अकोलाविदर्भ

शिक्षा का पाठ पढाते शिक्षक ने की खेती

सात एकड जमीन पर किया संतरे का लाखों का उत्पादन

* शिक्षक किसान अनिल भिरडे की प्रेरणादायी सक्सेस स्टोरी
अकोला/दि.16– खेती व्यवसाय में कम खर्च में अधिक उत्पादन लेने के लिए आज के दौर में किसानों व्दारा नए-नए प्रयोग किए जाते है. लेकिन अब तक अनेक बार ऐसा ही सुना गया है कि किसानों को संतरा बगीचों में मिलने वाला उत्पन्न कम होता जा रहा है. ऐसी परिस्थिति में अकोला जिले के देगांव परिसर में एक शिक्षक ने अपने खेत में नया प्रयोग किया. 7 एकड खेती में लगाए संतरों की फसल से लाखों का उत्पादन लिया है. अनिल भिरडे नामक किशक्षक किसान की यह प्रेरणादायी यशोगाथा है.
विदर्भ के अमरावती, नागपुर समेत अन्य इलाकें ऑरेंज सिटी के रुप में पहचाने जाते हैं. जबकि अकोला जिले के बालापुर तहसील का वाडेगांव परिसर नींबू के लिए पहचाना जाता है. इस तहसील में पहली बार ही अनिल वासुदेव भिरडे (46) नामक शिक्षक ने अपने खेत में संतरा बगीचा तैयार कर नया रिकॉर्ड बनाया. विशेष यानी उसे इस फसल बाबत ज्यादा जानकारी नहीं थी. साथ ही किसी भी तरह का विशेष प्रशिक्षण भी उसने नहीं लिया. इस कारण उसने यूट्यूब के साथ ही कृषि विभाग से जानकारी लेकर संतरे का सफल उत्पादन किया. अकोला जिले के बालापुर तहसील का सबसे बडा गांव वाडेगांव और आसपास के परिसर नींबू उत्पादन के लिए विख्यात है. यहां के नींबू संपूर्ण देश में विख्यात है. इसी वाडेगांव परिसर के देगांव निवासी अनिल भिरडे नामक शिक्षक ने अपने खेत में किया प्रयोग तहसील में चर्चा का विषय हो गया है. अनिल भिरडे के पास पुश्तैनी 16 एकड खेती है.

पिता वासुदेव का 1990 में निधन हो गया. परिवार की सभी जिम्मेदारी बडे भाई संतोष के कंधों पर आ गई. संतोष ने शुुरुआत में 2 से 3 साल खेती कर परिवार संभाला. सूखे का संकट रहते इस किसान ने 2 एकड नींबू का बगीचा जला दिया. पश्चात पशु दवाखाने में उसे नौकरी लगी. उस समय खेत में पारंपरिक खेती की जाती थी. 1998 में अनिल भिरडे शिक्षक के रुप में जिला परिषद शाला में नौकरी पर लग गए. दोनों भाईयों ने नौकरी करते हुए खेत में पारंपरिक फसल के साथ कुछ नया करने का विचार शुरु किया. शुुरुआत में नींबू की बुआई की. इससे उन्हें अच्छा उत्पादन मिलने लगा. लेकिन चाहिए वैसा उत्पादन बाद में नहीं मिल रहा था. इस कारण अनिल भिरडे ने अकोला के डॉ. पंजाबराव कृषि विद्यापीठ को भेंट दी. यहां के शास्त्रज्ञ दिनेश पैठणकर, योगेश इंगले से चर्चा की. खेत की मिट्टी की जांच कर संतरा बगीचेे के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया गया. बडे भाई की सहायता से अनिल भिरडे ने वर्ष 2006 में खेत में 3 एकड जमीन पर संतरे के पौधे लगाए. 2015 से उन्हें अच्छा उत्पादन मिलने लगा. वर्ष 2016 से उन्होंने और साढे तीन एकड जमीन पर संतरे के पौधे लगाए. इसके लिए उन्होंने शासकीय योजना का पूरा इस्तेमाल किया. इस योजना के कारण वर्तमान में उन्होंने कम खर्च में संतरा बगीचा तैयार किया. बालापुर तहसील में अनिल भिरडे पहले संतरा उत्पादक किसान साबित हुए हैं. संतरा पेडों का उन्होंने समय-समय पर विद्यापीठ के मार्गदर्शन के मुताबिक ध्यान रखा और लाखों का उत्पन्न लिया.
* साल में दो दफा उत्पादन
संतरा पेडों से साल में दो दफा मृग और आंबिया बहार से उत्पन्न मिलता है. मृग बहार में सर्वाधिक उत्पन्न मिलता है. मृग बहार में संतरे के भाव अधिक रहते है. एक कैरेट को 600 से 650 रुपए तक भाव मिलते है. जबकि आंबिया बाहर में 300 से 400 रुपए प्रति कैरेट की बिक्री होती है. शुरुआत में मृग में 1600 कैरेट संतरा हुआ और 5 लाख रुपए आय हुई. दूसरे बहार में 6 लाख की आय हुई. जबकि आंबिया बहार में 4 लाख का संतरा हुआ. वर्तमान में आंबिया बहार शुरु है. उन्हें इससे अच्छा उत्पन्न हो रहा है.

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