जिले में 1270 सिकलसेल मरीज तो 12,200 वाहक
मेलघाट में 10% सिकलसेल वाहक, नागरिकों में जनजागृति की आवश्यकता
अमरावती/दि.26- सिकलसेल यह बीमारी अनुवांशिक है. लेकिन इस बीमारी के संदर्भ में आवश्यक जनजागृति सर्वसामान्य नागरिकों में नहीं होने के कारण मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ते जा रही है. जिले में फिलहाल 1 हजार 270 सिकलसेल मरीज तो 12 हजाजर 200 वाहक हैं.
सिकलसेल यह हिमोग्लोबिन की बीमारी होकर जनुकीय दोष के कारण रक्त की पेशियों में हिमोग्लोबीन का दोष निर्माण होता है. इसमें ऑक्सीजन की कमी के कारण लाल रक्तपेशी हसिये के आकार की होती है. सिकलसेल बीमारी अनुवांशिक होने से समय पर निदान होने पर ही आगे की पीढ़ी को होने वाला धोखा टाला जा सकता है. लेकिन इस बीमारी के बारे में आवश्यक जनजागृति न होने से शायद ही विवाह से पूर्व संबंधित युवक-युवतियों के खून की जांच की जाती है. मेलघाट में तो इस संदर्भ में जनजागृति न होने से सिकलसेल मरीजों की व वाहकों की संख्या अधिक है. यहां की कुल लोकसंख्या के 10 प्रतिशत नागरिक सिकलसेल वाहक होने की जानकारी स्वास्थ्य प्रशासन ने दी है.
सिकलसेल ग्रस्त मरीजों को खून की आवश्यकता होती है. इसलिए जिले में रोज 5 से 6 सिकलसेल मरीज इर्विन अस्पताल के डे केअर युनिट में रक्त के लिए दाखल होते हैं. तो चार से पांच मरीज ये उन्हें असहनीय होने वाली वेदनाओं पर उपचार लेने के लिए भर्ती होते हैं.
* मरीजों को मिलता है अपंगत्व प्रमाण पत्र
सिकलसेल ग्रस्त मरीज यह उसे होने वाली असहनीय वेदना के कारण या रक्त के लिए अस्पताल में तीन बार भर्ती हुआ हो, ऐसे मरीज को ही 40 प्रतिशत अपंगत्व होने का प्रमाणपत्र मिलता है. ऐसे मरीजों को अस्पताल से एक पहचान पत्र दिया जाता है.
डे केअर के माध्यम से जिले के सिकलसेल ग्रस्त मरीजों को सभी सेवा उपलब्ध करवाई जाती है. यहां पर सिकलसेल जांच, समुपदेशन, औषधोपचार, रक्त संक्रमण व तज्ञ डॉक्टरों द्वारा मार्गदर्शन किया जाता है. यह अनुवांशिक बीमारी होने के कारण विवाह से पूर्व जांच करना आवश्यक है.
– डॉ. विलास जाधव, प्रयोगशाला विभाग प्रमुख