अकोला-/दि.13 भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र अंतर्गत राष्ट्रीय पशु आनुवांशिकी संसाधन ब्युरो की ओर से (कर्नाल, हरियाणा) भारत के नये पंजीकृत पशुधन की सूची घोषित की गई. जिसमें पश्चिम विदर्भ के पूर्णाथडी भैसों को राष्ट्रीय मान्यता मिली है. महाराष्ट्र में नागपुरी, पंढरपुरी एवं मराठवाड़ी इन प्रमुख जाति होकर अब इसमें पूर्णाथडी भैसों की जाति नये से समाविष्ट की गई है.
नागपुर के महाराष्ट्र पशु व मत्स्य विज्ञान विद्यापीठ के कुलगुरु डॉ. कर्नल आशीष पातुरकर के मार्गदर्शन में अकोला के स्नातकोत्तर पशुवैद्यक व पशुविज्ञान संस्था इस घटक महाविद्यालय के पूर्णाथडी भैसों के अभ्यासक डॉ. शैलेन्द्र कुरलकर व डॉ. एस.साजिद अली ने कर्नाल के डॉ. विकास वोरा एवं डॉ. आर. एस. कटारिया इन शास्त्रज्ञों के समन्वय से स्थानीय पूर्णाथडी भैस का शास्त्रोक्त अभ्यास कर राष्ट्रीय मानांकन प्राप्त करने हेतु प्रयास किये. नागपुरी भैस की बजाय रंग से फीके राख के रंग वाली भैस पश्चिम विदर्भ के अमरावती, अकोला व बुलढाणा जिले के पूर्णा नदी के किनारे के भागों में विशेष रुप से दिखाई देती है. स्थानीय स्तर पर इन्हें भुरी, राखी, गवली ऐसे नाम से पहचाना जाता है. संस्था के सहयोगी अधिष्ठाता डॉ. धनंजय दिघे ने पूर्णाथडी भैसों के अभ्यासक प्रा. डॉ. शैलेन्द्र कुरलकर एवं डॉ. एस. साजिद अली का गौरव किया.
पूर्णाथडी के दूध में स्निग्ध का प्रमाण आठ प्रतिशत होने से वहीं मध्यम आकर, दूध के स्निग्ध का उच्च प्रमाण, उत्तम प्रजनन क्षमता, कम व्यवस्थापन खर्च एवं सबसे महत्वपूर्ण यानि विदर्भ के उष्ण हवामान में तग पकड़कर रहने की क्षमता इन गुणधर्म के कारण लघु व मध्यम भैस पालकों में पूर्णाथडी विशेष लोकप्रिय है.