लिवर ट्रान्सप्लान्ट के लिए 2 लाख की सहायता
टेक्नीकल प्रोफेशनल एज्युकेशन इन इंडिया फाऊंडेशन का उल्लेखनीय कदम
अमरावती/ दि.1 – गरीब लोगों का लिवर खराब हो जाए तो ट्रांसप्लांट करवाना उनके बस की बात नहीं, इसका खर्च अमीर ही उठा सकते है. लिवर ट्रांसप्लांट करवाने में 20-30 लाख रुपए का खर्च आता है. ऐसे में यदि यह बीमारी किसी गरीब परिवार के बच्चे को हो जाये तो उसक दर्द सिर्फ उस परिवार को ही पता चलता है. उपर से वो परिवार बड़े शहर से दूर हो तो वहां से आकर बड़े शहर तक पहुंचना वहां किराये का रुम लेकर बच्चे का इलाज करना काफी दर्दपूर्ण अनुभव होगा. मगर ऐसा अनुभव अहसास करने वाली एक माँ ने अपनी बेटी के लिवर ट्रान्सप्लान्ट के दौरान आये अनेक वाकयों को यहां बया किया. साथ ही लिवर ट्रान्सप्लान्ट कार्य में अपने परिवार का साथ और टेक्निकल प्रोफेशनल एजुकेशन इन इंडिया फाउंडेशन द्वारा मिली मदद को यहां बया किया.
इस बारे में हमारे प्रतिनिधि से बात करते हुए श्रेया पांडे की माँ ने कहा कि 9 वर्षीय श्रेया का जन्म 7 जुलाई 2014 को भोपाल में हुआ था और अभी वो कक्षा तीसरी में पढ़ती है. 2021 में उसे लिवर सिरोसिस होने का पता चला और मार्च 2021 में श्रेया का सफल लीवर ट्रान्सप्लांट दिल्ली के वसंत कुंज स्थित इंस्टिटएुट ऑफ लिवर एंड बिलेरीसायन्स हॉस्पीटल (आईएलबीएस) हॉस्पीटल के सर्जरी के प्रमुख डॉ.विनियेन्द्र पामेचा की अध्यक्षता में ऑपरेशन सफल रहा. श्रेया को उसकी मां रंजना पांडे ने अपना लिवर डोनेट किया है. श्रेया की मां एक सिंगल मदर है परंतु श्रेया के उपचार करने के लिए उन्होंने आस नहीं छोड़ी. लिवर ट्रान्सप्लांट होने के बाद श्रेयो को रिकवर होने के लिए लगभग छह महिने का समय लगा और उसे आईसीयू में ही रखना पड़ा, जिसका खर्च लगभग 42 लाख से ज्यादा था. श्रेया के माँ ने आगे बताया कि उनके सिंगल मदर होने की वजह से यह पैसे अस्पताल में भरने में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. रंजना पांडे आगे बताती है कि, शुरुआत में ट्रान्सप्लांट के लिए पैसे ना होने की वजह से श्रेया का ऑपरेशन क्रिटिकल कंडीशन में होने के बावजूद भी दो दिनों तक नहीं हो पाया था. फिर थोडे पैसे उधार लेकर माता-पिता, भाइयों के मदत से पैसे भरकर ऑपरेशन तो हो गया. परंतु हालत में सुधार न होने की वजह से उसे अगले 6 महीनो के लिए आयसीयू में एडमिट रहना पडा. जिस कारण अस्पताल का खर्च 40 लाख के उपर पहुंच गया.
रंजना जी ने आगे बताया कि, छोटी सी आयु में इतने भयानक बिमारी का सामना कर रही श्रेया के दर्द की इंतेहा नहीं रही. लिवर ट्रान्सप्लान्ट के बाद श्रेया का पेट लगभग पांच माह तक खुला रहा. उसका पेट सीने से लेकर नाभी का फटा हुआ था. श्रेया के पेट पर इतनी सूजन थी कि, डॉक्टर उसे स्टीचेस लगाने में असमर्थ रहे. इनफ्केशन की वजह से लगभग पांच महीने तक टांके नहीं लग पाये. अपनी दिल के टुकडे अपनी बेटी का दर्द देखकर एक मां के दिल पर क्या बीतती होगी इसकी कोई सीमा नहीं. आगे रंजना पांडे ने कहा कि मेरी इतनी हैसीयत नहीं थी कि, मैं हर रोज बेटी की ड्रेसिंग करने के लिए नर्स लगाने का खर्चा उठा पाओं इसलिए खुद ही अपने हाथ से बेटी के पेट की ड्रेसिंग किया करती थी ताकि चार पैसे बच जाये. श्रेया के इलाज के लिए रंजना पांडे दिल्ली में आई यहां पर किराये पर घर लेकर यहां रही जिसका खर्चा उठाना इस परिवार के लिए काफी असहनीय था. अभी श्रेया का इलाज चल रहा है उसे पूरी तरह से ठीक होने में अभी समय लगेगा. अभी भी उसका उपचार अस्पताल में चल रहा है और हर महीने दवाइयों का खर्च आता है जिसकी चिंता उन्हें सताती रहती है.परंतु चिंता करने से कुछ नहीं होता यही सोचकर श्रेया की मां ने लोगों से बात करना शुरु किया. तब उन्हें किसी ने बताया कि दिल्ली में एक सामाजिक संस्था टेक्निकल प्रोफेशनल एजुकेशन इन इंडिया फाउंडेशन है. जो गरीब असहाय लोगों की मदत करता है. यह सुनकर मां रंजना पांडे के दिल में आशा की नई किरण जगी और उन्होंने टेक्निकल प्रोफेशनल एजुकेशन इन इंडिया फाउंडेशन के निदेशक (डायरेक्टर) बलवंत सर से मिलकर अपनी समस्या बताई. श्रेया की हालत और मां रंजनाजी के संघर्ष की आपबिती सुनकर बलवंत सर ने उनके हाथ में 2 लाख रुपये की धनराशी का चेक उनके सुपूर्द किया और आश्वासन दिया कि उनसे जितनी भी मदद होगी वे हमेशा करते रहेंगे और साथ ही अन्य लोगों से भी अपिल की कि वे श्रेया के मदद के लिए आगे आये. उन्होंने श्रेया की मां (रंजना पांडे का पंजाब नॅशनल बँक अकाऊंट नंबर3244001700059018- आय एफ एस सी कोड़ पी.यु.एन.बी. 0324400) सांझा किया. और मोबाइल नंबर 6268008102 भी सांझा किया और अपनी सोशल मिडिया पोस्ट पर भी अपील की. और बलवंत सर ने बिटिया को जल्द स्वस्थ्य होने का आशिर्वाद दिया और कहा कि तुम भी स्वस्थ्य होकर बड़ी होकर समाज में अपनी भागीदारी भी निभाना और जरुरतमंद लोगों की मदत करना. यह सुनकर मां रंजना की आंखे छलक उठी. अभी तक श्रेया के उपचार में 40 से 45 लाख रुपये का खर्च आया और अभी उपचार चल ही रहा है.
हमारे संवाददाता को रंजनाजी ने आगे बताया कि, अगस्त 2021 में उसे अस्पताल से डिस्चार्ज मिला और फिर से अप्रैल 2022 में उसके नली में ब्लोकेज के कारण उसका फिर से ऑपरेशन हुआ जिसके लिए भी उसे 2 महिने तक फिर से अस्पताल में एडमीट रहना पड़ा था. अस्पताल का पूरा बिल भरने में श्रेया की मां को बहुत सी परेशानी झेलनी पड़ी. वर्तमान में श्रेया अपने ट्विन्स भाई और अपनी मां के साथ अपने नाना-नानी के घर सतना मध्यप्रदेश में रहती है. श्रेया और उसके भाई शोर्य के दवाइयां एवं पढ़ाई के लिए सिर्फ उसके नानाजी ही एकमात्र आय का जरिया है. जो की अभी 68 वर्ष के है जो आज भी इस उम्र में श्रेया और उसका भाई शौर्य की दवाइयों एव पढ़ाई हेतु प्राइवेट कंपनी में 10 हजार रुपये की नौकरी कर रहे है. श्रेया अभी ठीक हो रही है लेकिन उसे निरंतर चिकित्सा देखभाल और सहायता की आवश्यकता है. दुर्भाग्य से उसकी सर्जरी और चल रही, देखभाल के लिए चिकित्सा लागत उसके परिवार पर भारी पड़ रही है. इसके अलावा श्रेया एक प्राइमरी स्कूल की छात्रा है जो अपनी चिकित्सा स्थिती के कारण पिछड़ रही है. उसे आगे बढ़ने और अपनी पढ़ाई में शीर्ष पर रहने के लिए सहायता की आवश्यकता है. उसे हर माह लगभग 20 से 25 हजार रुपये के दवाइयों खर्चा होता है जो जीवनभर रहेगा. साथ ही पढ़ाई पीछे न रह जाये इसलिए इस अवस्था में भी श्रेया स्कूल जारी है और अच्छा प्रदर्शन कर रही है. उसे पढ़ाई के साथ ड्रॉइंग और डान्स का बहुत शौक है. इसलिए रंजना पांडे ने सभी नागरिकों व मददकार्य करने वाली सस्थाओं से अनुरोध किया है कि, वे मदद का हाथ आगे बढाये और श्रेया को नया जीवन देने के लिए सहयोग करे. आपकी कोई भी मदद श्रेया के मेडीकल जांच, दवाइयां, पढ़ाई में बहुमूल्य रहेगी.