अकोलाविदर्भ

घायल पशुओं की भावनाओं को समझते हुए सही मायने में देखभाल करना जरूरी

डॉ.अर्चना एवं गणराज जैन की राय

* देश के पहले प्राणी अनाथालय में 107 पशु
अकोला/दि.15- कोई मनुष्य यदि संकट में रहा तो उसकी मदद करने के लिए कई लोग सामने आते है, लेकिन किसी पशु की जान संकट में रहने पर उसे बाहर कौन निकालेगा? उसकी देखभाल कौन करेगा? ऐसे अनेक सवाल अनुत्तरित रहते है. घायल अथवा बीमार पशुओं को लावारिस छोडकर उन्हें और भी पीडा दी जाती है. यह स्थिति बदलना जरूरी है. घायल व लावारिस पशुओं की भावना को समझते हुए उन्हें भी सही मायने में सहारा देकर उनकी देखभाल करना जरूरी है, यह राय देश के पहले दिव्यांग पशुओं के अनाथालय पाणवठा के संस्थापक डॉ.अर्चना एवं गणराज जैन ने व्यक्त की. अकोला में आयोजित एक कार्यक्रम दौरान वे बोल रहे थे.
गणराज जैन ने बताया कि, वे 2005 से पशुओं के लिए काम कर रहे है. 2012 में कोब्रा नाग ने डंसने से सात दिनों तक अस्पताल में भर्ती था. इसके बाद मिले जीवन को केवल पशुओं के लिए समर्पित करने का फैसला हम दोनों ने किया. सबसे पहले सफर नाम से पशुओं के लिए नि:शुल्क उपचार केंद्र चलाया. पश्चात इस उपचार केंद्र का पशुओं के अनाथाश्रम में परिवर्तन किया. देश का यह पहला दिव्यांग पशुओं का अनाथालय है. वर्तमान में इस आश्रम में 107 पशु है. इसमें गाय, घोडा, गधे, बंदर, श्वान, बिल्लियां, मोर आदि सभी पशु रहते है. वन विभाग भी दिव्यांग प्राणियों को यहां लाकर देते है. अब तक इस आश्रम में करीब 4500 हजार पशुओं का इलाज किया गया. उनकी देखभाल व उपचार करने का मौका हमें ईश्वर नहीं किया है, इसे हम अपना भाग्य मानते है.
कई दिक्कतों का करना पडा सामना
मूलत: महाड निवासी रहने वाले गणराज जैन ने बताया कि, कई पशुओं को विकलांगता आती है. ऐसे में उनकी देखभाल करने वाली कोई संस्था है क्या? इस जानने काफी खोज की. लेकिन केवल दिव्यांग पशुओं का अनाथाश्रम कही नहीं है, यह बात सामने आई. घायल, दिव्यांग पशुओं की देखभाल करने की दृष्टि से महाड छोडकर मुंबई के नजदीक आने का प्रयास किया. जिसके बाद बदलापुर में पांच साल से दिव्यांग पशुओं का अनाथालय शुरु किया. इस अनाथालय को सरकार द्वारा किसी भी प्रकार की मदद अथवा अनुदान नहीं. डॉ.अर्चना एमडी डॉक्टर रहने से उनकी प्रैक्टीस से मिलने वाली रकम से पशुओं का अनाथालय चलाते है. सामाजिक दायित्व से भी कुछ मदद मिलती है. इस अनाथालय का निर्माण करने के लिए डॉ.अर्चना ने अपना मंगलसूत्र सहित घर की सामग्री भी बेच दी. अनाथलय का कार्य करते समय आर्थिक दिक्कतें तो आती ही है, साथही मानव व प्रकृति निर्मित विविध समस्याओं का भी सामना करना पडता है. दिव्यांग पशुओं की देखभाल करने के लिए समाज ने तैयार होना समय की जरूरत है, ऐसा गणराज जैन ने कहा.
* बेडरूम में ‘मगरमच्छ’ और कंधे पर ‘चील’
महाड में जेसीबी से एक मगरमच्छ का मुंह जख्मी हो गया. इलाज के दौरान उसे रखने की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण उसे घर के बेडरूम में ही रखा गया. 15 दिनों के इलाज के दौरान उसने हमें अपना लिया. एक चील पर आठ महीने के इलाज के बाद, उसे छोड दिया गया, लेकिन वह जाने तैयार नहीं थी. जैसे ही हम दोनों घर से निकलते थे वह आकर हमारे कंधे पर बैठती थी. हमारे कंधे पर आज भी उसके नाखूनों के घाव मौजूद हैं. गणराज जैन ने कहा कि यदि आप जानवरों को 100 प्रतिशत प्यार देते हैं, तो वे आपको 200 प्रतिशत वापस देते हैं.
पाणवठा अनाथालय के कार्य को एक समाचार पत्र के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत किया गया. अनाथालय का काम दूर-दूर तक पहुंचा. इस पहल से अनाथालय को 15 लाख रुपये मिले. गणराज जैन ने कहा कि, यह पहल अनाथालय को बाढ़ संकट से फिर से खड़ा होने में बड़ा सहारा रहा है.

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