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मनपा अंतर्गत 3 लाख 2 हजार प्रॉपर्टी धारक

81 हजार टैक्स धारकों ने घर व दुकान के बांधकाम में किये बदलाव

* 55 हजार नई संपत्तियों का पंजीयन ही नहीं था, टैक्स वसूली दूर
* 70 हजार खुले प्लॉट धारकों ने टैक्स नहीं भरा
* कैसे चलेगी महापालिका, आयुक्त द्वारा अनुदान हेतु पत्र की खबर
* शासन के पत्र पश्चात 2005 के रेट से होगी टैक्स वसूली
अमरावती/दि.9 – मनपा का आय का सबसे बडा स्त्रोत संपत्ति कर पचडे में पड गया. संपत्ति कर में बाकायदा समस्त शहर और उसकी एक-एक परिसंपत्ति का सर्वेक्षण कर की गई दरवृद्धि पर शासन ने रोक लगा दी. जिससे अब सवाल खडा हो गया कि, महानगरपालिका का कामकाज कैसे चलेगा, फंड कहां से आएगा, पहले ही स्वच्छता और सफाई के बिल महीनों से अटके पडे हैं. मनपा के अधिकारियों, कर्मचारियों के वेतन के भी कही लाले न पड जाये, इस तरह की आशंका जानकार व्यक्त कर रहे हैं. यह सवाल भी उठा रहे हैं कि, संपत्ति कर से वसूली दोगुना, तीगुना करने के लिए गत दो वर्षों से की गई कवायद, सर्वे के 19 करोड कहीं बर्बाद तो नहीं हो गये? जबकि सर्वे में भयंकर खुलासे हुए थे. 55 हजार से अधिक प्लॉट धारकों ने मनपा को टैक्स का भुगतान करने में कोताही बरती थी, तो हजारों संपत्तिधारकों ने नियमानुसार निर्माण की जानकारी मनपा को नहीं दी थी. 3 लाख 2 हजार से अधिक संपत्तियां दर्ज हुई.
* 70 हजार संपत्तियों में बदलाव
मनपा ने अपना हाउस टैक्स कलेक्शन बढाने के लिए बाकायदा विशेषज्ञ की कंपनी नियुक्त की थी. जिसके आधार पर सर्वेक्षण करवाया गया. कंपनी ने लगभग 19 करोड की लागत से महीनों घर-घर इंजिनीयर भेजकर नापजोख करवाई. पाया गया कि, 70 हजार से अधिक संपत्तियों में निर्माणकार्य में परिवर्तन किया गया है. उसी प्रकार घरेलू संपत्तियां कमर्शियल कर दी गई है. जिसकी मनपा को कोई सूचना या खबर नहीं की गई. जिससे मनपा के हाउस टैक्स का लॉस हो रहा था. उसी प्रकार यह भी भयंकर खुलासा हुआ कि, 55 हजार से अधिक परिसंपत्तियां मनपा के रिकॉर्ड पर ही नहीं लायी गई थी. जिससे यह 55 हजार नये हाउस टैक्स धारक मनपा से जुडे थे. उनकी वसूली से मनपा का टैक्स कलेक्शन आंकडा 150 करोड के पार हो जाने का दावा किया गया था. केवल दावा नहीं, तो आधी वसूली तो मनपा ने कर ली थी.
* सर्वे के आधार पर नये टैक्स बिल
मनपा ने प्रशासक राज में ठेका कंपनी के सर्वेक्षण के आधार पर देखा कि, परिसंपत्तियों की संख्या 1 लाख बढ गई है. मनपा का टैक्स कलेक्शन बमुश्किल 30-35 करोड होता था. वह सर्वे पश्चात नये रेट 2 रुपए 20 पैसे प्रति फीट से लगभग 3 लाख 2 हजार से अधिक प्रॉपर्टी से 150 करोड के आसपास हो जाने का अंदाज व्यक्त किया गया था. जिससे मनपा आमदनी बढने की संभावना से गदगद हो गई थी और आनन फानन में गत फरवरी में नये टैक्स बिल संपत्ति धारकों को जारी किये गये.
* सर्वे में यह भी हुआ खुलासा
मनपा के ठेकेदार द्वारा किये गये सर्वेक्षण में यह बात भी उभरकर सामने आयी कि, कई संस्थाओं, संगठनों, बडी संपत्तियों के धारकों ने 20-30 वर्षों से मनपा का हाउस टैक्स अदा करने में कोताही की थी. जबकि पहले टैक्स रेट महज 90 पैसे प्रति वर्ग फीट था. इतना ही नहीं, तो यह भी खुलासा हुआ कि, 90 हजार संपत्तियों में तोडफोड कर एक्स्ट्रा निर्माण करवा लिया गया था. जिन्हें अधिक टैक्स का बिल मनपा ने जारी किया.
* 95 करोड की वसूली
मनपा ने सर्वेक्षण के बाद कुछ माह पहले जारी किये हाउस टैक्स के बिल की वसूली प्रारंभ की. जो अब तक 95 करोड का आंकडा पार कर जाने की जानकारी देते हुए सूत्रों ने बताया कि, टारगेट 150 करोड रखा गया था. इसी बीच राज्य शासन ने बढाये गये हाउस टैक्स पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. ऐसे में मनपा की दो साल की तैयारी और अपनी आमदनी बढाने की मंशा पर पानी फिर गया. अब यह देखना मजेदार होगा कि, मनपा का परिचालन कैसे होता है? अभी तो हालत ऐसी है कि, घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने. जानकार कह रहे है कि, मनपा आस्थापना का खर्च और नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने में उसके खर्च ही शामिल है. विकास कार्य इसमें शामिल नहीं किये गये. उसी प्रकार महापालिका के एक जानकार ने बताया कि, हाउस टैक्स की प्रस्तावित वसूली को देखते हुए मनपा ने पहले ही विकास कार्य के खर्च बढा रखे थे.

* आयुक्त का शासन को अनुदान हेतु पत्र!
इस बीच खबर है कि, आयुक्त ने राज्य शासन को मनपा के परिचालन हेतु 40 करोड का अनुदान जारी करने के लिए अनुरोध पत्र भेजा है. राज्य शासन पर महापालिका का पहले का भी अनुदान पेंडिंग है. यहां गौरतलब है कि, लाडली बहना योजना हेतु फंड ड्राइवर्ट करने के कारण राज्य शासन ने पहले ही सभी प्रकार के अनुदान रोक रखे हैं. जिससे मनपा पर आर्थिक तंगी के घने बादल मंडराने की आशंका जानकार व्यक्त कर रहे हैं.

* जीएसटी का घालमेल
जीएसटी के अनुदान के मनपा को 10-12 करोड रुपए प्रतिवर्ष मिलते हैं. यह उपकर और ऑक्ट्राय बंद होने के एवज में दिये जाते हैं. किंतु मनपा ने जीएसटी के जमा 24 करोड पहले ही खर्च कर दिये है. उसे संबंधित विभाग के पास जमा नहीं कराये, जिससे इस अनुदान में भी ढाई करोड की कटौती की जा रही है. अर्थात मनपा को जीएसटी के भी पैसे कम मिल रहे हैं. अब सरकार के अनुदान पर महापालिका आश्रित रहने की बडी संभावना है.

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