धारणी -दि.1 कुपोषण, बाल व माता मृत्यु का अभिशाप झेल रहे आदिवासी बहुल मेलघाट समस्याओं के दुष्चक्र से घिरा है. पूरे जिले में इस वर्ष अत्याधिक बारिश होने से जलापूर्ति करने वाले जलाशय लबालब होने से सर्वत्र जलसंकट का अब प्रश्न मिट गया है. लेकिन मेलघाट इसका भी अपवाद साबित हो रहा है. वर्तमान स्थिति में मेलघाट के 100 से अधिक गांव जलसंकट से जूझ रहे है. यहां के आदिवासियों को पेयजल के लिए भटकने की नौबत से छूटकारा मिलने का नाम नहीं ले रहा है. जिला परिषद के जलापूर्ति विभाग द्बारा चलाई जा रही जलापूर्ति योजनाओं के बारह बज गए है. अधिकारियों व ठेकेदारों की सांठगांठ से अत्यंत घटिया काम के कारण जलापूर्ति योजनाएं ठप पड जाने के कारण यह जलसंकट की स्थिति उत्पन्न हुई है.
* केसरपुर गांव ज्वलंत उदाहरण
मेलघाट की चिखली ग्राम पंचायत अंतर्गत आने वाला केसरपुर गांव इसका ज्वलंत उदाहरण है. दिसंबर 2021 में केसरपुर गांव में साकार की गई जलापूर्ति योजना एक वर्ष बीतने के पहले ही ठप पड गई है. तीन माह से यह जलापूर्ति योजना ठप पडने के कारण ग्रामवासियों को बारिश में भी जलसंकट से जूझने विवश होना पड रहा हैं. ग्रामवासियों ने संबंधित ठेकेदार, सरपंच व ग्रामसेवक को इसके लिए जिम्मेदारी ठहराते हुए कलेक्टर पवनीत कौर से कार्रवाई की गुहार लगाई है. धारणी से 35 किलो मीटर अंतर पर बसे केसरपुर में भीषण जलसंकट से ग्रामवासियों में हाहाकार मचा है. राज्य सरकार द्बारा वर्ष 2021 में केसरपुर में जलापूर्ति योजना शुरु की गई. जलकुंभ की मरम्मत कर पाइप लाइन, राइजिंग मेन लाइन, घरेलू नल कनेक्शन दिए गए थे.
* वाटर फार पिपल्स इंडिया ट्रस्ट का घटिया काम
वाटर फार पिपल्स इंडिया ट्रस्ट ने यह काम किया था. 30 दिसंबर 2021 में यह योजना ग्राम पंचायत को हस्तांतरित की गई थी. लेकिन केसरपुर गांव में तीन माह से यह जलापूर्ति योजना ठप पडी है. ग्रामवासी कुए का दूषित पानी पीने विवश हो रहे है. जबकि हाल ही में मेलघाट में दूषित पानी पीने के कारण विषबाधा की घटना हो चुकी है. चिखलदरा पंचायत समिति अंतर्गत चिखली, केसरपुर, राक्षा, भिंरोजा, केली, अढाव, तारुबांदा गांव चिखलदरा तहसील मुख्यालय से दूर पडता है. जबकि धारणी से यह सभी गांव नजदीक है. जिसके कारण चिखलदरा तहसील मुख्यालय के अधिकारी इन गांवों की सुध लेने के लिए भी कभी चक्कर लगाने का कर्तव्य पूरा नहीं करते. इन गांवों का अधिकांशा परिसरल मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प में आता है. जिसके कारण वन्य प्राणियों का हमेशा खतरा बना रहता है. लेकिन पेयजल के लिए व्याघ्र प्रकल्प के अतिसंरक्षित क्षेत्र में जाने के लिए ग्रामवासी विवश हो रहे है. प्रशासन भी इन गामवासियों की सहन शक्ति की परीक्षा ले रहा है.