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ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी

प्रस्ताव पारित कर देने से ही नहीं लगेगा पुतला

* आरओबी पर पुतला स्थापित करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकीन
* सुप्रीम कोर्ट के कई निर्देश व नियम आयेंगे आडे
* आमसभा में किस सोच के तहत लाया गया प्रस्ताव, यह समझ से परे
अमरावती/दि.19– विगत करीब एक-सवा माह से अमरावती शहर की राजनीति केवल राजापेठ रेलवे ओवरब्रिज और वहां पर स्थापित किये गये और हटाये गये छत्रपति शिवाजी महाराज के पुतले पर ही केंद्रीत रही. इस दौरान जहां एक ओर आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज रहा, वहीं दूसरी ओर मनपा आयुक्त प्रवीण आष्टीकर पर इसी मामले को लेकर स्याही फेंके जाने की घटना भी हुई. यानी करीब एक माह तक अमरावती शहर इस एक विषय के नाम पर बंधक बना रहा. वही अब कहा जा रहा है कि, चूंकि अमरावती मनपा की आमसभा ने राजापेठ रेलवे ओवरब्रिज पर छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ ही छत्रपति संभाजी महाराज की प्रतिमा स्थापित करने के प्रस्ताव को मंजुरी दे दी है, तो इस मामले का सुखद पटापेक्ष हो गया है. साथ ही इस विषय को लेकर शुरूआत से मुखर रहनेवाली युवा स्वाभिमान पार्टी अब विजेताभाव के साथ है. वही प्रस्ताव को मंजुरी देनेवाली भाजपा भी खुद को शिवप्रेमी बताने का पूरा प्रयास कर रही है. वही शिवप्रेमियों की भावनाओं से जुडे इस मामले को लेकर कांग्रेस द्वारा बेहद सतर्क भूमिका अपनायी जा रही है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यही है कि, क्या राजापेठ रेलवे उडानपुल पर वाकई मनपा द्वारा प्रस्ताव पारित कर देने से एक अथवा दो पुतले स्थापित किये जा सकते है और यदि ऐसा किया जा सकता है, तो फिर मनपा ने इस प्रस्ताव को पिछले महिने ही मंजुरी क्यों नहीं दी. यदि मनपा पिछले महिने ही इस प्रस्ताव को मंजूरी भी दे देती, तो बेवजह एक माह तक तनावपूर्ण हालात नहीं रहते और आयुक्त आष्टीकर पर स्याही फेंकने की घटना भी घटित नहीं होती.
मनपा की राजनीति और नियमों का अच्छा-खासा अध्ययन रखने के साथ ही प्रशासनिक विषयों पर मजबूत पकड रखनेवाले मनपा के कुछ वरिष्ठ पार्षदों व जानकारोें के मुताबिक हकीकत में यह पूरा मामला इतना सीधा और आसान भी नहीं है. हकीकत यह है कि, मनपा द्वारा इसी प्रस्ताव को मंजुरी देने का यह मतलब नहीं कि, वह काम निश्चित तौर पर पूरा होगा ही. यदि वह कार्य मनपा के कार्यक्षेत्र व अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत है, तब भी अन्य कई महकमों की अनुमति व एनओसी प्राप्त करना जरूरी होता है. यहां तो मामला सुप्रीम कोर्ट की गाईडलाईन के साथ भी जुडा हुआ है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा सडकों पर नागरिकों की सुरक्षा हेतु बेहद कडे मापदंड व नियम बनाये गये है. जिसके अनुसार किसी भी सडक अथवा पूल या उडानपुल के बीचोंबीच कोई पुतला या स्मारक स्थापित नहीं किया जा सकता. ऐसे में सबसे बडा सवाल अपनी जगह पर यथावत है कि, अगर विगत 12 जनवरी को विधायक रवि राणा व उनके समर्थकों द्वारा राजापेठ रेल्वे उडानपुल पर पुतले की स्थापना करना गैर कानूनी था और उससे नियमों का उल्लंघन हो रहा था, तो अब मनपा की आमसभा द्वारा प्रस्ताव को मंजुरी देने के साथ ही वह काम वैध अथवा कानून सम्मत कैसे हो जायेगा. यानी साफ है कि, आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए हर किसी के द्वारा फिलहाल आम जनमानस को बहलाने व बरगलाने का काम किया जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि, राजापेठ रेलवे ओवरब्रिज पर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर विगत एक माह से चला आ रहा गतिरोध उस समय दूर हुआ, जब पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस के आदेश पर भाजपा पार्षदों ने मनपा की आमसभा में इससे संबंधित प्रस्ताव को पारित किया. लेकिन इस प्रस्ताव पर अमल करना मुश्किल ही नहीं, बल्कि लगभग नामुमकीन है, क्योंकि नियमानुसार रेलवे ओवरब्रिज या किसी भी फ्लायओवर पर किसी भी तरह की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं की जा सकती है. ऐसे में साथ है कि, इस बात से खुद शहर के राजनेता अनजान नहीं होंगे और इसके बावजूद यदि वे इसे लेकर जिद पर अडे है या मनपा में प्रस्ताव पारित कर रहे है, तो निश्चित रूप से इसके पीछे कोई बडा राजनीतिक दांव है. ज्ञात रहे कि, आमसभा में प्रस्ताव को सर्वसम्मति मिलने के बाद इसे मंजुर करते हुए पीठासीन सभापति व महापौर चेतन गावंडे ने कहा था कि, महापुरूषों की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर करीब 21 तरह के नियमों का पालन करना अनिवार्य है. यदि संबंधित नियमों व अनुमति से जुडी प्रक्रिया पूर्ण नहीं होती है, तो प्रतिमा स्थापित करने की अनुमति नहीं मिल सकती है. यानी पूरा खेल अनुमति से ही जुडा हुआ है और भले ही मनपा द्वारा अपने स्तर पर राजापेठ रेलवे ओवरब्रिज पर छत्रपति शिवाजी महाराज व छत्रपति संभाजी महाराज की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर प्रस्ताव पारित कर दिया गया है. किंतु इस प्रस्ताव में ही साफ तौर पर कहा गया है कि, पुतलों की स्थापना नियमानुसार होगी और हकीकत यह है कि, रेलवे ओवरब्रिज पर नियमानुसार पुतलोें की स्थापना हो ही नहीं सकती. शायद यही वजह है कि, राजापेठ आरओबी के साथ ही छत्री तालाब पर छत्रपति शिवाजी महाराज का अश्वारूढ पुतला स्थापित करने का प्रस्ताव पारित करनेवाली भाजपा द्वारा अब केवल छत्री तालाबवाले पुतले को लेकर ही बात की जा रही है और राजापेठ आरओबी वाले विषय का उल्लेख भी नहीं किया जा रहा. यानी कहीं न कहीं एक माह तक बेवजह ही अमरावती शहरवासियों को शिवप्रेम व शिवभक्ती के नाम पर आपसी नूराकुश्ती का नजारा दिखाया गया. जिसकी वजह से एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पर स्याही फेंककर पूरे शहर को शर्मसार किया गया और अब खुद को प्राप्त बहुमत के दम पर उपर से मिले निर्देशों के दबाव में आकर मनपा की आमसभा में एक प्रस्ताव पारित कर दिया गया, ताकि आगामी चुनाव में इसका फायदा व माईलेज उठाया जा सके.
लेकिन हकीकत यह है कि, मनपा प्रशासन द्वारा प्रस्ताव पारित करते वक्त संभवत: नियमों पर ध्यान ही नहीं दिया गया और केवल राजनीतिक नफे-नुकसान के गणित को ध्यान में रखते हुए इस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया. किंतु अब राजनीतिक जानकारों द्वारा जब इस फैसले की समीक्षा की जा रही है, तब इसकी असलियत सामने आ रही है कि, केवल प्रस्ताव पारित करने से कुछ नहीं होनेवाला, बल्कि इस काम के लिए करीब 14 विभागोें से 21 तरह की अनुमतियां व एनओसी प्राप्त करनी होगी. इसके बिना यह काम हो ही नहीं सकता और चूंकि इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश बेहद सख्त है. ऐसे में यह अनुमतियां मिल भी नहीं सकती और बिना अनुमतियों के रेलवे उडानपुल पर पुतले स्थापित नहीं हो सकते. यानी कुल मिलाकर मामला कुछ ऐसा है कि, ‘ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी’.

* आयुक्त ने 4 फरवरी को ही जता दी थी असमर्थता
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, विगत 11 व 12 जनवरी की मध्यरात्री में राजापेठ रेलवे उडानपुल पर छत्रपति शिवाजी महाराज का आदमकद पुतला स्थापित किये जाने के बाद इसे मान्यता व मंजुरी दिये जाने हेतु विधायक रवि राणा ने मनपा प्रशासन को एक निवेदन सौंपा था. जिसमें महापौर व मनपा आयुक्त से पुतले की स्थापना को अनुमति देने और राजापेठ चौक को छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम देने के संदर्भ में आवश्यक कदम उठाने कहा गया था. जिसके बाद तमाम कानूनी पहलुओं की पडताल करने के बाद आयुक्त प्रवीण आष्टीकर ने विगत 4 फरवरी को विधायक रवि राणा के नाम जारी किये गये अपने पत्र में स्पष्ट कर दिया था कि, राजापेठ रेलवे ओवरब्रिज पर छत्रपति शिवाजी महाराज का पुतला स्थापित करने को अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ राज्य सरकार के भी कुछ मार्गदर्शक दिशानिर्देश है. राज्य सरकार द्वारा 2 मई 2017 को जारी दिशानिर्देश में साफ तौर पर कहा गया है कि, यदि किसी महापुरूष का किसी शहर अथवा गांव में नया पुतला स्थापित करना है, तो उस शहर अथवा गांव में उस स्थान से 2 किमी के दायरे में पहले से उसी महापुरूष का कोई पुतला स्थापित नहीं रहना चाहिए. इसके अलावा 18 जनवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक मामले की सुनवाई पश्चात जारी किये गये आदेश में साफ तौर पर कहा गया है कि, किसी भी राज्य सरकार ने सार्वजनिक आवाजाहीवाले रास्तों, उपरास्तों, पेवमेंट सहित सार्वजनिक उपयोगवाली जगहों पर किसी भी तरह केे पुतले की स्थापना या ढांचे के निर्माण हेतु बिल्कुल भी अनुमति नहीं देनी चाहिए.
4 फरवरी को जारी अपने पत्र में राज्य सरकार व सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की विस्तृत जानकारी देने के साथ ही आयुक्त आष्टीकर ने यह भी बताया कि, अमरावती महानगरपालिका की 20 जनवरी 2021 को हुई आमसभा में प्रस्ताव क्रमांक 6 के जरिये राजापेठ रेलवे ओवरब्रिज को धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज उडानपुल का नाम देना मंजुर किया गया है. ऐसे में अब इस उडानपुल अथवा चौक को नया नाम भी नहीं दिया जा सकता. अत: इस निवेदन को प्रस्ताव के तौर पर आमसभा में पेश करने का कोई औचित्य नहीं है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, यद्यपि अब आमसभा में मनपा के मौजूदा पार्षदों द्वारा अचानक ही अपने राजनीतिक नफे-नुकसान को देखते हुए राजापेठ रेलवे उडानपुल पर एक छोड दो-दो पुतले स्थापित करने के प्रस्ताव को मान्यता प्रदान की गई है. किंतु आयुक्त आष्टीकर द्वारा उठाये गये कानूनी मुद्दे अब भी बरकरार है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, आमसभा की मंजूरी के बावजूद इस प्रस्ताव को अमल में कैसे लाया जा सकता है, क्योेंकि इसे लेकर खुद सुप्रीम कोर्ट व राज्य सरकार के स्पष्ट दिशानिर्देश व आदेश है.

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