अकोला

राज्य में नया कपास सत्र शुरू, लेकिन अधिकांश जिनिंग प्रेसिंग बंद

अकोला/ दि. 2– विश्व तथा स्थानीय स्तर पर कपास की मांग और तेजी न रहने से भाव में बढोतरी दिखाई नहीं देती. कपास को प्रति क्विंटल 7020 रूपए गारंटी दाम रहे तो भी व्यापारी उससे कम भाव में ही खरीदी कर रहे हैं. राज्य में नया कपास सत्र शुरू रहा तो भी अधिकांश जिनिंग प्रेसिंग कारखाने बंद रहने की बात राज्य के कपास उत्पादक किसान कहते हैं.

जो थोडी बहुत जिनिंग प्रेसिंग शुरू है वह भी 25 प्रतिशत क्षमता से कार्यरत है. कपास यह देश के किसानों की मुख्य नकद फसल हैं. कृषि माल पर आधारित सबसे बडा कपडा उद्योग यह कपास पर ही चलता है. इस उद्योग से देश में अनेकों को रोजगार मिला है, ऐसा रहते हुए भी इस देश के कपास पर प्रतिक्रिया उद्योग दुविधा में है और उत्पादक किसान सर्वाधिक दरिद्रता में हैं.

* इस वर्ष उत्पादकता में गिरावट होने की संभावना
कपास के उत्पादन क्षेत्र में अग्रेसर रहा अपना देश उत्पादकता में सबसे पिछडा है. एक दशक पूर्व भारत की कपास उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 560 किलो की यह पिछले वर्ष 350 किलो रूई प्रति हेक्टेयर पर पहुंच गई है. इस वर्ष इस उत्पादकता में और भी गिरावट आने की संभावना है. अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में अब भी कम उत्पादकता मिलती है.

* उत्पादन खर्च बढा
कपास की फसल को बोंड इल्ली, रोग और लाल्या विकृति ने घेरा है. इस कारण उत्पादन खर्च बढा और उत्पादन कम हो रहा है. कपास की फसल तकनीकीकरण की दृष्टि से काफी पीछे है. कपास की बुआई से लेकर चुनाई आदि अधिकांश काम मजदूरों द्बारा किए जाते है. इस काम में समय और पैसा भी काफी लगता है.

* खेती काफी घाटे में
कपास का उत्पादन खर्च बढता रहते प्रति एकड जैसे-तैसे 3 से 4 क्विंटल उत्पादन के कारण खेती काफी घाटे में रहती है. असिंचित खेती में बिटी कपास की उत्पादकता काफी कम है. देश में बिटी प्रजाति का महत्व रहा तो भी अधिकांश प्रजाति उत्पादकता के स्तर पर फिर साबित हो रही है. ऐसे समय प्राप्त परिस्थिति में अधिक उत्पादनक्षम प्रजाति का संशोधन होना चाहिए.

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