अमरावती

वस्त्रोद्योग का दबावगुट फिर सक्रिय

आयात शुल्क हटाने व वायदा बाजार से कपास को अलग रखने की मांग

अमरावती दि.8 – इस बार कपास के दाम अपने उच्चतम स्तर तक जा पहुंचे है. जिससे जहां एक ओर किसानों में समाधान का वातावरण दिखाई दे रहा है, वहीं वस्त्रोद्योग क्षेत्र में इसे लेकर जबर्दस्त अस्वस्थता दिखाई दे रही है. ऐसे में कपास पर लगनेवाले आयात शुल्क को रद्द करने के साथ ही वायदा बाजार से कपास को अलग रखने की मांग के लिए वस्त्रोद्योग का दक्षिण भारत स्थित दबावगुट एक बार फिर सक्रिय हो गया है. जिसके तहत सदर्न इंडिया मिल्स् एसोसिएशन (सीमा) ने कपास पर लगनेवाले 11 फीसद आयात शुल्क को हटाये जाने की मांग उठायी है. साथ ही कपास को वायदा बाजार से अलग रखने की भी बात कही है.
बता दें कि, दक्षिण भारत के तमिलनाडू में कपास से कपडे का उत्पादन करनेवाले कई उद्योग है और इस क्षेत्र के वस्त्रोद्योग संगठनों ने कपास की बढती दरों पर चिंता व्यक्त करने के साथ ही केंद्र सरकार से इस दरवृध्दि के संदर्भ में हस्तक्षेप करने की मांग की है. बता दें कि, इस बार अतिवृष्टि की वजह से देश के अनेकों क्षेत्रोें में कपास का बडे पैमाने पर नुकसान हुआ है और कपास फुलों के परिपक्व होते समय हुई बारिश के चलते उत्पादकता पर विपरित परिणाम भी पडा है. इस वर्ष महाराष्ट्र के अनेकोें हिस्सों में कपास की फसल पर गुलाबी ईल्ली का असर भी देखा गया. जिसकी वजह से कपास का उत्पादन काफी हद तक घट गया. जिस समय एक ओर देश में कपास का उत्पादन काफी कम मात्रा में हुआ, वहीं दूसरी ओर वैश्विक बाजारपेठ में कपास की मांग में जबर्दस्त इजाफा हुआ. जिसके चलते पहली बार देश अंतर्गत कपास को 10 हजार रूपये प्रति क्विंटल के दाम मिले. इतनी उंची दर पर कपास खरीदकर उस पर प्रक्रिया करना और उद्योग चलाना काफी मुश्किल हो गया है. ऐसा वस्त्रोद्योग संगठनोें का कहना है. इसके लिए इन संगठनोें द्वारा मांग की गई है कि, कपास की निर्यात बंद की जाये और आयात शुल्क को रद्द करते हुए वायदा बाजार से कपास को अलग रखा जाये. इस मांग के लिए दो दिनों तक दक्षिण भारत के वस्त्रोद्योग बंद रखने का निर्णय भी ‘सीमा’ द्वारा लिया गया है. ऐसे में अब केंद्र सरकार द्वारा इसे लेकर क्या निर्णय लिया जाता है, इस ओर किसानों का ध्यान लगा हुआ है.
वहीं दूसरी ओर कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि, मौजूदा दौर में विदेशों से आनेवाली कपास पर आयात शुल्क बढाये जाने की संख्त जरूरत है, ताकि इसका फायदा भारतीय कपास उत्पादकों को हो और स्थानीय स्तर पर दाम बढने से इसकी बराबरी वैश्विक बाजार के साथ हो जायेगी. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक वर्ष 2021-22 के बजट में कपास के आयात पर उपकर सहित कुल 11 फीसद आयात कर लागू किये जाने के चलते आज कपास उत्पादक किसानोें को सही अर्थों में न्याय मिल रहा है.

किशोर तिवारी

वस्त्रोद्योग क्षेत्र की एक बडी लॉबी केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारामन पर दबाव डालने का प्रयास कर रही है और कपास पर लगनेवाले आयातशुल्क को कम किये जाने की मांग की जा रही है. यदि ऐसा होता है, तो यह फैसला देश के लाखों कपास उत्पादक किसानों के लिए नुकसानदायक होगा. अत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कम से कम अपने गृहराज्य गुजरात के हजारों कपास उत्पादक किसानों को देखते हुए ऐसे किसी भी प्रयास को विफल करना चाहिए.
– किशोर तिवारी

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