हमारे पिता डॉ. मुरलीधर रामराव देशमुख यह हमारे लिए तत्वनिष्ठ आदर्श का एक मूर्तिरुप प्रतीक थे. अत्यंत कठिन परिस्थिति से एवं कठिन परिश्रम से उन्हें अपना व्यक्तित्व निर्माण किया. वे तत्व व व्यवहार का समन्वय साधते हुए उम्र के आखिरी पड़ाव तक संघर्ष निष्ठ जीवन का साथी रहे. 72 वर्ष की उनकी उम्र यानि तत्व, आदर्श, संघर्ष एवं ध्येयनिष्ठता का एक सहज सुंदर स्मृतियों का उदाहरण है.
8 नवंबर 1933 में आसेगांव पूर्णा गांव में उनका जन्म हुआ. काजली (देऊरवाडा) के अत्यंत धार्मिक व सश्रद्ध किसान परिवार में वे बड़े हुए. ब्राह्मणवाड़ा थडी में प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात शालेय शिक्षण के लिए वे अमरावती आये. अमरावती के श्रद्धानंद वसतीगृह में रहकर उन्होंने अपनी शालेय शिक्षा पूर्ण की और शिवाजी आर्ट्स कॉमर्स महाविद्यालय से पदवी तक शिक्षा लेने के पश्चात दिल्ली विद्यापीठ की दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क से पदव्युत्तर पढ़ाई पूर्ण की. डॉ. भाऊसाहब देशमुख यह उनके आदर्श थे. इसलिए अत्यंत कठिन परिस्थिति में भी उन्होंने दिल्ली तक जाकर अपनी पदव्युत्तर पढ़ाई अथम परिश्रम से की और 1972 में उन्होंने नागपुर विद्यापीठ की समाज कार्य विषय में पहली पीएचडी संपादित की.
बाबा के व्यवसायिक जीवन की शुरुआत अमरावती के रुरल इन्स्टिट्युट में प्राध्यापक पेशा स्वीकार कर हुई. इस इन्स्टिट्युट में उन्होंने प्राध्यापक के रुप में 1958-1972 इस कालावधि में अध्यापन का कार्य किया. उम्र के 38 वें वर्ष में 1972 में वे पुसद में फुलसिंग नाईक महाविद्यालय के प्राचार्य बने. इस महाविद्यालय में 1955 तक लगातार तीन वर्षों तक सेवा देने के बाद उन्होंने दारव्हा के मुंगसाजी महाराज विद्यालय में 1955 से 1979 तक चार वर्ष प्राचार्य के रुप में काम देखा. पूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक का बाबा पर काफी विश्वास था. पश्चात वर्ष 1979 में नागपुर विद्यापीठ में उन्होंने विकास अधिकारी के रुप में नौकरी की.इस पद पर उन्होंने 1986 तक काम करने के बाद 1987 में कोल्हापुर के छत्रपती शाहू इन्स्टिट्युट ऑफ बिजनेस एजुकेशन एंड रिसर्च में डी.के. शिंदे स्कूल ऑफ सोशल वर्क के विभाग प्रमुख के रुप में काम देखा. पश्चात 1989 में नागपुर विद्यापीठ के कुलसचिव पद का पदभार उन्होंने हाथ में लिया. वे 1989-92 इस कालावधि में नागपुर विद्यापीठ के कुलसचिव रहे. कुलसचिव पद की विद्यापीठ की उनकी कारकिर्ज विद्यार्थी-प्राध्यापक व कर्मचारी वर्ग के हितसंवर्धन के लिए संस्मरणीय रही. विद्यापीठ के कुलसचिव के रुप में 1992 में बाबा जब सेवानिवृत्त हुए, उस समय आयोजित किये गए सत्कार समारोह में उनकी प्रचिती हुई. इस समय के सत्कार समारोह का मैं एक गवाहदार था. विद्यापीठ के जिन कर्मचारियों की पदन्नोती का प्रश्न बाबा ने हल किया था, वे सभी कर्मचारी और उनके शुभचिंतक इस समारोह में मनःपूर्वक उपस्थित थे. 10-12 वर्षों से रुके हुए कर्मचारियों की पदोन्नति का प्रश्न बाबा ने अत्यंत सरलता से व प्रामाणिक रुप से हल किया था. विद्यापीठ के भीतर, बाहर के सभी दिग्गज इस प्रश्न के संबंध में विरोध में रहते हुए भी किस भी कर्मचारी पर अन्याय न हो, यह भूमिका रखते हुए बाबा ने इस प्रश्न को हल करने के लिए भेजा था. न्यायशीलता यह बाबा केक व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू था. डॉ. भाऊसाहब देशमुख, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज, लोकसंत श्री गाडगेबाबा के सानिध्य में यह पहलू विकसीत होते गया.
बाबा अमरावती के रुरल इन्स्टिट्युट में रहते समय उस दरमियान ही कृषि विद्यापीठ का आंदोलन खड़ा हुआ था. उस आंदोलन की संकल्पना डॉ. उलेमाले (पूर्व कुलगुरु, डॉ. पं.दे.कृषि विद्यापीठ) व बाबा (डॉ. एम.आर. देशमुख) की ही थी. विद्यापीठ के आंदोलन के समय बाबा ऑल पार्टी एक्शन कमिटी के सचिव थे. उस समय मालखेड परिसर का सर्वे कर कृषि विद्यापीठ अमरावती में ही होना चाहिए, इसके लिए उन्होंने एक आंदोलन कृति समिति तैयार की थी. श्री यशवंतराव चव्हाण से तो अनेक दिग्गज नेताओं तक उन्होंने इस संबंध में पत्र व्यवहार किय था. लेकिन कुछ राजनीतिक कारणों से यह विद्यापीठ अकोला में स्थतापित किया था. ऐसे होने पर भी इस विद्यापीठ को डॉ. पंजाबराव देशमुख का नाम दिया गया, यह समाधान का बात थी. यह समाधान बाबा को काफी सुखमय बना गया. क्योंकि डॉ. भाऊसाहब देशमुख पर उनकी असीम श्रद्धा थी. उस श्रद्धा के खातीर ही डॉ. भाऊसाहब के जन्मशताब्दी वर्ष निमित्त उनके पीएचडी के प्रबंध का मराठी में अनुवाद किया जा सके, यह प्रा. अशोक पलवेकर ने उस समिति की एक बैठक में रखा गया प्रस्ताव बाबा ने सभी ओर से उठाकर रखा था.
सामाजिक,शैक्षणिक क्षेत्र के सभी महत्वपूर्ण पदों पर काम करते समय ही बाबा ने शिक्षा का आकृतिबंध, ग्रामीण उच्च शिक्षा, विद्यापीठ शिक्षण व्यवस्था, ग्राम औद्योगिकरण के लिए संबंधी गांधीवादी दृष्टिकोण, झोपड़पट्टी युवक एवं उनका विकास, कुणबी समाज की महिलाओं का स्थान, राष्ट्रीय समाज सेवा, डॉ.आंबेडकर एक समाज सुधारक आदि अनेक विषयों पर लेखन किया. इसी चिंता से उन्होंने सामाजिक समता का भी विचार अपने जीवन में किया. अलग-अलग समाज गट के युवकों को उन्होंने आधार दिया. बल दिया. समाज एवं राष्ट्र जीवन को नया बल देने वाले महापुरुष के रुप में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर एवं महात्मा गांधी के विचार वैभव को वे देखते. नागपुर विद्यापीठ में गांधी विचार पर अध्यापन करते समय उन्होंने गांधीजी के विचारों के अलग-अलग पहलुओं को स्वयं नया दृष्टिकोण देकर उजागर किया था.
अपने ज्ञान-चिंतन का उपयोग समाज को नई दिशा देने के लिए लगातार होता रहे, इसके लिए उनका अट्टहास था. इसलिए ही सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने अमरावती विद्यापीठ के समाज शास्त्र विभाग में समन्वयक के रुप में काम किया व उस विभाग को लौकिक हासिल करवाने का लगातार प्रयास किया. बावजूद इसके इंडियन इन्स्टिट्युट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, नई दिल्ली, श्री शिवाजी शिक्षण संस्था अमरावती व विदर्भ युथ वेलफेअर सोसाइटी अमरावती इन संस्थाओं में वे आजीवन सदस्य थे. डॉ. पंजाबराव दशमुख प्रतिष्ठान अमरावती, श्री श्रद्धानंद सोसाइटी अमरावती इन संस्थाओं के वे उपाध्यक्ष थे. नागपुर विद्यापीठ के नियोजन समिति के व यवतमाल जिला नियोजन व विकास समिति के सदस्य के रुप में उन्होंने स्थान हासिल किया था. वहीं नागपुर व अमरावती विद्यापीठ के अनेक मंडलों में उन्होंने काम देखा. उनके मार्गदर्शन में करीबन 18 अभ्यासकों को पीएचडी की उपाधि बहाल की है. इन अभ्यासकों में एक आंबेडकरी विचारवंत डॉ. प्रदीप आगलावे का भी समावेश है. उन्होंने कुछ कविताओं का भी लेखन किया था. उन कविताओं से उनकी जीवनदृष्टि अविष्कृत होते दिखाई देती है. अपनी विचारधारा के संबंध में लिखते हुए वे एक कविता में कहते हैं-
माझी विचारधारा
विश्वधर्मी सूर्यतेज पाहणारी
मानवतेच्या कल्याणासाठी झटणारी
न संपणारी-न मिटणारी
सत्याप्रत स्थिरतेला आधार देणारी
हीच माझी विश्वासार्हता, विश्वबंधूता
यालाच मला शरण यायचे आहे.
एक विसाव्या शतकात
याच विचाराला घडवायचे आहे!
ऐसे विचारों के 21 मई 06 को काल के पर्दे के पीछे गए इस व्यक्तित्व को उनके स्मरणगंध निमित्त भावपूर्ण प्रणाम!
– प्रा. हेमंत देशमुख (कालजीकर),
त्रिमूर्ति, कैम्प अमरावती.