चेचक, चर्मरोग, रोग प्रतिरोधक शक्ति बढाने वाली, अमाशय की तकलीफ दूर करने वाली, पुराने ज्वर को दूर करने वाली पद्धति शीतला पूजन है. शीतला रोग, विश्व स्वास्थ्य संगठन की जानकारी की उपलब्धता के अनुसार हर मंगलवार को महाप्रसाद का होता है आयोजन अकेले यूरोप में कुछ वर्षों पूर्व इस महामारी ने प्रतिवर्ष चार लाख लोगों के प्राण हरण किये. भारत में देवी आना जैसा अंधविश्वास भी रहा.
भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा शीतला पूजन के सहारे इसमें नीम को जोड दिया, नीम के गर्म पानी से नहाना, नीम की छाल और नीम के पत्तों का लेप लगाना, नीम के पत्तों को दरवाजे पर लगाना, घर में नीम की भरपूर मात्रा रखना, नीम के पत्तों पर सोना, शयन करना, यह 100% हमारे शीतला पूजन में शामिल वैज्ञानिक उपचार थे और हैं. देवी निकलने से पहले ही शीतला पूजन के उपाय कर लिए जाएं तो बहुत कम संभावना होती है इस रोग के बढने की और आने की. वसंत के मौसम में यह बीमारी खास तौर पर होती है और भी बहुत कुछ जानकारी है परंतु इतना तय है बृहद आयुर्वेदिक चिकित्सा मथुरा ग्रंथ के अनुसार तथा कृष्ण गोपाल आयुर्वेद भवन अजमेर राजस्थान से निकलने वाली किताबों के अनुसार नीम के पत्ते, छाल, जड यह सभी शीतला पूजनमें हमारी आयुर्वेदिक वैज्ञानिक धरोहर हैं. इसे हम पहचाने, और शीतलापूजन में साथ में दही, छाछ, राबडी जैसी चीजों का खान-पान में प्रयोगकरके रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढाएं और अपने धर्म पर अपने संस्कारों पर विश्वास करें. सिटी कोतवाली के पीछे बालाजी मंदिर में आयोजित सभा में सर्व श्री पंडित बाबूलाल तिवारी, एड. सुरेश शर्मा, रजनीकांत जाडा, आलोक शर्मा, सुमित तिवारी, रतन तिवारी, प्रमोद तिवारी, भैरू शर्मा, अशोक शर्मा, लाला तिवारी एवं पंडित रवि कुमार शर्मा प्रमुख रूप से उपस्थित थे.