अमरावती

राज्य की पोक्सो अदालतों में 33072 मामले प्रलंबित

आईसीपीएफ के शोध निबंध से सामने आयी सनसनीखेज जानकारी

अमरावती /दि.16– राज्य की पोक्सो अदालतों में इस समय 33 हजार 72 मामले प्रलंबित चल रहे है और जिस रफ्तार से इन मामलों पर सुनवाई हो रही है. उसके मद्देनजर कहा जा सकता है कि, इन सभी मामलों का निपटारा वर्ष 2036 तक हो पाएगा. इंडियन सोशल सर्विस यूनिट ऑफ एजुकेशन (इशू) द्वारा जारी किए गए शोध निबंध से यह तथ्य उजागर हुआ है. यह शोध निबंध इंडिया चाईल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) द्वारा तैयार किया गया है.

इस शोध निबंध के मुताबिक महाराष्ट्र में पोक्सो से प्रलंबित मामलों का निपटारा करने हेतु करीब 13 वर्ष का समय लगेगा. वहीं देश में वर्ष 2022 के दौरान पोक्सो से संबंधित केवल 3 फीसद मामलों में सजा हुई. आईसीपीएफ व इशू संस्था बालविवाह मुक्त भारत उपक्रम में भागीदार संस्थाए है. लैंगिक सोशन का शिकार होने वाले बच्चों को न्याय दिलाने हेतु केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जलदगति विशेष न्यायालय स्थापित किए थे. इसके लिए प्रतिवर्ष करोडो रुपए का खर्च किया जाता है. परंतु इसके बावजूद भी ऐसे मामलों की सुनवाई में अपेक्षित गति नहीं रहने के चलते न्याय मिलने में अच्छा खासा विलंब होता है. ऐसा निष्कर्ष इस शोध निबंध के जरिए निकाला गया है.

केंद्र सरकार की ओर से सभी आवश्यक प्रयास व वचनबद्धता करते हुए नीतियां बनाने के बावजूद भी 31 जनवरी 2023 तक लैंगिक शोषण का शिकार होने वाले बच्चों के मामलों की सुनवाई के लिए स्थापित किए गए विशेष जलदगति न्यायालयों में राष्ट्रीयस्तर पर 2 लाख 43 हजार 337 मामले प्रलंबित थे. यदि इन प्रलंबित मामलों की संख्या में एक भी नये मामले को नहीं जोडा जाता है, तो इन सभी मामलों का निपटारा करने हेतु कम से कम 9 वर्ष का समय लगेगा.

विशेष उल्लेखनीय है कि, जलदगति विशेष न्यायालय जैसी विशेष अदालतों को स्थापित करने का प्राथमिक उद्देश्य लैंगिक अत्याचार से संबंधित मामलों का जलदगति से निपटारा करना था. प्रत्येक जलदगति विशेष न्यायालय ने एक साल के दौरान केवल 28 मामलों का निपटारा किया और प्रत्येक मामले का निपटारा करने हेतु करीब 9 लाख रुपए का खर्च आया. शोध निबंध के मुताबिक प्रत्येक विशेष न्यायालय द्वारा हर तिमाही में 41 से 42 तथा साल भर के दौरान कम से कम 165 मामलों का निपटारा किया जाना अपेक्षित था. परंतु इन विशेष अदालतों की स्थापना हुए 3 वर्ष का समय बीत जाने के बावजूद उनके निश्चित लक्ष्य को साध्य करने में असफलता ही दिखाई दे रही है.

ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया के दौरान लैंगिक अत्याचार का शिकार होने वाले बच्चों व उनके परिजनों पर होने वाले आघात व वेदनाओं की कल्पना भी नहीं की जा सकती. इसके अलावा ऐसे परिवारों को न्याय पाने हेतु कई बार असहनीय दिक्कतों व तकलीफों का सामना करना पडता है, क्योंकि उन्हें रोजाना ही खुद पर हुए अत्याचार व उसकी वजह से होने वाली वेदनाओं को याद करते हुए जीवन बिताना पडता है. ऐसे में जल्द से जल्द न्याया मिलना ही ऐसे परिवारों को दुख व तकलीफ से मुक्त करने का एक मात्र रास्ता है. जिसके लिए पोक्सो संबंधित मामलों का शीघ्र निपटारा करने हेतु गठित की गई जलदगति विशेष अदालतों द्वारा अपने काम को गति दिये जाने की सख्त आवश्यकता है.

* देश में हर मिनट होते है तीन बालविवाह
वर्ष 2011 की जनगणना के आंकडों के मुताबिक देश में रोजाना ही औसतन 4 हजार 442 नाबालिग बच्चियों को विवाह की विधि पर खडा कर दिया जाता है. जिसका सीधा मतलब है कि, देश में प्रति मिनट 3 नाबालिग बच्चियों का बालविवाह होता है. वहीं नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि, देश में रोजाना केवल 3 बालविवाह के मामले दर्ज होते है. ऐसे में इन दोनों रिपोर्ट के बीच रहने वाले फर्क को काफी बडा फर्क माना जा सकता है.

* विशेष न्यायालयों के लिए 1900 करोड रुपए की निधि मंजूर
इन न्यायालयों की स्थापना वर्ष 2019 में हुई थी और केंद्र सरकार ने इसे प्रायोजित योजना के तौर पर वर्ष 2026 तक शुरु रखने हेतु 1900 करोड रुपए वितरीत करने को हाल ही में मान्यता दी. इन जलदगति विशेष अदालतों की स्थापना के बाद यह उम्मीद जताई जा रही थी कि, वे एक वर्ष के भीतर सभी मामलों का निपटारा कर देंगे. परंतु इन अदालतों में दाखिल 2 लाख 68 हजार 38 मामलों में से अब तक केवल 8909 मामलों में ही अपराधियों को सजा हो पायी है.

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