विदर्भ में 25 हजार किसान आत्महत्या, आधे परिवारों को भी मदद नहीं
मुंबई-पुणे के गृह प्रकल्पों के बजट से भी कम है सहायता राशि का आंकडा
* अमरावती व यवतमाल जिलों में भयावह है किसान आत्महत्याओं की स्थिति
अमरावती /दि.12– विगत 22 वर्षों के दौरान विदर्भ क्षेत्र में 25 हजार से अधिक किसानों ने फसलों की बर्बादी व सिर पर बढते कर्ज के बोझ से परेशान होकर आत्महत्या कर ली है. इस मुद्दे को लेकर कई लोग चुनाव लडकर ‘गब्बर’ बन गए. परंतु अन्नदाता कहे जाते किसानों के परिवारों के हिस्से में केवल सरकारी अनदेखी व अनास्था ही आयी. सरकारी नियमों की पेंच में फंसी प्रक्रिया के चलते आत्महत्या करने वाले आधे से अधिक किसानों के परिवारों को कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. वहीं सबसे दुर्भाग्यजनक बात यह भी है कि, सरकार की ओर से दी गई सहायता राशि का कुल आंकडा मुंबई अथवा पुणे के किसी बडे गृह प्रकल्प के बजट से भी कम है. ऐसे में सरकार द्वारा आत्महत्याग्रस्त किसान परिवारों को दी गई सहायता राशि को ‘उंट के मुंह में जीरा’ कहा जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि, इस समय राज्य विधानमंडल का विदर्भ की राजधानी कहे जाते नागपुर में शीतकालीन अधिवेशन चल रहा है तथा सरकार सहित पूरा विपक्ष इस समय विदर्भ में मौजूद है. ऐसे में यह अपेक्षा रखी जा सकती है कि, सरकार द्वारा विदर्भ की समस्याओं की तथा आम जनता से जुडे ज्वलंत प्रश्नों की ओर गंभीरतापूर्वक ध्यान दिया जाए, परंतु प्रत्यक्ष में ऐसा होता दिखाई नहीं देता.
बता दें कि, विदर्भ क्षेत्र में सन 2001 से अब तक 25 हजार 425 किसानों द्वारा आत्महत्या कर ली जा चुकी है. जिसमें से केवल 12 हजार 118 मामले ही सहायता के लिए पात्र साबित हुए है. यह केवल 47.66 फीसद है. वहीं 287 मामलों को जांच हेतु प्रलंबित रखा गया है तथा शेष 13 हजार 307 किसान परिवारों को सहायता हेतु अपात्र ठहरा दिया गया है.
* 42 फीसद आत्महत्याएं अमरावती व यवतमाल में ही
यदि वर्ष 2001 से लेकर अब तक किसान आत्महत्याओं के आंकडों पर नजर डाली जाए, तो पश्चिम विदर्भ क्षेत्र में किसान आत्महत्याओं की दाहकता कही अधिक दिखाई देती है. कुल किसान आत्महत्याओं में से 42 फीसद आत्महत्याएं अमरावती व यवतमाल की दो जिलों में ही घटित हुई है. अमरावती में 5 हजार 210 तथा यवतमाल में 5 हजार 644 किसानों ने आत्महत्या की है. जनवरी 2001 से अक्तूबर 2023 की कालावधि के दौरान पश्चिम विदर्भ में 19 हजार 817 तथा पूर्वी विदर्भ में 5 हजार 608 किसानों द्वारा आत्महत्या की गई.
* किसानों के जान की कीमत दुपहिया से भी कम 23 जनवरी 2006 के सरकारी निर्णयानुसार फसलों की बर्बादी सिर पर चढते कर्ज के बोझ तथा कर्ज वसूली के तगादे की वजह से यदि किसान द्वारा आत्महत्या की जाती है, तो संबंधित किसान के वारिस को सरकार की ओर से 1 लाख रुपए की मदद प्रदान की जाती है. यह निर्णय जारी हुए 17 वर्ष का समय बीत चुका है और इन 17 वर्षों के दौरान महंगाई, विकास दर व जीडीपी में वृद्धि होने के साथ ही खुद जनप्रतिनिधियों के वेतन व भत्तों में भी अच्छी खासी वृद्धि हो चुकी है. लेकिन किसान के जान की कीमत अब भी 1 लाख रुपए ही है. जबकि मौजूदा दौर में सर्वसाधारण दुपहिया वाहन की कीमत भी 1 लाख रुपए से अधिक होती है. ऐसे में सवाल पूछा जा सकता है कि, विदर्भ के किसानों के जान की कीमत दुपहिया वाहन की कीमत से भी कम है क्या.
* जनप्रतिनिधियों ने साध रखी है चुप्पी
– जारी वर्ष के दौरान विदर्भ में किसान आत्महत्या की समस्या ज्वलंत व कायम है. जिसे देखते हुए सत्तापक्ष सहित विपक्ष ने अधिवेशन की पूर्व संध्या पर विदर्भ के किसानों को न्याय दिलाने का दावा किया था.
– परंतु विधानमंडल के शीतसत्र में अब तक किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर किसी ने भी ठोस तरीके से आवाज नहीं उठाई है. यह अपने आप में एक दुर्भाग्यजनक व क्षोभजनक हकीकत है.
* किसान आत्महत्या के जिलानिहाय आंकडे (सन 2001 से अक्तू. 2023 तक)
जिला आत्महत्या पात्र मामले मदद मदद का प्रतिशत
अमरावती 5210 2661 26.61 करोड 51.07%
यवतमाल 5644 2354 23.54 करोड 41.71%
बुलढाणा 4109 1752 17.52 करोड 42.64%
अकोला 2927 1756 17.56 करोड 59.60%
वाशिम 1927 765 6.65 करोड 39.70%
नागपुर 1088 388 3.88 करोड 35.66%
वर्धा 2344 1168 11.43 करोड 49.83%
चंद्रपुर 1182 801 7.28 करोड 67.77%
भंडारा 691 286 2.76 करोड 41.39%
गोंदिया 294 167 1.67 करोड 56.80%
गडचिरोली 89 20 20 लाख 22.47%