अकोला

अधिकांश शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय की हालत खस्ता

भावी डॉक्टरों के भविष्य से खिलवाड

* सरकार की जानकारी आधी-अधूरी
* सभी जिलों में मेडिकल कॉलेज की घोषणा
अकोला -दि.1 महाराष्ट्र की नई शिंदे-फडणवीस सरकार ने प्रदेश के सभी जिलों में कम से कम एक शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय स्थापित करने की घोषणा की है. अमरावती, बुलढाणा भी नये लाभार्थी जिलों में शामिल है. बहरहाल अब तक स्थापित शासकीय महाविद्यालयों की दशा बहुत अच्छी नहीं होने का अनुभव बताया गया है. आरोप है कि, सरकारी मेडिकल कॉलेज की हालत इस कदर खराब है कि, भावी डॉक्टरों के भविष्य से खिलवाड करने का आरोप इस क्षेत्र के जानकारों ने लगाया हैं. उन्होंने दावा किया कि, कोल्हापुर हो या अकोला, यवतमाल हो या नांदेड सभी जगह सरकारी मेडिकल कॉलेज में अपेक्षित सुविधाओं के साथ-साथ योग्य पढाई-लिखाई की भी व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है. विशेषज्ञों ने पहले इन मेडिकल कॉलेज के हालात ठीक करने की अपेक्षा सरकार से जताई है.
* यह कॉलेजेस हैं सेवारत
पश्चिम विदर्भ के अकोला और यवतमाल, नागपुर के चंद्रपुर, गोंदिया, नागपुर के साथ जलगांव, धुले, नांदेड, औरंगाबाद, लातूर, अंबेजोगाई, ठाणे, मुंबई, पुणे, सोलापुर, कोल्हापुर, मीरज, बारामती आदि 18 स्थानों पर 22 मेडिकल कॉलेजेस हैं. जिसमें नागपुर का जीएमसी सर्वाधिक पुरातन शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय हैं. इसकी स्थापना 1845 में हुई थी. जबकि जलगांव में मात्र 4 वर्ष पहले अर्थात 2018 में शासकीय महाविद्यालय आरंभ हुआ. फिलहाल इन कॉलेजेस की कुल प्रवेश क्षमता 4080 हैं. अर्थात हर वर्ष 4 हजार डॉक्टर तैयार होकर निकलते हैं.
* अधिकांश कॉलेज की अवस्था दयनीय
कुछ सम्माननीय महाविद्यालयों को छोडकर अधिकांश सरकारी मेडिकल कॉलेज की गुणवत्ता, श्रेणी, संलग्न अस्पतालों की अवस्था, वहां पढ रहे भावी डॉक्टरों को मिल रही सुविधाएं, विशेषज्ञ अध्यापकों की उपलब्धता तथा शैक्षणिक साधन सामग्री के बारे में न ही कहा जाये, तो बेहतर. इन कारणों से यहां पढकर बाहर निकले डॉक्टरों की क्षमता पर संशय उपस्थित किया जाता है.
* अस्पताल आवश्यक
मेडिकल की पढाई के लिए सुविधायुक्त अस्पताल और उसमें मरीजों की आवश्यकता होती है. विद्यार्थियों को कोर्स की दृष्टि से कम से कम 5 मरीज उपलब्ध होना जरुरी है. फिलहाल 22 शासकीय कॉलेजेस में वार्षिक विद्यार्थी प्रवेश क्षमता 100 से लेकर 250 तक हैं. यानि इन कॉलेजेस से जुडे अस्पताल 500 से 1250 बेड की क्षमता वाले होने चाहिए. प्रदेश में 1-2 मेडिकल कॉलेज का अपवाद छोड दें तो कहीं भी मरीज और बेड क्षमता के अपेक्षित अस्पताल नहीं है. आदि क्षमता के भी अस्पताल नहीं होने से विद्यार्थियों को कॉम्प्रमाईज कर जैसे तैसे पढाई पूरी करनी पडती है.
* होस्टलों के हाल
विद्यार्थियों के वसतीगृह भी बहुत अच्छी कंडीशन में नहीं कहें जा सकते. मेडिकल के विद्यार्थी बाहरगांव से आते है. उसके लिए सुसज्जित होस्टल जरुरी है. मगर देखने में आया है कि, अधिकांश होस्टल में क्षमता से अधिक विद्यार्थी रह रहे हैं. कहीं-कहीं तो एक ही कमरें में 5-6 विद्यार्थी ठूसे जा रहे हैं. अनेक विद्यार्थी निरुपाय होकर किराए के कमरों में रह रहे है.
* साधन सामग्री अधूरी
शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय में लेक्चर हॉल, प्रैक्टीकल रुम, प्रैक्टीकल साधन समग्री भी मापदंडों के अनुरुप नहीं होने की शिकायत ज्यादातर विद्यार्थी और पालक करते आये हैं. ऐसे में सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्राथमिक स्तर पर भी अनेक दिक्कतें देखी जा रही हैं. शिंदे सरकार ने और 12 मेडिकल कॉलेज खोलने का ऐलान कर दिया. मौजूदा महाविद्यालयों की दशा-दिशा पर ध्यान देने की अपेक्षा वैद्यकीय क्षेत्र के जानकारों ने जताई हैं.

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