गडचिरोली/दि.27 – पुलिस एवं सुरक्षा बलों के साथ विगत 56 वर्षों के दौरान हुई मुठभेडों में 14 हजार 800 माओवादियों के मारे जाने की कबूली खूद माओवादियों ने ही अपनी ओर से जारी एक पत्रक में दी है. मुठभेडों के दौरान मारे गए माओवादियों में चारु मजूमदार, पेद्दी शंकर, किशन आजाद व रामकृष्णा सहित 41 बडे माओवादी नेताओं के साथ ही 1 हजार 169 महिला माओवादियों का समावेश रहने की बात इस पत्रक में उल्लेखित की गई है. नक्सलवादी कहे जाते माओवादियों द्बारा मनाए जाने वाले शहीद सप्ताह की पार्श्वभूमि पर केंद्रीय समिति के प्रवक्ता अभय की ओर से जारी किए गए पत्रक में माओवादी आंदोलन के इतिहास का बडा खुलासा हुआ है. जिसे लेकर अब दंडकारण्य क्षेत्र में कई तरह की चर्चाएं होने लगी है.
बता दें कि, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिला अंतर्गत स्थित नक्सलबाडी नामक गांव से चारु मजूमदार ने नक्सल आंदोलन की शुरुआत की थी. वर्ष 1967 में शुरु हुआ यह आंदोलन देखते ही देखते देश के अन्य हिस्सों में फैल गया और इसका सर्वाधिक विस्तार मध्यभारत के आंध्रप्रदेश क्षेत्र में हुआ. जहां पर कोंडापल्ली सीतारामय्या ने ‘पीपल्स वॉर ग्रुप’ नामक नक्सलवादी संगठन की स्थापना की. वर्ष 1970 के दशक में उस्मानिया विद्यापीठ से उच्च शिक्षा प्राप्त कर बाहर निकलने वाले कई युवा इस संगठन में शामिल हुए. पश्चात वर्ष 1980 के दशक में इस संगठन के माओवादियों ने गडचिरोली जिले में सिरोंचा तहसील से प्रवेश किया. इसके बाद गडचिरोली जिले से लगे हुए है. गोंदिया व चंद्रपुर जिले एवं छत्तीसगढ के कई इलाकों में माओवादियों ने अपने पांव पसारे. वर्ष 2004 में पीपल्स वॉर ग्रुप व माओलिस्ट कम्यूनिस्ट सेंटर नामक 2 नक्सलवादी संगठनों का एकत्रिकरण होकर भाकपा माओवादी नामक नया संगठन अस्तित्व में आया. जिसके बाद माओवादियों ने सुरक्षा दल के खिलाफ दंडकारण्य क्षेत्र में अपनी आक्रामकता को बढाते हुए सुरक्षा बलों पर हमले तेज कर दिए. इसकी वजह से बडी संख्या में सुरक्षा बलों के जवान शहीद हुए. इसके बाद गडचिरोली जिले सहित दंडकारण्य में सुरक्षा बलों ने माओवादियों के खिलाफ आक्रामक भूमिका अपनाई और बडी संख्या में माओवादियों को मार गिराया गया. माओवादी संगठनों को विगत 10 वर्षों के दौरान सबसे अधिक नुकसान हुआ और अब नक्सलवाद अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. आंध्रप्रदेश में नक्सल आंदोलन का सफाया करने में सुरक्षा बलों को काफी हद तक सफलता प्राप्त हुई है. वहीं गडचिरोली सहित बस्तर जिले में भी बडे पैमाने पर पुलिस थाने स्थापित कर दिए गए है. जिसके चलते दुर्गम व अतिदुर्गम तथा अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में पुलिस की मौजूदगी बढ गई है. इसी पार्श्वभूमि पर वर्ष 1967 से वर्ष 2023 के दौरान सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेद में मारे गए माओवादियों की जानकारी व संख्या को लेकर खुलासा करने वाला पत्र खुद माओवादियों द्बारा ही जारी किया गया है.
* माओवादी नेताओं का जीवन चरित्र करेंगे प्रकाशित
माओवादी संगठन की ओर से जारी पत्रक में यह भी कहा गया है कि, माओवादी संगठन की केंद्रीय समिति के सदस्य रहने वाले योगेशा, मिलिंद तेलतुंबडे, विजय उर्फ नारायण सान्याल, रमन्ना उर्फ रावुला श्रीनिवास, हरिभूषण, रामकृष्णा, विजय उर्फ श्रीधर श्रीनिवास, अरविंद उर्फ देवकुमार सिंह जैसे माओवादी नेताओं का जीवन चरित्र हिंदी, तेलगू व अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किया जाएगा. इस माध्यम से माओवादी आंदोलन के महत्व को दुनिया के सामने रखा जा सकता है. ऐसा विश्वास भी माओवादियों ने इस पत्रक के जरिए व्यक्त किया है.
बॉक्स/फोटो- मटा से
* माओवादियों ने खुद मुठभेडों में मारे गए माओवादियों की संख्या अपने द्बारा जारी पत्रक में दी है. लेकिन नक्सल आंदोलन एवं माओवादियों की वजह से दंडकारण्य क्षेत्र से लाखों नागरिकों को देश के अन्य हिस्सों में विस्थापित होना पडा. साथ ही हजारों निर्दोष लोगों की माओवादियों द्बारा निमर्मतापूर्वक हत्या की गई. इस बारे में माओवादियों की ओर से जारी पत्रक में कुछ नहीं कहा गया. जबकि इन सभी बातों के लिए माओवादी जिम्मेदार है, जो समाज के शोषित व पिछडे तबकों को विकास के प्रवाह में आने से रोक रहे है. यहीं वजह है कि, दंडकारण्य क्षेत्र में अब भी मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पायी है.
– संदीप पाटिल,
पुलिस उपमहानिरीक्षक,
गडचिरोली परीक्षेत्र.