अमरावती डंपिंग ग्राउंड प्रकरण

सुको ने अब तीन माह बाद रखी अगली सुनवाई

* आज पर्यावरणीय मुआवजा व ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर हुई सुनवाई
अमरावती/दि.11- सर्वोच्च न्यायालय में अमरावती डंपिंग ग्राउंड प्रकरण को लेकर आज मंगलवार 11 नवंबर को सुनवाई हुई. यह मामला अमरावती महानगरपालिका पर लगाए गए 47 करोड़ के पर्यावरण मुआवजे से जुड़ा हुआ है. यह सुनवाई न्यायमूर्ति पमिदिघंतम नरसिम्हा तथा न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की खंडपीठ के समक्ष हुई. दोनो पक्षों की दलीले सुनने के बाद अब अगली सुनवाई तीन माह बाद रखी गई हैं.
आज की सुनवाई में एड. शिबानी घोष ने शपथ पत्र प्रस्तुत करते हुए न्यायालय के समक्ष कुछ मुद्दे विचारार्थ रखे. इनमें पर्यावरण मुआवज़े की गणना के लिए सीपीसीबी के फार्मूले का प्रयोग किया गया था, इसके अनुसार 47 करोड 23 लाख 45 हजार रुपए की राशि की अनुशंसा की गई. उल्लंघन की अवधि 17 जून 2009 से 15 अक्तूबर 2019 (कुल 3773 दिन) तक मानी गई. अपीलकर्ता ने मुआवज़े की राशि को चुनौती दी है, परंतु गणना के फार्मूले पर कोई आपत्ति नहीं उठाई गई है. अमाइकस द्वारा सवाल उठाया गया कि क्या एक ही एजेंसी पर एक ही मामले में दो अलग-अलग आदेशों द्वारा दो बार पर्यावरण मुआवज़ा लगाया जा सकता है, यदि सीपीसीबी का फार्मुला लागु किया जाए तो उल्लंघन की अवधि कब मानी जानी चाहिए, क्या 2016 के नियमों के लागू होने से पहले की अवधि को भी गिना जा सकता है?, महाराष्ट्र राज्य द्वारा 1200 करोड़ की राशि जमा करने के बाद क्या उसका कोई भाग सुकली डंपिंग ग्राउंड के कार्य हेतु निर्धारित किया गया है?, अपीलकर्ता द्वारा 2.4 करोड़ जो सीपीसीबी में जमा किए गए हैं, उनका उपयोग कहां और किस उद्देश्य के लिए हुआ है? अमाइकस क्यूरी एड. शिबानी घोष ने सुप्रीम कोर्ट के मामले का भी संदर्भ दिया. उन्होंने कहा कि
सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय डीपीसीसी बनाम लोढी प्रॉपर्टी कंपनी लिमिटेड (2025 आयएनएससी 923) में यह निर्देश दिया गया है कि पर्यावरणीय क्षति का आकलन पारदर्शी, न्यायसंगत और प्रक्रिया-सुनिश्चित तरीके से किया जाना चाहिए, जिसके लिए केंद्र सरकार को नियम एवं विनियम अधिसूचित करने होंगे. उस पर पीठ ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को निर्देश दिया कि वे शपथपत्र प्रस्तुत करें, जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि पर्यावरण मुआवज़ा निर्धारण की प्रणाली और न्यायसंगतता को किस प्रकार से तैयार किया गया है तथा भविष्य में इसे और अधिक पारदर्शी एवं निष्पक्ष बनाने की क्या संभावनाएं हैं. जब बायोमाइनिंग कार्य पूरा करने की समय सीमा के बारे में चर्चा हुई तो अमरावती मनपा ने कहा कि वे मई 2027 तक या उससे पहले काम पूरा कर लेंगे क्योंकि आने वाले महीनों में महाराष्ट्र में यूएलबी चुनाव होने वाले हैं. पीठ ने अमरावती महानगरपालिका के अधिवक्ताओं से यह स्पष्ट करने को कहा कि बायोमाइनिंग कार्य को पूरा करने में कितना समय लगेगा और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि आगामी मनपा चुनाव कार्य की प्रगति में बाधा न बनें. सुनवाई के दौरान, प्रतिवादी गणेश अनासाने ने न्यायालय के समक्ष यह बताया कि एमएसडब्ल्यू नियम 2016 के अनुसार ठोस अपशिष्ट प्रबंधन कार्य में लगे ठेकेदार को नियमित रिपोर्ट शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल को प्रस्तुत करना अनिवार्य है. इस पर पीठ ने महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल (एमपीसीबी) को निर्देश दिया कि वे प्रत्येक तिमाही नगर ठोस अपशिष्ट (एमएसडब्ल्यू) कार्य – जिसमें बायोमाइनिंग और ताज़े कचरे के प्रोसेसिंग कार्य शामिल हैं – की निगरानी करें तथा अपनी रिपोर्ट अगली सुनवाई में प्रस्तुत करें. इस मामले की अगली सुनवाई 3 महीने बाद निर्धारित की गई है.

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