अमरावती

कोरोना के हर मरीज पर खर्च हुए 21 हजार रूपये!

प्रशासन ने 12 हजार 376 मरीजों पर 26 करोड 25 लाख 44 हजार रूपयों का खर्च दर्शाया

  • सरकारी अस्पताल में हुए इलाज का तालमेल नहीं जुड रहा

  • न स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत हुई, न मुलभूत सुविधाएं बढी, फिर पैसा गया कहां?

अमरावती प्रतिनिधि/दि.3 – अमरावती जिले में अब तक 16 हजार 302 लोग कोरोना से संक्रमित हुए. जिसमें से 364 लोगों की मौत हो गयी और 3 हजार 662 मरीजों ने निजी कोविड अस्पतालों में भरती होकर अपना इलाज कराया. वहीं 12 हजार 376 मरीजों ने सरकारी स्वास्थ्य सेवा का लाभ लिया. जिन पर प्रशासन द्वारा 26 करोड 25 लाख 44 हजार रूपये खर्च किये जाने की जानकारी दी गई है, यानी हर मरीज के इलाज हेतु 21 हजार 213 रूपये 96 पैसे का खर्च दर्शाया गया है, लेकिन यह आंकडे अविश्वसनीय प्रतित हो रहे है और अब इस खर्च का सूक्ष्म हिसाब-किताब मांगे जाने की पूरी संभावना है.
जिला प्रशासन के मुताबिक अप्रैल माह से जिले में किये गये विभिन्न कोरोना प्रतिबंधात्मक उपाय योजनाओं पर यह रकम खर्च की गई है. लेकिन इतना पैसा खर्च करने के बावजूद न तो स्वास्थ्य सेवाएं मजबूत हुई है, और न ही मुलभुत सुविधाएं बएी है. ऐसे में फिलहाल यह सबसे बडा सवाल है कि, आखिर इतना पैसा कहां गया? ज्ञात रहें कि, कोरोना के नाम पर सरकार ने अमरावती जिले को हाथ खोलकर निधी उपलब्ध करायी. जिसके लिए पालकमंत्री एड. यशोमति ठाकुर ने भी जबर्दस्त प्रयास किये. लेकिन इतनी बडी निधी खर्च होने के बाद भी न तो सुपर स्पेशालीटी अस्पताल में कोई अलग विभाग शुरू हो पाया और न ही इर्विन व डफरीन की स्थिति में कोई विशेष फर्क पडा.
उल्लेखनीय है कि, जिला सामान्य अस्पताल की अव्यवस्था हमेशा ही अमरावतीवासियों के लिए चर्चा का विषय रही है. उम्मीद की जा रही थी कि कोरोना काल के दौरान मिलनेवाली निधी की वजह से इस अस्पताल की स्थिति बदलेगी. जिसके लिए जिलाधीश शैलेश नवाल सहीत प्रशासन के अनेक बडे अधिकारियों ने इर्विन अस्पताल का दौरा भी किया, लेकिन हालात आज भी जस के तस है. लगभग यहीं स्थिति जिला स्त्री अस्पताल की भी है. वहीं दूसरी ओर प्रशासन ने अपना हिसाब पेश करते समय इस निधी से मरीजोें के इलाज, आवश्यक यंत्रणा व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने पर खर्च होने की बात कही है. लेकिन संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ व पीडीएमसी अस्पताल में कोविड प्रयोगशाला शुरू करने के अलावा कोई नया काम हुआ दिखाई नहीं दिया. शुरूआती काल के दौरान केवल सुपर स्पेशालीटी अस्पताल की पहले से तैयार इमारत में कोविड हॉस्पिटल खोला गया. ऐसे में इसमें से अधिकांश निधी मास्क, सैनिटाईजर, पीपीई कीट व सैनिटाईजर के लिए जगह-जगह लगायी गयी मशीनों पर ही तो खर्च नहीं किया गया, ऐसी शंका उपस्थित होती है.
इस संदर्भ में जिला आपत्ति व्यवस्थापन प्राधिकरण के अध्यक्ष तथा जिलाधीश शैलेश नवाल का कहना है कि, मरीजों की स्थिति देखते हुए शहर में अलग-अलग स्थानों पर बेड की संख्या बढाने के साथ ही तहसील स्तर पर कोविड केयर सेंटर बनाये गये. साथ ही संक्रमण काल के शुरूआत से आशावर्कस, पर्यवेक्षक, अंगनवाडी सेविका व सहायकों के जरिये सर्वेक्षण का काम किया गया. जिन्हें इस कार्य हेतु स्वतंत्र रूप से प्रोत्साहन भत्ता दिया जायेगा. लेकिन हकीकत यह है कि, इनमें से अब तक किसी को भी प्रोत्साहन भत्ता नहीं दिया गया. साथ ही इन कर्मचारियों में से जिन लोगों की कोरोना संक्रमण की वजह से मौत हुई है, उनके आर्थिक सुरक्षा कवच बीमा का प्रस्ताव भी मंजूर नहीं हुआ है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यहीं है कि, आखिर इतनी बडी रकम कहां खर्च की गई.

  • ये बडे खर्च दर्शाये गये

जिला प्रशासन द्वारा एनएचएम के माध्यम से दवाई, इलाज व विभिन्न बातों के लिए खर्च करने की बात कही गयी है. जिसके तहत दवाईयों पर 4 करोड 98 लाख 69 हजार, कंझ्यूमेबल मेडिसीन पर 1 करोड 6 लाख 6 हजार, पीपीई कीट (एन-95 मास्क सहित) पर 3 करोड 11 लाख 22 हजार, एन-95 मास्क पर 24 लाख 67 हजार 800 तथा मानव संसाधन उपलब्ध करने हेतु 3 करोड 57 लाख 14 हजार रूपये खर्च किये जाने की बात कही गयी है.

  • खर्च के ऑडिट की मांग की जायेगी

आशावर्कर, अंगणवाडी सेविका व सहायक तथा एनएचएम कर्मचारियों द्वारा आरोप लगाया गया है कि, उन्हेें प्रोत्साहन भत्ता तक अदा नहीं किया गया है. वहीं दूसरी ओर प्रशासन द्वारा करोडों रूपयों की निधि के खर्च का हिसाब दर्याया गया है. ऐसे में कोरोना के नाम पर आयी निधी को अपनी मनमर्जी से किसी भी तरह खर्च किया जाना बिल्कूल भी योग्य नहीं है. साथ ही प्रशासन द्वारा पेश किये गये हिसाब-किताब से यह स्पष्ट हो रहा है कि, मुख्य बातों की अनदेखी करते हुए अन्य बातों पर काफी अधिक खर्च किया गया है. ऐसे में इस खर्च के ऑडिट की मांग की जायेगी.

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