श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पवित्र प्रेम का साक्षी है कौंडण्यपुर का अंबिका माता मंदिर

रुक्मिणी के बुलावे पर द्वारका से आए थे श्रीकृष्ण, कौंडण्यपुर से ही किया था रुक्मिणी हरण

अमरावती /दि.30 – समीपस्थ तिवसा तहसील अंतर्गत वरदा (वर्धा) नदी के किनारे बसे कौंडण्यपुर स्थित प्राचीन अंबिका माता मंदिर से भगवान श्रीकृष्ण ने माता रुक्मिणी का हरण किया था. उस घटना की साक्ष देनेवाली ‘रुक्मिणी हरण खिडकी’ आज भी यहां पर अस्तित्व में है. हजारों वर्षों की परंपरा रहनेवाले कौंडण्यपुर में अंबिका माता मंदिर को रुक्मिणी हरण के मंदिर के तौर पर जाना जाता है.
कौंडण्यपुर स्थित अंबिका माता मंदिर में नवरात्रौत्सव के दौरान रोजाना तडके 5 बजे आरती हेतु परिसर में रहनेवाले भाविक श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड लगती है. साथ ही नवरात्रौत्सव काल के दौरान अंबिका माता मंदिर में 1400 दियों की अखंड ज्योत प्रज्वलित की जाती है. सैकडों दियों के जगमगाते प्रकाश, भजन-कीर्तन व अभिषेक के चलते यहां के वातावरण से एक अलग ही उर्जा प्राप्त होती है.
कौंडण्यपुर स्थित अंबिका माता मंदिर की रचना यवनकालिन है और यहां पर अंबिका माता की वालुकामय मूर्ति विराजमान थी. कालांतर में मंदिर के साथ ही मूर्ति का भी जिर्णोद्धार किए जाने के चलते अब मंदिर में मूर्ति का चमकदार व तेजस्वी स्वरुप दिखाई देता है. विदर्भ के प्रति पंढरपुर के तौर पर ख्याती प्राप्त रहनेवाला कौंडण्यपुर माता रुक्मिणी का मायका है. जिसे किसी समय कुंडीनपुर के तौर पर जाना जाता था. जो विदर्भनंदन राज्य की राजधानी वाला शहर था. इस मंदिर में अश्विन नवरात्र, चैत्र नवरात्र, आषाढी उत्सव व कार्तिक उत्सव बडी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. जिनमें शामिल होने हेतु समुचे राज्य से भाविक श्रद्धालु कौंडण्यपुर पहुंचते है.

* विदर्भ की पंचकन्याओं का मायका है कौंडण्यपुर
लोपामुद्रा, केशिनी, इंदुमती, दमयंती व माता रुक्मिणी का मायका रहनेवाला कौंडण्यपुर एक पौराणिक व ऐतिहासिक क्षेत्र है. साथ ही नवनाथ संप्रदाय अंतिम नाथ यानि चौरंगीनाथ भी कौंडण्यपुर से ही थे. इसके अलावा नल-दमयंती का विवाह समारोह भी कौंडण्यपुर में ही होने की आख्यायिका है.

* आप तो हमारे समधी हो
कौंडण्यपुर स्थित श्री अंबिका माता मंदिर संस्थान के अध्यक्ष ज्ञानेश्वर महाराज पातशे बताते है कि, जब वे किसी भी कार्यक्रम के लिए गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं अन्य किसी भी क्षेत्र में जाते है, तो उन क्षेत्रों में रहनेवाले कृष्ण भक्तों द्वारा ‘आप तो हमारे समधी हो’ कहते हुए बडे प्रेमभाव के साथ आदर सत्कार किया जाता है.

* संतों के पदस्पर्श से पावन भूमि
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के अध्यक्ष रहते समय प्राचीन विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर का जिर्णोद्धार किया गया था. साथ ही संत ज्ञानेश्वर महाराज, संत निवृत्तिनाथ, संत एकनाथ महाराज, संत सोपान महाराज व संत मुक्ताबाई ने भी अलग-अलग समय पर कौंडण्यपुर को भेंट दी है और ऐसे महान संतों के पदस्पर्श से श्री क्षेत्र कौंडण्यपुर की भूमि पवित्र व पावन हुई है.

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