अमरावती

आसमानी व सुल्तानी संकट के 19 हजार शिकार

प्रत्येक 8 घंटे में 1 किसान आत्महत्या

संघर्ष पर निराशा पड रही भारी
कब लिया जाएगा नीतिगत फैसला
अमरावती – /दि.24 विगत दो दशकों से जारी किसान आत्महत्याओं का सिलसिला तमाम प्रयासों के बावजूद भी अब तक नहीं रुका है. इन 2 दशकों के दौरान पश्चिम विदर्भ क्षेत्र में 18,595 किसानों ने अपने ही हाथों अपनी जिंदगी खत्म कर ली. जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि, संभाग में प्रत्येक 8 घंटे के दौरान एक किसान आत्महत्या हो रही है और यह सभी किसान आसमानी व सुल्तानी संकट के शिकार साबित हुए है और उनके संघर्ष पर उनकी निराशा भारी पड रही है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, आखिर सरकार द्बारा इस संदर्भ में नीतिगत फैसला कब लिया जाएगा और कब अन्नदाता कहे जाते किसानों को आर्थिक दुष्चक्र से बाहर निकालते हुए उनकी समस्याओं का निराकरण किया जाएगा. ताकि किसान आत्महत्या का सिलसिला रुक सके.
बता दें कि, वर्ष 2001 से प्रशासन द्बारा किसान आत्महत्याओं की जानकारी को अधिकाधिक रुप से दर्ज करना शुरु किया गया. जिसके मुताबिक जनवरी 2001 से अक्तूबर 2022 तक अमरावती संभाग में 18,595 किसान आत्महत्याएं हुई है. जिसमें से केवल 8576 किसान परिवारों को ही सरकारी सहायता प्राप्त हुई है. वहीं 9 हजार 820 यानि आधे से अधिक मामलों को सरकारी सहायता हेतु अपात्र घोषित कर दिया. इसके अलावा विगत 10 माह के दौरान 199 मामले जांच के नाम पर प्रलंबित पडे हुए है. यानि किसानों की मौत के बाद भी उनके परिजनों की तकलिफे कम नहीं हुई है.
उल्लेखनीय है कि, प्रकृति व मौसम की अनियमितता के चलते इन दिनों लगातार फसलें बर्बाद हो रही है और दिनोंदिन खेती-किसानी से मिलने वाली आय व उपज घट रही है. सरकार द्बारा चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ जरुरतमंद किसानों तक पहुंचता ही नहीं. साथ ही दिनोंदिन सिंचाई का अनुशेष बढ रहा है. इसके अलावा कृषि खाद-बीज सहित सभी कृषि साहित्यों के दाम भी लगातार बढ रहे है. यानि खेती-किसानी में लागत बढ रही है और आवक घट रही है. जिससे खेती-किसानी अब घाटे का सौदा साबित होने लगी है और किसान दिनोंदिन आर्थिक दुष्चक्र में फंसते चले जा रहे है.

सरकारी सहायता के मानक 16 वर्ष पुराने
किसान आत्महत्या के मामलों को लेकर सरकारी सहायता के मानक 23 जनवरी 2006 से बदले नहीं गये है. इसके तहत मृतक किसान के वारिस को 30 हजार रुपए नकद तथा 30 हजार रुपए की राशि पोस्ट या बैंक की मासिक प्राप्ति योजना के जरिए दी जाती है. साथ ही इन मामलों की मंजूरी हेतु कई महीनों की कालावधि भी लगती है. जिसके चलते अपने घर का कर्ता पुरुष खोने वाले किसान परिवारों को सहायता राशि प्राप्त करने और इन मानकों पर पात्र साबित होने के लिए सरकारी महकमों के कई चक्कर कांटते पडते है.

उत्पादन खर्च व आय का कोई तालमेल नहीं
बैंक व साहुकारों का कर्ज, बकाया कर्ज की वसूली हेतु लगाए जाने वाले तगादे, प्राकृतिक आपदा, फसल की बर्बादी, अकाल, बीमारी जैसी वजहों के चलते किसान आत्महत्याओं का सिलसिला चल पडा है. दिनोंदिन बढती लागत और खेती से होने वाली आय के बीच कोई तालमेल नहीं रहने के चलते अपने परिवार का भरणपोषण तथा बच्चों की पढाई-लिखाई व शादी-ब्याह जैसी जिम्मेदारियों को किस तरह पूरा किया जाए, इस चिंता में डूबे हुए किसान लगातार निराशा व अवसाद का शिकार हो रहे है.

वर्ष 2001 से उंचा उठ रहा आलेख
सन 2001 से किसान आत्महत्याओं के आंकडों को दर्ज करना शुरु किया गया और तब से यह सिलसिला लगातार तेज हो गया है तथा किसान आत्महत्याओं के आंकडे लगातार बढ रहे है. अमरावती संभाग में सन 2001 में 49, सन 2002 में 80, सन 2003 में 134, सन 2004 में 419, सन 2005 में 419, सन 2006 में 1,295, सन 2007 में 1,119, सन 2008 में 1,061, सन 2009 में 905, सन 2010 में 1,051, सन 2011 में 886, सन 2012 में 842, सन 2013 में 705, सन 2014 मेें 830, सन 2015 में 1,184, सन 2016 में 1,103, सन 2017 में 1,066, सन 2018 में 1,146, सन 2019 में 1,055, सन 2020 में 1,137, सन 2021 में 1,179 तथा जारी वर्ष 2022 में 31 अक्तूबर तक 930 किसान आत्महत्याएं हुई है.

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