अकोला

रेशम हुआ वरदान: राज्य में 5 हजार मैट्रिक टन कोष उत्पादन

मराठवाडा के बाद विदर्भ में उद्योग की शुरुआत

* किसानों का आर्थिक विकास
अकोला/दि.1– कपास, सोयाबीन, तुअर आदि पारंपरिक फसलों के साथ ही किसानों ने अब रेशमकोष खेती का पर्याय चयनित किया हैं. इस माध्यम से आर्थिक विकास किया जाता रहने से हर वर्ष इस उत्पादन में बढोतरी हो रही हैं. पिछले डेढ वर्ष में राज्य में 5 हजार 265 मैट्रिक टन रेशमकोष उत्पादन हुआ. इस कारण जो बेचने का मौका है वही उत्पादन का. यह सूत्र राज्य के किसानों ने अपनाया रहने की बात दिखाई दे रही हैं.
राज्य में वर्तमान में करीबन 28 जिलों में कम ज्यादा प्रमाण में रेशम की खेती की जाती हैं. यह खेती काफी कम पानी में होती रहने से किसान इस ओर मुडने लगे हैं. मराठवाडा के बाद विदर्भ में भी रेशम उद्योग को प्रतिसाद मिल रहा हैं. हर वर्ष किसानों व्दारा रेशम खेती कर अच्छा उत्पादन लिया जा रहा हैं. यह उद्योग खेती के लिए वरदान बना हैं. इस कारण हर वर्ष राज्य मेें रेशमकोष उत्पादन भी बढ रहा हैं.

* 516 मैट्रिक टन सूत उत्पादन
रेशमकोष से कच्चा रेशम सूत तैयार किया जाता हैं. बाजार में अलग-अलग डेनियर में वह उपलब्ध रहता हैं. रेशम सूत से पैठनी, शालू, शर्टिंग, साडियां आदि रेशम कपडे तैयार होते हैं. इसके लिए कच्चे रेशम सूत पर विविध प्रक्रिया करनी पडती हैं. पिछले वर्ष राज्य में 516 मैट्रिक टन सूत निर्मिती होने की जानकारी रेशम संचालनालय की तरफ से मिली हैं.

* परिश्रम जरुरी
रेशम खेती के लिए बारिकी से ध्यान देकर अथक परिश्रम करना पडता हैं. रेशम के तंत्र विकसित हुए तो काफी उत्पादन प्राप्त होता हैं इस कारण मुझे आर्थिक उन्नति मिली. केवल अनुदान के लिए यह खेती नहीं हैं.
– देवराव लाहोले, रेशम उत्पादक किसान, अंबाशी

* ऐसा हुआ उत्पादन
2020 से मार्च 2021 तक 3,356 मैट्रिक टन
अप्रैल 2021 से अक्तूबर 2022 तक 5,265 मैट्रिक टन
इस वर्ष अब तक 1909 मैट्रिक टन

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