सतपुड़ा पर्वतों में दबी है 30 हजार साल पुरानी पाषाण युग की जीवनशैली
श्री हव्याप्र योग विभाग के विद्यार्थियों का भोरकाप (धारुल) भ्रमण : योग प्रदर्शन की प्रस्तुति

अमरावती /दि.17– अमरावती जिले के मोर्शी तहसील में आने वाले महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश के सीमा पर धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध सालबर्डी क्षेत्र जितना धार्मिक दृष्टि से समृद्ध है, उतना ही पाषाणकालीन जीवनशैली और आदिम संस्कृति से भी समृद्ध है. सातपुड़ा पर्वत शृंखला के इस क्षेत्र में विशालकाय चट्टानों की कई पंक्तियां हैं जिन पर पाषाण युग के चित्र उकेरे हुए मिले हैं. रॉक आर्ट विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि, यह पेंटिंग एक आदिम संस्कृति को दर्शाती है और 25,000 से 5,000 ई. सन पूर्व के बीच मानव अस्तित्व के इतिहास को उजागर करती है. आज आशंका है कि, आदिम संस्कृति का यह खजाना समय की मार में लुप्त हो रहा है. श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल योग विभाग के विद्यार्थियों ने सरकार के पुरातत्व विभाग से इस पाषाण कालीन संस्कृति के संरक्षण और पर्यटन संबंधी पहलुओं के लिए पहल करने की आवश्यकता जताई है.
श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल द्वारा संचालित डिग्री कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन के योग विज्ञान विभाग के छात्र हाल ही में मोर्शी के पास महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश सीमा पर सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में भोरकाप (धारुल) की एक शैक्षिक साहसिक यात्रा पर गए थे. यह यात्रा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में आयोजित की गई थी. इस यात्रा पर बी ए योग शास्त्र पाठ्यक्रम में 38 छात्र और 36 छात्राए थीं. यह अभ्यास दौरा योग विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. सुनील लाबडे, प्रो. संदीप मांडले, प्रो. प्रतीक पाथरे, प्रा. संपदा आगरकर, प्रो. प्रणय पवार, प्रो. सागर हाटे, प्रा. सुषमा शिरभाते के मार्गदर्शन में आयोजित की गई थी.इस यात्रा के दौरान छात्रों को धारुल में अम्बा देवी के दर्शन के साथ-साथ आदिमानव द्वारा बनाए गए 30 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र भी दिखाए गए. छात्रों को पाषाण युग के मानव की जीवनशैली से अवगत कराने का प्रयास किया गया. इसके लिए धारुल से ट्रैकिंग शुरू की गई, जिसमें सभी छात्र देवी के दर्शन के लिए 2.5 किमी दूर अंबा देवी गुफा तक पहुंचे. देवी के दर्शन करने के बाद सभी विद्यार्थियों ने गुफा क्षेत्र में देवी के दर्शन करने आए श्रद्धालुओं को योग आसनों की जानकारी दी तथा उनका प्रदर्शन भी किया. इसके बाद सभी छात्र-छात्राएं और प्रोफेसर शैलचित्र की ओर चल पड़े. 30 हजार साल पुराने ऐतिहासिक स्थल देवी की गुफा से लगभग 3 कि.मी. दूर जंगल में स्थित गुफा में योग विभाग के छात्रों ने विशालकाय पत्थरों और शैल चित्रों का अवलोकन और शोध किया. इस क्षेत्र में मशरूम के आकार के पत्थरों पर पाषाण युग की जीवनशैली के साक्ष्य मिले हैं. वहाँ गहरे लाल रंग से चित्रित सुन्दर एवं साफ-सुथरी आकृतियाँ थीं. इस संबंध में योग विभाग के प्रो. प्रतीक पाथरे ने छात्रों को बताया कि, इन खूबसूरत चित्रों की ऐतिहासिक प्रामाणिकता का अर्थ यह है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 2007 में इन सभी चित्रों की कार्बन-डेटिंग के बाद, ये चित्र 30 हजार वर्ष पुराने हैं. इनमें कछुए के आकार के चित्र, मानव कोशिकाओं के आकार के चित्र, तथा हाथी, बैल, हिरण और भेड़िये जैसे विभिन्न जानवरों के चित्र शामिल थे, जिन्हें कई पत्थरों पर बनाया गया था.शैक्षिक अभ्यास भेट दौरा के माध्यम से छात्र ऐतिहासिक वैभव का अनुभव करने में सक्षम हुए. इससे उन्हें अपना ज्ञान बढ़ाने और अपनी आदिम संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली. इस सराहनीय पहल के लिए मंडल के प्रधान सचिव पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य, अध्यक्ष एड. रवि देशपांडे, कार्यकारी अध्यक्ष एड. प्रशांत देशपांडे, उपाध्यक्ष डॉ. श्रीकांतराव चेंडके, सचिव प्रो. डॉ. माधुरीताई चेंडके, सचिव डॉ. विकास कोलेश्वर, सचिव प्रो. रविन्द्र खांडेकर ने योग विभाग को बधाई दी.
* चित्र में धातु युग के अवशेष
संभावना व्यक्त की जाती है कि यह पेंटिंग धातु युग से संबंधित है. मगरमच्छों और अन्य जानवरों के साथ-साथ यहां मधुमक्खियों के छत्ते, कछुआ, तथा हथियारों और धातु के औजारों के साथ मानव आकृतियां भी हैं. विशेषज्ञों का अनुमान है कि, ये चित्र संभवतः लौह युग या धातु युग के हैं, तथा 25,000 ई. सन पूर्व से 15,000 ई. सन पूर्व और नवपाषाण युग (10,000 ई. सन पूर्व से 5,000 ई. सन पूर्व) के बीच मानव उपस्थिति का संकेत देते हैं. इन पाषाण युगीन चित्रकलाओं का गहन अध्ययन इस क्षेत्र में मानव अस्तित्व के रहस्य को जानने में मदद कर सकता है. इसके अलावा, यह क्षेत्र शैल कला और पुरातत्वविदों के लिए भी जाना जा सकता है. हालांकि, यह पेंटिंग हर साल बारिश और अन्य कारणों से फीकी पड़ रही है और छात्रों ने आशंका जताई है कि अगर इसकी उपेक्षा की गई तो यह लुप्त हो जाएगी.
* भीमबेटका जैसा संरक्षण, संवर्धन हो!
मध्य प्रदेश में स्थित भीमबेटका एक विश्व प्रसिद्ध पुरातात्विक धरोहर स्थल है. इसमें ऐसी पेंटिंग्स भी हैं जो एक लाख साल पहले की आदिम संस्कृति के अवशेषों और मानव अस्तित्व के निशानों की पहचान कराती हैं. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इस क्षेत्र के संरक्षण से इस क्षेत्र को वैश्विक पहचान मिली है. श्री हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल योग विभाग के विद्यार्थियों ने महाराष्ट्र सरकार से सतपुड़ा पर्वत शृंखला में भोरकाप (धारुल), सालबर्डी और डोंगरगांव जैसे क्षेत्रों को संरक्षित करने की आवश्यकता जताई.