अमरावती सड रही, मनपा सो रही
कचरे के ढेर में तब्दील हुआ शहर

* करोडों का सफाई ठेका बना मजाक
* शहर में हर ओर बस कचरा ही कचरा
* साफ-सफाई को लेकर मनपा के दावे ‘टांय-टांय फिस्स’
* शहर की सडकों पर हजारों टन कचरा, सफाई कर्मी नदारद
ठेकेदार की शहर में कचरा संकलन गाडियां ही नहीं दिख रही
* शहर में फैली गंदगी का जनप्रतिनिधियों की भी आश्चर्यजनक चुप्पी
* केवल कागजों पर ही चल रही साफ-सफाई की खानापूर्ति
* कोणार्क कंपनी को सफाई ठेका आवंटित होकर 17 दिन होने के बावजूद काम ठप
* मनपा चुनाव लडने के इच्छुक भी समस्या पर कुछ नहीं बोल रहे
* मनपा के वॉटस्एप ग्रुप पर निर्देश देकर प्रशासन कर रहा कर्तव्यों की इतिश्री
* सफाई ठेकेदार के सामने जनप्रतिनिधि व प्रशासन दिख रहे पूरी तरह से हतबल व लाचार
अमरावती/दि.17 – हाल ही में अमरावती महानगर पालिका ने शहर की साफ-सफाई हेतु विभिन्न रिहायशी इलाकों से निकलने वाले कचरे को संकलित कर उसे कंपोस्ट डिपो तक पहुंचाने हेतु करीब 240 करोड रुपए की लागत वाले एकल व संयुक्त ठेके की निविदा प्रक्रिया पर अमल करते हुए इस काम का जिम्मा मुंबई की कोणार्क इंफ्रा. नामक एजेंसी को दिया था, जिसके बाद 1 दिसंबर से कोणार्क इंफ्रा. कंपनी द्वारा अमरावती मनपा क्षेत्र में अपना काम शुरु करना अपेक्षित था. परंतु 17 दिन का समय बीत जाने के बावजूद कोणार्क इंफ्रा. कंपनी द्वारा जमिनी स्तर पर अपना काम करना शुरु नहीं किया गया है. जिसके चलते शहर में हर ओर सडकों के किनारे कचरे के ढेर लगे हुए है और करोडों रुपयों का सफाई ठेका जारी होने के बावजूद शहर की सडकों पर इस समय हजारों टन कचरा फैला हुआ है. ऐसे में सवाल उठना लाजिणी है कि, आखिर जनस्वास्थ्य से जुडे इतने गंभीर मुद्दे को लेकर अमरावती व बडनेरा के जनप्रतिनिधि चुप क्यों है. साथ ही साथ मूलभूत सुविधाओं के मुद्दे को लेकर मनपा का आगामी चुनाव लडने के इच्छुक दावेदारों द्वारा इस विषय पर कोई आवाज क्यों नहीं उठाई जा रही और सबसे बडी बात यह है कि, शहर में साफ-सफाई के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार रहनेवाला मनपा प्रशासन आखिर क्या कर रहा है. ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि, अमरावती सड रही है और मनपा सो रही है. जिसके चलते इस समय अमरावती के विभिन्न रिहायशी इलाकों की गलियों से लेकर मुख्य सड़कों तक हर तरफ कचरा ही कचरा है. साफ-सफाई को लेकर मनपा के तमाम दावे अब ‘टांय-टांय फिस्स’ साबित हो चुके हैं.
बता दें कि, करीब 240 करोड़ रुपये का सफाई ठेका देने के बावजूद विगत 17 दिनों से शहर में सफाई ठेकेदार की कचरा उठाने वाली एक भी गाड़ी ज़मीन पर दिखाई नहीं दे रही, जबकि हजारों टन कचरा सड़कों पर सड़ रहा है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या मनपा द्वारा आवंटित सफाई ठेका सिर्फ कागज़ों में चल रहा है. इस समय कोणार्क कंपनी को सफाई ठेका मिले पूरे 17 दिन हो चुके हैं, लेकिन शहर में न तो कोणार्क कंपनी के सफाई कर्मचारी दिखते हैं और न ही कचरा संकलन व कचरा ढुलाई करनेवाले वाहन ही दिखाई देते है. ऐसे में शहर की जनता गंदगी में रहने को मजबूर है और मनपा प्रशासन आंखों पर पट्टी बांधकर बैठा हुआ है.
सबसे दुखद यह है कि, सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुडे इतने महत्वपूर्ण एवं गंभीर मसले पर स्थानीय जनप्रतिनिधि पूरी तरह से मौन है. साथ ही साथ मनपा का चुनाव लडने के इच्छुक रहनेवाले पूर्व पार्षदों सहित अन्य दावेदारों द्वारा भी इस विषय को लेकर कोई आवाज नहीं उठाई जा रही. शहर में फैली गंदगी पर जनप्रतिनिधियों की शर्मनाक चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है. हकीकत यह है कि साफ-सफाई सिर्फ फाइलों और व्हाट्सएप संदेशों तक सीमित रह गई है. मनपा के व्हाट्सएप ग्रुप पर निर्देश जारी कर प्रशासन अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहा है, जबकि ज़मीन पर हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. स्थिति इतनी भयावह है कि सफाई ठेकेदार के सामने मनपा प्रशासन और जनप्रतिनिधि पूरी तरह हतबल और लाचार नजर आ रहे हैं. कोई जवाबदेही नहीं, कोई कार्रवाई नहीं और कोई शर्म भी नहीं.
इन तमाम हालात से बुरी तरह त्रस्त व हलाकान अमरावती शहर की जनता द्वारा अब मनपा प्रशासन को सवालों व आरोपों के कटघरे में खडा करते हुए सवाल पूछे जा रहे है कि, आखिर किस काम के लिए करोडों रुपए की लागत वाला सफाई ठेका आवंटित किया गया है और जब शहर में कोई साफ-सफाई ही नहीं हो रही, तो पैसा कहां खर्च हो रहा है. इसके अलावा शहर को कचरे में डुबोने की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या किसी अधिकारी या ठेकेदार पर कार्रवाई होगी, या फिर यह गंदगी ही अमरावती की पहचान बन जाएगी? ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि, यदि शहर में व्याप्त कचरे व गंदगी की समस्या को लेकर मनपा प्रशासन सहित स्थानीय जनप्रतिनिधियों की अब भी नींद नहीं टूटी, तो यह गंदगी सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि निकट भविष्य में जनता के सब्र का बांध भी तोड़ देगी. जिसके परिणामों के लिए पूरी तरह से मनपा प्रशासन ही जिम्मेदार रहेगा.





